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परख

11 जून 2022

15 बार देखा गया 15

खोट वैसे न खूँट में बँधती।

मन गया है खुटाइयों में सन।

बान क्यों काटवूट की न पड़े।

है भरा वूट वूट पाजीपन।


जब पड़ी बान आग बोने की।

आग वैसे भला नहीं बोता।

मिल सका ढंग ढंगवालों में।

ढंग बेढंग में नहीं होता।


जूठ खाना जिसे रहा रुचता।

किस लिए वह न खायगा जूठा।

है उसे झूठ बोलना भाता।

बोलता झूठ क्यों नहीं झूठा।


जा रही है लाज तो जाये चली।

लाज जाने से भला वह कब डरा।

घट रहा है मान तो घटता रहे।

है निघरघटपन निघरघट में भरा।


चूल से चूल हैं मिला देते।

रंगतें ढंग से बदलते हैं।

चाल चालाकियाँ भरी कितनी।

कब न चालाक लोग चलते हैं।


पास तब वैसे फटक पाती समझ।

जब कि जी नासमझियों में ही सने।

तब गले वैसे न उल्लूपन पड़े।

उल्लुओं में बैठ जब उल्लू बने।


किस तरह बेऐब कोई बन सके।

बेतरह हैं ऐब पीछे जब लगे।

कम नहीं उल्लू कहाना ही रहा।

काठ के उल्लू कहाने अब लगे।


बात बतलाई सुनें, समझें, करें।

कर न बेसमझी समझ की जड़ खनें।

जो बदा है क्यों बदा मानें उसे।

हम न बोदापन दिखा बोदे बनें।


बाल की खाल काढ़ खल पन कर।

खल किसे बेतरह नहीं खलते।

चाल चल छील छील बातों को।

छल छली कर किसे नहीं छलते।


पेच भर पेच पाच करने में।

क्यों सभी का न सिर धारा होगा।

है भरी काट पीट रग रग में।

क्यों न कपटी कपट भरा होगा।

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रचनाएँ
चुभते चौपदे
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प्रत्येक भाषा के लिये स्थायी साहित्य की आव-श्यकता होती है। जो विचार व्यापक और उदात्त होते हैं, जिन का सम्बन्ध मानवीय महत्त्व अथवा सदा-चार से होता है, जो चरित्रगठन और उल की चरितार्थता के सम्बल होते हैं, जिन भावों का परम्परागत सम्बन्ध किसी जाति की सभ्यता और आदर्श से होता है, जो उद्गार हमारे तमोमय मार्ग के आलोक बनते हैं, उन का वर्णन अथवा निरूपण जिन रचनाओं अथवा कविताओं में होता है, वे रखना और उक्तियां स्थायिनी होती हैं ।
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देवदेव चौपदे

11 जून 2022
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अब बहुत ही दलक रहा है दिल। हो गईं आज दसगुनी दलकें। ऊबता हूँ उबारने वाले। आइये, हैं बिछी हुई पलकें। डाल दे सिर पर न सारी उलझनें। जी हमारा कर न डाँवाडोल दे। इन दिनों तो है बिपत खुल खेलती। तू भल

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सच्चे देवते

11 जून 2022
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मान के ऊँचे महल में पा जिसे। सिर उठाये जाति के बच्चे घुसे। आँख जिससे देस की ऊँची हुई। क्यों न आँखों पर बिठायें हम उसे। जो कि समझें कठोर राहों से। टल गये तो किया मरद हो क्या। उन बिछे सिर धारों

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साहसी

11 जून 2022
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बीज को धूल में मिला कर भी। जो नहीं धूल में मिला देते। ऊसरों में कमल खिला देना। वे हँसी खेल हैं समझ लेते। धज्जियाँ उड़ते दहलते जो नहीं। सिर उतरते किस लिए वे सी करें। तन नपाते जो सहम पाते नहीं ।

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सच्चे वीर

11 जून 2022
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संकटों की तब करे परवाह क्या। हाथ झंडा जब सुधारों का लिया। तब भला वह मूसलों को क्या गिने। जब किसी ने ओखली में सिर दिया। दूसरे को उबार लेते हैं। एक दो बीर ही बिपद में गिर। पर बहुत लोग पाक बनते ह

