पार्ट 1
प्रचीन चन्द्रपुरी राज्य में एक अनुशाषित एवं प्रजावत्सल राजा वैभवराज हुए। वैभवराज का राज्य हर तरह से खुशहाल राज्य था। वैभवराज के दरबारी विद्वानों में एक विद्वान विशम्भर थे। जो अत्यंत प्रचंड विद्वान थे। राजदरबार मे उनका कद राजा के बाद सबसे बड़ा होता था। राजा का सेनापती चक्रधर थे जो युद्धकला में प्रखर थे एवं कुशल रणनीतिज्ञ थे।
शाही परिवार में रानी तारामती थी। जो राजा की हर सम्भव राज काज में सहायता करती थी। प्रतिदिन राज दरबार मे राजा प्रजा की समस्याओं का निपटारा करते थे और तारामती हर सम्भव अपने विचारों से राजा की सहायता करती। हर प्रकार से वैभवराज का राज्य सम्पन्न था। बस कमी एक थी कि वैभवराज के कोई संतान नही थी। विवाह के कई वर्ष बीत जाने पर भी जब राजा के कोई संतान नही हुई तो राज परिवार के साथ साथ प्रजा को भी चिंता होने लगी।
राजगद्दी का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा? यह सवाल अक्सर राजा और रानी को चिंतित करता था। लेकिन रानी तारामती हमेशा राजा को यह कहकर ढांढस बंधाती की जब तक हम है प्रजा को कोई समस्या नही होने देंगे। और फिर भगवान हमारे साथ इतना गलत नही करेगा। आप बस सब्र रखिये सब्र का फल मीठा होता है।
रानी की बात वैभवराज मान लेता था मगर फिर भी प्रजा की चिंता में वो हमेशा उदास रहता कि मेरे बाद प्रजा को कौन संभालेगा। पड़ोसी राजा जो कि एक क्रूर शासक था वो हमेशा ही चन्द्रपुरी पर राज करने का सपना देखता रहता था। लेकिन चक्रधर की रणनीति और सेना के पराक्रम के सामने उसकी हिम्मत नही होती थी। चन्द्रपुरी की सेना के बहादुरी के किस्से कोने कोने में फैले थे।
एक तरफ़ चक्रधर और सेना का शौर्य था तो दूरी तरफ विशम्भर का ज्ञान जो राजा को हर समस्या से निपटने में बहुत सहायक थे। चक्रधर के एक पुत्र था जिसको वो हमेशा सेना के शिविर में ले जाते और बहादुर सैनिकों के किस्से सुनाते तथा शस्त्र विधा सिखाते। चक्रधर का पुत्र कार्तिक जल्द ही शस्त्र विधा में पारंगत होता जा रहा था। अपने पिता के गुण वो बखूबी अपना रहा था।
दरबारी विद्वान के भी एक पुत्र था, मार्तण्ड। मार्तण्ड भी अपने पिता की तरह बहुत बुद्धिमान था। विशम्भर ने अपने पुत्र को शस्त्र विद्या सिखाने के बाद शास्त्र विद्या का अध्धयन करने काशी भेज दिया।
सन्तान ना होने के कारण राजा अकेले में अक्सर सोचता कि काश चक्रधर और विशम्भर की तरह मेरा भी एक पुत्र होता, जिसको में हर तरह से हर विद्या में पारंगत करता और राज्य की कुशहाली के लिए उसे राजगद्दी पर बैठाता। राजा की यह उदासी सिर्फ तारामती ही दूर कर सकती थी जो हमेशा करती भी थी।
एक दिन विशम्भर ने राजा को बताया कि विराटनगर में एक देवी है जो सबकी मनोकामना पूरी करती है। आप वहां के राजा से अनुमति लेकर देवी के दर्शन कीजिये और प्रार्थना कीजिये।
विशम्भर की हर बात सच होती थी तो राजा को उन पर पूरा भरोसा था। विराटनगर के राजा से अनुमति लेकर वैभवराज देवी की पूजा अर्चना करता है और मन्नत मांगता है। एक वर्ष बाद राजा के जुड़वां सन्तान होती है। एक लड़का और एक लड़की।।।
क्रमशः--///