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पगड़ी की रस्म

16 सितम्बर 2021

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              पगड़ी की रस्म

 मिश्रा जी का निधन हो गया I घर में नाते रिश्तेदारों का जमावड़ा था I सारी रस्मे  पूरे विधि-विधान से हो रही थी I बारहवे  के दिन पगड़ी की रस्म थी I मिश्रा जी के बड़े बेटे को पगड़ी पहनाई जा रही I

मिश्रा जी का आठ वर्षीय पोता इन सब रस्मो को आश्चर्य से देख रहा था I उसने अपनी दादी यानी कि मिश्रा जी की पत्नी से पूछा,

' दादी ये पापा को पगड़ी क्यों पहना रहे हैं',

 दादी भावुक हो रुंधे गले से बोली,

' बेटा तेरे पापा अब इस घर के बड़े हैं, तेरे दादा के जाने के बाद अब वो इस घर के मुखिया हैं ',

दादी की बात सुन उनका पोता अचरज से भर गया 

'पर दादी घर की बड़ी तो आप है, तो पगड़ी तो आपको पहनानी चाहिए, पापा को क्यों',

पोते  की बात सुन दादी की आंखें भर आई,

' बेटा हम औरते  उम्र और ओहदे में भले बड़ी हो जाए,पर घर का मुखिया तो आदमी ही होता है I यही जमाने का दस्तूर है और यही परंपरा सदियों से चली आ रही है ',

ये कहती मिश्रा जी की पत्नी के चेहरे पर अथाह दर्द की टीस थी I इधर मासूम बालमन इन परंपराओं में उलझा इस अभेदय चक्रव्यूह को भेदने की कोशिश कर रहा, पर वह बालमन कहां भेद पाएगा I शायद बड़ा होते-होते एक दिन खुद भी इसी चक्रव्यूह में फस जायेगा I

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Vimla Jain

Vimla Jain

बेहतरीन कहानी सही मुद्दा उठाया आपने

16 सितम्बर 2021

Risha

Risha

16 सितम्बर 2021

बहुत शुक्रिया 🙏

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

अच्छा विचार है |

16 सितम्बर 2021

Risha

Risha

16 सितम्बर 2021

आभार 🙏🙏

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