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हमारे सूरमे

11 जून 2022
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छोड़ कर लाड़ प्यार लड़ने को। जो हमें बार बार ललकारें। तीर तदबीर हाथ में ले कर। क्यों उन्हें तो न ताक कर मारें। हम लड़ेंगे और लड़ते रहेंगे। क्यों न वे जी जान से हम से लड़ें। धो न बैठेंगे हितों

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आनबानवाले

11 जून 2022
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बीसियों बार छान बीन करें। पर चलें वे न और का मत लें। जी करे ढाह दें बिपत हम पर। पर उतारें न कान के पतले। जो लगाये कहें लगी लिपटी। वे कभी बन सके नहीं सच्चे। क्यों भला बात हम सुनें कच्ची। हैं न

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याद

11 जून 2022
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क्या रहे और हो गये अब क्या। याद यह बार बार कहती है। सोच में रात बीत जाती है। आँख छत से लगी ही रहती है। हुन बरसता था, अमन था, चैन था। था फला-फूला निराला राज भी। वह समाँ हम हिन्दुओं के ओज का। आ

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ललक

11 जून 2022
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बीत पाते नहीं दुखों के दिन। कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें। देखने के लिए सुखों के दिन। है हमारी तरस रहीं आँखें। सुख-झलक ही देख लेने के लिए। आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े। बात हम अपने ललक की क्या

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कचट

11 जून 2022
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क्या न हित-बेलि लहलही होगी। क्या सकेगा न चैन चित में थम। हो सकेंगे न क्या भले दिन फल। क्या सकेंगे न फूल फल अब हम। साँसतें क्या इसी तरह होंगी। जायगा सुख न क्या कभी भोगा। क्या दुखी दिन बदिन बनें

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क्या से क्या

11 जून 2022
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धूल में धाक मिल गई सारी। रह गये रोब दाब के न पते। अब कहाँ दबदबा हमारा है। आज हैं बात बात में दबते। आज दिन धूल है बरसती वहाँ। हुन बरसता रहा जहाँ सब दिन। तन रतन से सजे रहे जिन के। बेतरह आज वे ग

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क्या थे क्या हो गये

11 जून 2022
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भोर-तारे जो बने थे तेज खो। आज वे हैं तेज उन का खो रहे। माँद उन की जोत जगती हो गई। चाँद जैसे जगमगाती जो रहे। पालने वाले नहीं अब वे रहे। इस लिए अब हम पनप पलते नहीं। डालियाँ जिनकी फलों से थीं लदी

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चेतावनी

11 जून 2022
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पिस रहा है आज हिन्दूपन बहुत। हिन्दुओं में हैं बुरी रुचियाँ जगीं। ऐ सपूतो, तुम सपूती मत तजो। हैं तुम्हारी ओर ही आँखें लगीं। हो गया है क्या, समझ पड़ता नहीं। हिन्दुओ, ऐसी नहीं देखी कहीं। खोल कर क

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सजीवन जड़ी

11 जून 2022
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दुख बने वह अजब नशा जिस में। मौत का रूप रंग ही भावे। जाति-हित के लिए मरें हँसते। आह निकले न, दम निकल जावे। काम लेते जो विचारों से रहे। हाथ वे बेसमझियों के कब बिके। जो छिंके जी की कचाई से नहीं।

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बूते की बात

11 जून 2022
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चाहिए आँखें खुली रखना सदा। दुख सकेंगे टल नहीं आँखें ढके। सूख जाते हैं बिपद को देख जब। किस तरह से सूख तब आँसू सके। जाँयगे पेच पाच पड़ ढीले। छेद देगा कुढंग बरछी ले। खोज कर के नये नये हीले। आँख

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सूझ बूझ

11 जून 2022
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उलझनों को बढ़े बखेड़ों को। सैकड़ों टालटूल कर टालें। बात जो भेद डाल दे उस को। जो सकें डाल पेट में डालें। तो बखेड़े करें बहुत से क्यों। जो कहे बात, बात हो पूरी। काम हो कान के उखेड़े जो। जो घुसे

