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खेल छपने और छिपने का

16 अप्रैल 2022

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      यहां छपने से हमारा तात्पर्य है कि प्रत्यक्ष होने/रहने से है अथवा किन्हीं विशेष भूमिकाओं में अपना अभिनय प्रत्यक्ष रूप से निभाने से है जबकि छिपने का हमारा तात्पर्य है अप्रत्यक्ष रहने/होने से है अथवा किन्हीं विशेष भूमिकाओं में अपना विशेष अभिनय प्रत्यक्ष रूप से नहीं निभाने से है।  समय का क्रम निरंतर चलता रहता है। यदि ब्रह्मांडीय क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं के अनुसार समझें तो समय जैसी कोई चीज है ही नहीं। क्योंकि सबकुछ एकसाथ घटित हो रहा है। सब कुछ एक साथ कैसे घटित हो रहा है? सामान्य मनुष्य इसका उत्तर नहीं जान सकता है अर्थात अनुभव नहीं कर सहता है। लेकिन अध्यात्म के पास इसका उत्तर है। जो आत्माएं अध्यात्म में गहरे उतरी हैं उन्हें समयातीत का अनुभव हुआ है। यह समयातीत का अनुभव केवल दिव्य दिव्य बुद्धि से ही हो सकता है। उस समयातीय स्थिति से ही यह अनुभव हो सकता है कि सभी चीजें एक साथ घटती हैं। लेकिन चूंकि हम प्रकृति के केवल एक निम्न आयाम (स्तर) में जीवन जीते हैं। इसलिए हमारा मन हर चीज का को खण्ड खण्ड में बांटकर या यूं कहें कि टुकड़ों में तोड़कर देखता है। हमारे मन के प्रिज्म के कारण ही हमें सब घटनाएं अलग अलग दिखाई देती है और समय का अनुभव होता है। इसलिए ही हमारे लिए समय है। समयातीत स्थिति बनाना और स्थूल वा सूक्ष्म को एक साथ घटते हुए देखना - यह आत्माओं के लिए पुरुषार्थ का विषय है। 

  विश्व ड्रामा अनुसार आदि अनादि रूप से कुछ ना कुछ खूबियां कम या अधिक मात्रा में सभी आत्माओं में हैं हीं हैं। इसे इस तरह कहें कि प्रत्येक आत्मा में उसके स्वयं के गुण और संस्कार अनादि अविनाशी रूप से नूंध हैं। वे गुण और संस्कार अपने अपने समय पर प्रकट होते हैं। किसी की खूबियां छप जाती हैं अर्थात प्रत्यक्ष हो जाती हैं। किसी की छिप जाती हैं अर्थात अप्रत्यक्ष रहती हैं। अनेक लोगों का यह सवाल रहता है कि यह ऐसा क्यों होता है? क्योंकि यह मर्ज और इमर्ज का खेल है। यह समय के वर्तुल की बलिहारी है। यह सृष्टि के वर्तुलाकार के नियम का खेल बना ही ऐसा है। इस वर्तुलाकार गति को समझना बहुत जरूरी है। यह इसलिए भी बहुत जरूरी है क्योंकि बहुत से लोग इन्हीं बातों में स्वयं भी उलझते हैं और दूसरों को भी उलझाते हैं। वे स्वयं को बहुत ज्यादा श्रेष्ठ और कर्मठ मानते हैं और दूसरों को निकृष्ठ या अकर्मण्य मानते हैं। वे यह समझते हैं कि हम तो बहुत कुछ करते हैं हमने तो बहुत कुछ किया है और बाकी दूसरे हमारे सामने गौण हैं। शायद उन्हें यह ज्ञान भूल जाता है कि सबका पार्ट अलग अलग है और अपना अपना होता है। सबके गुणों और संस्कारों के पार्ट को प्रत्यक्ष होने का (छपने का) समय भी अपना अपना होता है। इस सृष्टि रंगमंच पर ऐसा कभी नहीं होता है कि कुछ चंदेक आत्माएं ही सदा ही अपना प्रत्यक्ष विशेष पार्ट बजाती रहती हों या केवल कुछेक आत्माएं ही सदा विशेष पार्ट बजाती रहती हों। नहीं, ऐसा नहीं होता है। किन्हीं भी आत्माओं के गुणों/संस्कारों का प्रैक्टिकल प्रत्यक्षीकरण सदा नहीं रहता है। जो आत्माएं अतीत में प्रत्यक्ष (छपी) थीं, वे आज अप्रत्यक्ष (छिपी) हैं। जो आत्माएं अतीत में अप्रत्यक्ष थीं, वे वर्तमान में प्रत्यक्ष (छपी) हैं। 

