बीत पाते नहीं दुखों के दिन।
कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें।
देखने के लिए सुखों के दिन।
है हमारी तरस रहीं आँखें।
सुख-झलक ही देख लेने के लिए।
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।
बात हम अपने ललक की क्या कहें।
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।
11 जून 2022
बीत पाते नहीं दुखों के दिन।
कब तलक दुख सहें कुढ़ें काँखें।
देखने के लिए सुखों के दिन।
है हमारी तरस रहीं आँखें।
सुख-झलक ही देख लेने के लिए।
आज दिन हैं रात-दिन रहते खड़े।
बात हम अपने ललक की क्या कहें।
डालते हैं नित पलक के पाँवड़े।
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अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले के निज़ामाबाद में 1865 ई० में हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई जहाँ उन्होंने उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी, बांग्ला और अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया था। उनके कार्य-जीवन का आरंभ मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में हुआ और बाद में क़ानूनगो के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद फिर उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में सेवा दी। उनकी प्रतिष्ठा खड़ी बोली को काव्य-भाषा के रूप में स्थापित करने वाले प्रमुख कवियों के रूप में है और इस क्रम में उनकी कृति ‘प्रिय प्रवास’ को खड़ी बोली का पहला महाकाव्य कहा जाता है। यही कृति उनकी सर्वाधिक प्रसिद्धि का भी कारण है। हिंदी के तीन युगों—भारतेंदु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग—में विस्तृत उनका रचनात्मक योगदान उन्हें हिंदी कविता के आधार-स्तंभों में से एक के रूप में स्थान दिलाता है। D