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पते की बातें

11 जून 2022
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क्यों जम्हाई आ रही है बेतरह। इस तरह से आँख क्यों है झप रही। देख लो सब ओर क्या है हो रहा। बात सुन लो, आँख खोलो तो सही। जाति को है अगर जिला रखना। तो न मीठी को मान लें खट्टी। भेद का बाँध बाँधती ब

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सुधार की बातें

11 जून 2022
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तब भला क्या सुधार सकेंगे हम। जब कि सुनते सुधार नाम जले। देखने के समय कसर अपनी। छा गया जब अँधेरा आँख तले। अनसुनी कर सुधार की बातें। कूढ़ कैसे भला कहलवा लें। खोट रह जायगी उसे न सुने। कान का खों

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भाग

11 जून 2022
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हैं पड़े भूल के भुलावों में। कब भरम ने भरम गँवा न ठगा। क्या कहें हम अभाग की बातें। आज भी भाग भूत भय न भगा। बिन उठाये न जायगा मुँह में। सामने अन्न जो परोसा है। है भरी भूल चूक रग रग में। भाग का

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मेल जोल

11 जून 2022
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तो कहेंगे मिलाप परदे में। है बुरी मौत की हुई संगत। रंग बदरंग कर हमारा दे। जो किसी मेल जोल की रंगत। लाख उनको रहें मिलाते हम। हैं न बेमेल मन मिले रहते। है मुलम्मा किया हुआ जिस पर। मेल उस मेल को

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सबल निबल

11 जून 2022
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जब न संगत हुई बराबर की। तब भला कब बराबरी न छकी। साथ सूरज हुए चमकता क्या। चाँद की रह चमक दमक न सकी। जो कड़ाई मिल सकी पूरी नहीं। क्यों न चन्दन की तरह घिस जाँयगे। आप हैं संगीन वैसे हम न तो। संग

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दिल के फफोले

11 जून 2022
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पौ फटी है निकल रहा सूरज। हैं सभी लोग ढंग में ढलते। देख करके मलाल होता है। आप हैं आँख ही अभी मलते। लड़ पड़े पोत के लिए सग से। दूसरे लूट ले चले मोती। एक क्या लाख बार देखे भी। आँख इस की हमें नही

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अपने दुखड़े

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जब कि जीना न रह गया जीना। तब भला है कि मौत ही आती। जब कि उठना बहुत सताता है। आँख तो बैठ क्यों नहीं जाती। वार करना भी जिन्हें आता नहीं। चल सकी तलवार उन की कब कहीं। सिर उठा कैसे सकेंगे वे भला।

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जी की कचट

11 जून 2022
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जो बड़े बेपीर को पिघला सके। जाय टल जिस से बिपद बादल घिरा। चाहिए जैसा गरम वैसा रहे। हम सके ऐसा कहाँ आँसू गिरा। छोड़ दें आप अठकपालीपन। मत करें होठ काट काट सितम। हो चुके काठ गाँठ का खोकर। रो चुक

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समय का फेर

11 जून 2022
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धान विभव की बात क्या जिन के बड़े। रज बराबर थे समझते राज को। है तरस आता उन्हीं के लाड़ले। हैं तरसते एक मूठी नाज को। क्या दिनों का फेर हम इस को कहें। या कि है दिखला रही रंगत बिपत। थी कभी हम से न

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फटकार

11 जून 2022
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बात चिकनी कपट भरी कह कर। जब कि वह जाति पर बला लावे। जब रही खींचतान में पड़ती। जीभ तब खैंच क्यों न जी जावे। पेट की चापलूसियों में पड़। गालियाँ जो कि जाति को देवें। चाहिए तो बिना रुके हिचके। जी

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लानतान

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जब कि कस ली पत गँवाने पर कमर। पर उतरने का रहा तब कौन डर। बेपरद क्यों हों न परदेवालियाँ। पड़ गया परदा हमारी आँख पर। नित कचूमर है धरम का कढ़ रहा। है भली करनी कलपती दुख भरी। जो गई हैं बाहरी आँखें