   इसे सृष्टि में समय के वर्तुलाकार नियम के अनुसार ठीक ढंग से समझ लेना बहुत जरूरी है। समय का चक्रीय क्रम सीधा रेखाकार (linear) जैसा नहीं है। यह समय का चक्र सर्कुलर circular (वर्तुलाकार) है। जैसे पृथ्वी  गोलाकार चक्रीय क्रम में घूम रही है। उसमें जो चीज वर्तमान समय अभी अभी वर्तुल में प्रत्यक्ष रूप से ऊपर सतह पर दिखाई दे रही है, वही चीज वर्तुल में घूमते घूमते आगे आने वाले समय (भविष्य) में स्वभावत: अवश्य रूपेण ही नीचे (अप्रत्यक्ष) ही दिखाई देगी। इसलिए इसी वक्त पृथ्वी पर कहीं किसी व्यक्ति के लिए दिन है और किसी के लिए रात है।   इसके विपरीत भी उतना ही सच है। जैसे जो चीज वर्तमान में नीचे (अप्रत्यक्ष) दिखाई दे रही है वह समय के वर्तुल में घूमते घूमते भविष्य में ऊपर (प्रत्यक्ष) दिखाई देगी। जो व्यक्ति पहले रात अनुभव कर रहा था वह अब दिन अनुभव कर रहा है। जो व्यक्ति पहले दिन अनुभव कर रहा था वह अब रात अनुभव कर रहा है। यह समय के चक्रीय क्रम को समझने और समझाने का स्थूल उदाहरण है जिसे हम प्राय रोज अनुभव करते हैं।

 समय के इस वर्तुलाकार चक्र को कुछ उदाहरणों से समझिए। सूर्यवंश में कुछेक आत्माएं ही कर्ताधर्ता या विशेष पार्टधारी समय के ऊपरी सतह पर होती हैं। उनका पार्ट सबको प्रत्यक्ष दिखता है अर्थात छपता है। उस चंद्रवंशी आत्माएं भी होती हैं। लेकिन उनका पार्ट अप्रत्यक्ष रहता है अर्थात् छिपा हुआ साधारण रहता है। इसे धर्मों और साम्राज्यों के अनुसार भी समझ सकते हैं। एक समय था जब सृष्टि चक्र के समय के क्रम में केवल देवी देवता धर्म की आत्माएं ही पूरी सृष्टि में थीं। बाकी आत्माएं भी थीं, लेकिन वे उस समय अप्रत्यक्ष अर्थात छिपी हुईं थीं अर्थात् वे आत्माएं ऐसा समझो जैसे कि परदे के पीछे (परमधाम में) आराम कर रहीं थीं।  आज उन देवी देवता धर्म की आत्माएं विश्व ड्रामा की के किसी विशेष रंगमंच पर उस तरह से प्रत्यक्ष नहीं हैं जैसे पहले थीं। उनका प्रत्यक्षीकरण समय के चक्रीय क्रम में अब नीचे चला गया है। अब वे विश्व की स्टेज पर तो हैं पर किसी विशेष स्टेज पर प्रत्यक्ष नहीं हैं। अब वे साधारण रूप में हैं। अब दूसरी अन्य विशेष पार्टधारी आत्माएं समय के वर्तुल के ऊपरी सतह पर नजर आ रही हैं। वे विश्व की स्टेज पर विशेष स्टेज पर हैं। इसलिए उनका बोलबाला है। जबकि ये आत्माएं इनके अपने अतीत में गुप्त में या साधारण रूप में थीं। जैसे कभी कभी ऐसे संयोग वशात शायद आपने देखा होगा कि कुछ मिनिस्टर या पधाधिकारी के पद पर तो होते हैं, पर बिना पोर्टफोलियो के ही होते हैं। वे बिना किसी विशेष जिम्मेवारी के ही पद पर होते हैं। 