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बढ़ावा

11 जून 2022
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काम में देर तब न कैसे हो। दिल गया भूल भाग वाले का। अब लगेगी न देर होने में। जब लगा हाथ लागवाले का। वार तलवार कर पड़ें पिल हम। कूर को सूर साधना सिखला। मोड़ कर मुँह मिजाज वालों का। दें मँजें हा

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कोर कसर

11 जून 2022
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कोयलों पर हम लगाते हैं मुहर। पर मुहर लुट जा रही है हर घड़ी। मिट गये पर ऐंठ है अब भी बनी। है अजब औंधी हमारी खोपड़ी। है कहीं रोक थाम का पचड़ा। है कहीं काट छाँट का ऊधम। अब इसे देख हम सकें कैसे।

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फूट

11 जून 2022
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लुट गये पिट उठे गये पटके। आँख के भी बिलट गये कोये। पड़ बुरी फूट के बखेड़े में। कब नहीं फूट फूट कर रोये। बढ़ सके मेल जोल तब कैसे। बच सके जब न छूट पंजे से। क्यों पड़ें टूट में न, जब नस्लें। छूट

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भारी भूल

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सूझ औ बूझ के सबब, जिस के। हाथ में जाति के रहे लेखे। है बड़ी भूल और बेसमझी। जो कड़ी आँख से उसे देखे। वे हमारे ढंग, वे अच्छे चलन। आज भी जिन की बदौलत हैं बसे। दैव टेढ़े क्यों न होंगे जो उन्हें।

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एका की कमी

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धुन हमारी अलग रही बँधती। एक ही राग कब हमें भाया। जाति रंग में ढले पदों को भी। कब गले से गला मिला गाया। दम सुनाने में नहीं जिस के रहा। है नहीं उस की सुनी जाती कहीं। खोलते तो कान कैसे खोलते। एक

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बेताबी

11 जून 2022
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अब तनिक भी न ताब है तन में। किस तरह दुख समुद्र में पैठें। बेतरह काँपता कलेजा है। क्यों कलेजा न थाम कर बैठें। बेतरह वह लगा धुआँ देने। चाहता है जहान जल जाय। मुद्दतें हो गईं सुलगते ही। अब कलेजा

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बेबसी

11 जून 2022
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बेबसी, हो सदा बुरा तेरा। यह कहाँ ताब जो करें चूँ तक। हम भला कान क्या हिलायें। कान पर रेंगती नहीं जूँ तक। देसहित का काम करने के समय। हम न यों ही डालते कंधे रहे। झंझटों में डाल डावाँडोल कर। पेट

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छूतछात

11 जून 2022
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जो बहुत दुख पा चुके हैं आज तक। कम न दुख होगा उन्हें अब दुख दिये। सब तरह से जो बेचारे हैं दबे। मत उन्हें आँखें दबा कर देखिये। छूत क्या है, अछूत लोगों में। क्यों न उन का अछूतपन लखिये। हाथ रखिये

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हमारे मनचले

11 जून 2022
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सब तरह की सूझ चूल्हे में पड़े। जाँय जल उन की कमाई के टके। जब भरम की दूह ली पोटी गई। लाज चोटी की नहीं जब रख सके। लुट गई मरजाद पत पानी गया। पीढ़ियों की पालिसी चौपट गई। चोट खा वह ठाट चकनाचूर हो।

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सिरधारे या सिरफिरे

11 जून 2022
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लुट गया कोई बला से लुट गया। कुछ नहीं तो गाँठ का उनकी गिरा। है सुधारों की वहाँ पर आस क्या। हो जहाँ पर सिरधारों का सिर फिरा। बढ़ गये मान भूख तंग बने। आप का रह गया न वह चेहरा। देखिये अब उतर न जाय

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ढोंगिये

11 जून 2022
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ढोंग रच रच ढकोसले फ़ैला। जब उन्होंने कि जाति घर घाले। तब रखें पाँव फ़ूँक फ़ूँक न क्यों। और के कान फूँकने वाले। तुम भली चाह को समझ लो तिल। ताल होगा उसे बढ़ा लेना। ताल तिल को न जो बना पाया। काम

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हमारे साधू संत

11 जून 2022
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और की पीर जो न जान सके। वे जती हैं न हैं बड़े ढोंगी। कान जिन के फटे न परदुख सुन। वे कभी हैं कनफटे जोगी। कौन है रंग ढंग से ले सोच। संत हैं या कि संतपन के काल। राख तन पर मले चढ़ाये भंग। लाल आँख

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कसौटी

11 जून 2022
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देखना है अगर निकम्मापन। तो हमें आँख खोल कर देखो। हैं हमीं टालटूल के पुतले। जी हमारा टटोल कर देखो। टाट कैसे नहीं उलट जाता। जब बुरी चाट के बने चेरे। दिन पड़े खाट पर बिताते हैं। काहिली बाँट में

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परख

11 जून 2022
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खोट वैसे न खूँट में बँधती। मन गया है खुटाइयों में सन। बान क्यों काटवूट की न पड़े। है भरा वूट वूट पाजीपन। जब पड़ी बान आग बोने की। आग वैसे भला नहीं बोता। मिल सका ढंग ढंगवालों में। ढंग बेढंग में

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वे और हम

11 जून 2022
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चाहते हैं यह तरैया तोड़ लें। बेतरह मुँह की मगर हैं खा रहे। हैं उचक कर हम सरग छूने चले। पर रसातल को चले हैं जा रहे। क्यों सुझाये भी नहीं है सूझता। बीज हैं बरबादियों के बो गये। क्यों अँधेरा आँख

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पोल

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दूसरे बीर बन भले ही लें। बीरता तो हमीं दिखाते हैं। हम उड़ाते अबीर हैं अड़ कर। और बढ़ कर कबीर गाते हैं। मान मरजाद है मरी जाती। आबरू का निकल रहा है दम। भाँड़ भड़वे बनें न तब कैसे। जब कि गाने लग

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ईसवी पंजा

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आँख की पट्टी नहीं तब भी खुली। बिछ रहे हैं जाल अब भी नित नये। क्या कहें ईसाइयों की चाल को। लाल पंजे से निकल लाखों गये। तब सुनायें जली कटी तो क्या। जब पड़े हैं कड़े शिकंजे में। आग ए लोग जब लगा घ

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ताली

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तो भलाई क्या हुई रगड़े बढ़े। नींव झगड़े की अगर डाली गई। हाथ के तोते किसी के जब उड़े। तब बजाई किस लिए ताली गई। झूठ के सामने झुके सिर क्यों। फूल से लोग क्यों उसे न सजें। सच कहें, क्यों न गालियाँ

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वोट

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वोट देते हैं टके की ओट में। हैं सभाओं में बहुत ही ऐंठते। कुछ उठल्लू लोग ऐसे हैं कि जो। हैं उठाते हाथ उठते बैठते। वोट देने से उन्हें मतलब रहा। एतबारों को न क्यों लेवें उठा। वे उठाते हाथ यों ही

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चालाक लोग

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जी चुरायें, करें न हित जी से। जाति को क्यों जवाब दें सूखे। नाम पाकर नमकहराम न हों। नाम बेंचें न नाम के भूखे। जो हितू बन बना बना बातें। जाति-हित के लिए गये बीछे। वे करें हित न तो अहित न करें।

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चार जाति

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जो अजब जोत था जगा देता। जाति में जाति के बसेरे में। देवता जो कि हैं धरातल का। क्यों पड़ा है वही अँधेरे में। जो वहाँ अपना गिराती थी लहू। जाति का गिरता पसीना था जहाँ। अब दिखा पड़ती सपूती वह नहीं

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चार नाते

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चाहिए था सींचना जल बन जिसे। तेल वह उस के लिए कैसे बने। तब भला हम क्यों न जायेंगे उजड़। जब कि जोड़ई ही हमारी जड़ खने। घरनियाँ हैं सभी सुखों की जड़। रूठ सुख - सोत वे सुखायें क्यों। निज कलेजा निक