   जब जो आत्माएं समय के वर्तुल में ऊपरी सतह पर आती है अर्थात प्रत्यक्ष होती हैं, उसी समय उनके द्वारा किए हुए कर्म प्रत्यक्ष होते हैं। इस प्रकार हरेक धर्म की आत्माओं का डंका अपने अपने समय पर सतह पर प्रत्यक्ष रूप से बजता है। हैरानी की बात यह कि अज्ञान का भ्रम जाल ऐसा है कि यह सभी को भ्रम में डाल देता है। जैसे आज जो अन्य धर्मों की आत्माएं वर्तुल में ऊपरी सतह पर प्रत्यक्ष हैं, वे भी अज्ञान के भ्रम वश यही सोचती हैं कि हम ही सर्वेसर्वा और कर्ताधर्ता हैं। बाकी सभी कोई कुछ विशेष नहीं हैं।

    समय के चक्र में कब और कौन सी आत्माओं के गुण और संस्कार अपने शिखर पर पहुंच जाते हैं तथा उनके गुण संसार अत्यंत कर्मठ होकर प्रत्यक्ष होते हैं, यह कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। हां, उस समय इतना तो पक्का कहा जा सकता है कि ये वे ही आत्माएं हैं जो पहले समय के वर्तुल में नीचे (अप्रत्यक्ष) थीं। इस प्रकार आत्माओं का यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष होने का या यूं कहें कि छपने या छिपने का सीधा सिम्पल सा गणित समय के चक्र में निरंतर चलता रहता है। यह सीधा सा विज्ञान है। इसे समझने में जरा भी कठिनाई नहीं है। सिर्फ खूबियों के प्रत्यक्ष होने या अप्रत्यक्ष होने का ड्रामा अनुसार यह एक नियम ही है। यहां इस सृष्टि में सब कुछ प्रकृति के अर्थात समय के नियमानुसार चल रहा है। हम सभी प्रकृति के नियम से बिल्कुल भी अलग नहीं हैं। हम सभी प्रकृति के नियम से अटूट रूप से आबद्ध हैं। 

   परमात्मा ने केवल एक ही विषय का ज्ञान नहीं दिया है बल्कि तीनों मूल विषयों का ज्ञान दिया है। उसमें प्रकृति अर्थात तत्वों और उनकी गति तथा समय का ज्ञान भी विशेष रूप से समाहित है। इस ज्ञान को यदि समझेंगे तो आत्माओं  की स्थिति परिस्थितियों के आगे पीछे होने या प्रतिद्वंदिता की भावना पल भर तितर बितर हो जायेगी। जीवन सहज लगने लगेगा। जीवन की आधे से ज्यादा झंझटें खत्म हो जाएंगी।

 इससे यह विवेक भी स्पष्ट हो जाएगा कि अनादि अविनाशी ड्रामा में प्रकट या अप्रकट होने का अर्थात् प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष होने का अर्थात् छपने और छिपने का सबका अपना अपना समय होता है। व्यक्ति का अभिमान चूर चूर हो जायेगा, क्योंकि उसका यह विवेक जागृत हो जाएगा कि आज हम ड्रामा अनुसार ऊपर हैं या प्रत्यक्ष है तो कल हमें भी ड्रामा अनुसार नीचे अप्रत्यक्ष होना है। इस विवेक से व्यक्ति के जीवन में अवसाद या हताशा के भाव आने की भी गुंजाइश नहीं रहती है। क्योंकि वह उसका यह विवेक जागृत है कि आज हम ड्रामा अनुसार नीचे या अप्रत्यक्ष हैं तो कल भविष्य में हमको भी ऊपर अर्थात प्रत्यक्ष होना है। इस समझ से यह भी साफ हो जाएगा कि ड्रामा अनुसार क्रियाओं प्रतिक्रियाओं के होने की और नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार क्रियाएं प्रतिक्रिया होने की दोनों प्रक्रियाएं साथ साथ चलती हैं। फर्क सिर्फ इतना होता है कि उनके प्रत्यक्ष या प्रकट होने का समय अलग अलग होता है। हालांकि विश्व क्षितिज पर फिर भी उनका प्रत्यक्षीकरण एक साथ हो रहा होता है। वे हमें अलग एक निश्चित समय पर दिखाई देती हैं, वह बात अलग है।🙏

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