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हमारी देवियाँ

11 जून 2022
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जाति की, कुल की, धरम की, लाज की। बेतरह ये ले रही हैं फबतियाँ। हैं लगाती ठोकरें मरजाद को। देवियाँ हैं याकि ये हैं बीबियाँ। हम उन्हें तब देवियाँ कैसे कहें। बेतरह परिवार से जब तन गईं। बीबिआना ठाट

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निघरघट

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आज दिन तो अनेक ऊँचों की। रोटियाँ नाम बेंच हैं सिंकती। क्या कहें बात बेहयाई की। हैं खुले आम बेटियाँ बिकती। हैं कहीं बेढंगियाँ ऐसी नहीं। हैं भला हम से कहाँ पर नीच नर। लूटते हैं सेंत मेंत हमें सभ

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बेवायें

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जाति का नास बेतरह न करें। दें बना बेअसर न सेवायें। जो न बेहद उन्हें दबायें हम। तो बबायें बनें न बेवायें। थे उपज पाये दयासागर जहाँ। अब निरे पत्थर उपजते हैं वहाँ। है कलेजा तो हमारे पास ही। पास

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नापाकपन

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देख कुल की देवियाँ कँपने लगीं। रो उठी मरजाद बेवों के छले। जो चली गंगा नहाने, क्यों उसे। पाप - धारा में बहाने हम चले। रंग बेवों का बिगड़ते देख कर। किस लिए हैं ढंग से मुँह मोड़ते। जो सुधार तीरथ

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बेटियाँ

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हैं तभी से पड़ रहीं जंजाल में। जिन दिनों वे थीं नहीं पूरी खिली। धूल में ही दिन ब दिन हैं मिल रही। फूल की ऐसी हमारी लाड़िली। हैं सदा बिकती भुगतती दुख बहुत। धूम हैं उन के उखाड़ पछाड़ की। हम भले

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बेजोड़ ब्याह

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बंस में घुन लगा दिया उसने। औ नई पौधा की कमर तोड़ी। जाति को है तबाह कर देती। एक बेजोड़ ब्याह की जोड़ी। जो कली है खिल रही उसके लिए। बर पके, सूखे फलों जैसा न हो। दो दिलों में जाय जिस से गाँठ पड़।

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बूढ़े का ब्याह

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आप जो वे मर रहे हैं तो मरें। क्यों मुसीबत बेमुँही सिर मढ़ेंगे। वे चेताये क्यों नहीं हैं चेतते। जो चिता पर आज कल में चढ़ेंगे। हो बड़े बूढ़े न गुड़ियों को ठगें। पाउडर मुँह पर न अपने वे मलें। ब्य

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कच्चे फल

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हो गया ब्याह लग गईं जोंकें। फूल से गाल पर पड़ी झाईं। सूखती जा रहीं नसें सब हैं। भीनने भी मसें नहीं पाईं। पड़ गया किस लिए खटाई में। क्यों चढ़ी रूप रंग की बाई। फिर गई काम की दुहाई क्यों। मूँछ भ

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लथेड़

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हैं बहुत बच्चे भटकते फिर रहे। औरतें भी ठोकरें हैं खा रही। अब भला परदा रहेगा किस तरह। जो उठेगा आँख का परदा नहीं। वे बिचारी फूल जैसी लड़कियाँ। जो नहीं बलिदान होते भी अड़ीं। आँखवाले हम तुम्हें कै

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लताड़

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क्या किसी खोह में पड़ी पा कर। लड़कियाँ लोग हैं उठा लाते। जो बड़े ही कपूत लड़कों से। हैं तिलक बेधड़क चढ़ा आते। हैं न भलमंसियाँ जिन्हें प्यारी। है जिन्हें रूपचन्द से नाता। जब न मुट्ठी गरम हुई उन

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लोकसेवा

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हव्वियिाँ तो काम देती हैं नहीं। काम आता है न उस का चाम ही। वह बना है लोकसेवा के लिए। साथ देना हाथ का है काम ही। जो उसे उस का सहारा हो नहीं। तो सकेगा काम पल भर चल नहीं। जो न सेवा तेल बल देवे उस

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जातिसेवा

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काम मुँह देख देख कर न करे। मुँह किसी और का कभी न तके। जातिसेवा करे अथक बन कर। न थके आप औ न हाथ थके। हो भला, वह हो भलाई से भरा। भाव जो जी में जगाने से जगे। जातिहित, जनहित, जगतहित में उमग। जी ल

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धर्म

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जोत फूटी गया अँधेरा टल। हो गई सूझ-सूझ पाया धन। दूर जन-आँख-मल हुआ जिस से। धर्म है वह बड़ा बिमल अंजन। रह सका पी जिसे जगत का रस। रस - भरा वह अमोल प्याला है। जल रहे जीव पा जिसे न जले। धर्म - जल -

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धर्म की धाक

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है चमकता चाँद, सूरज राजता। जोत प्यारी है सितारों में भरी। है बिलसती लोक में उस की कला। है धुरे पर धर्म के धरती धरी। धर्म - बल से जगमगाती जोत है। है धरा दल फूल फल से सोहती। जल बरस, बादल बनाते ह

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धर्म की धुन

11 जून 2022
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है पनपने फूट को देता नहीं। धर्म आपस में करा कर संगतें। है बढ़ाता पाठ बढ़ती के पढ़ा। है चढ़ाता एकता की रंगतें। धर्म है काम का बना देता। काहिली दूर काहिलों की कर। खोल आँखें अकोर वालों की। कूर क

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धर्म का बल

11 जून 2022
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रंग अनदेखनपन नहीं लाया। अनभलों को न सुधा रही तन की। धर्म की आन बान के आगे। बन बनाये सकी न अनबन की। बद लतों की बदल बदल रंगत। धर्म बद को सुधार लेता है। दूर करता ठसक ठसक की है। ऐंठ का कान ऐंठ दे

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धर्म का कमाल

11 जून 2022
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धर्म ऊँचे न जो चढ़ा पाता। तो न ऊँचे किसी तरह चढ़ती। जो बढ़ाता न धर्म बढ़ कर के। तो बढ़ी जाति किस तरह बढ़ती। क्यों बहुत देस में न हो बसती। क्यों न हो रंग रंग की जनता। धर्म निज रंगतें दिखा न्यार

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धर्म की करामात

11 जून 2022
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जब भलाई मिली नहीं उस में। किस तरह घर भली तरह चलता। क्यों अँधेरा वहाँ न छा जाता। धर्म-दिया जहाँ नहीं बलता। जो कि पुतले बुराइयों के हैं। क्यों न उन में भलाइयाँ भरता। देवतापन जिन्हें नहीं छूता।

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छतुका

11 जून 2022
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किसी के कभी यों बुरे दिन न आये। किसी ने कभी दुख न ऐसे उठाये। भला इस तरह हाथ किस ने बँधाये। किसी ने कभी यों न आँसू बहाये। हमारी तरह बात किस ने बिगाड़ी। उलहती हुई बेलि किस ने उखाड़ी। हमारे लिए आ

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निकम्मापन

11 जून 2022
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नहीं चाहते जो कभी काम करना। नहीं चाहते जो कि जौ भर उभरना। नहीं चाहते जो कमर कस उतरना। कठिन हैं कहीं पाँव जिन का ठहरना। करेंगे न तिल भर बहुत जो बकेंगे। भला कौन सा काम वे कर सकेंगे। जिन्हें भूल

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सच्चे काम करने वाले

11 जून 2022
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दुखों की गरज क्यों न धरती हिलावे। लगातार कितने कलेजे कँपावे। बिपद पर बिपद क्यों न आँखें दिखावे। बिगड़ काल ही सामने क्यों न आवे। कभी सूरमे हैं न जीवट गँवाते। बलायें उड़ाते हैं चुटकी बजाते। रुका

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ढाढस

11 जून 2022
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सभी दिन कभी एक से हैं न होते। बहे हैं यहाँ साथ सुख दुख के सोते। हँसे जो कभी थे वही ऊब रोते। मिले मंगते मोतियों को पिरोते। अभी आज जो राज को था चलाता। वही कल पड़ा धूल में है दिखाता। कभी फेर से ह

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