पाँव पखेरू पिया
जब पांवों की पायल करती छन छन शोर सुंदर भाव उकेरती तब होती हैं भोर मन मंदिर में दहकती वह कन्या चितचोर अंखियों से बातें करती दिल की वह चोर ।।
हाथों से पकड़ लाली अधरो पे सजाए उस लाली का रंग गुलाबी महकती विभोर माथे पर बिंदिया लगाए दिखी चांदनी कोर उस बिंदीया का रूप दिखे जैसे कोई मोर ।।
मैं खड़ी इस पार प्रीतम तुम खड़े उस पार इस नदियां ने रोक रहा है जीवन का सार तुम बांसुरी सुर सुनाए सरगम कीर्तन ताल उस प्रीत स्वर संगम में डूबती नैया पार ।।
प्रातः चिड़ियां आई आंगन करती मुझसे बात तेरे सजना कहां खड़े हैं बताओं आज क्या कहूं उस पखेरू से पिया अब कथन नहीं साथ घर की वीणा मेरे सपन का साज ।।
घर की तुलसी दे रही है बड़ी लगन सौगात अंबर का रंग नीला कहूं बड़ा सजीला बागा बीच मोर पपिया गाय मधुर गीत बुलबुल तराने बदल रही सजना नयन बड़ा कटीला ।।
झिलमिल झिलमिल प्यारे लगते अंबर के चंदा तारे घर देहरी पर दीपरखें ताकते रूप अंगारे चंद्रमा रजनी को रैन नूर बरसाएं उंगता सूरज मृग जगाकर धरा पर सरसिज सिंगारे ।।
तुझे पुकारूँ मेरे सजना संवरना तेरे साथ मुकुर मंद चल हों चला लिए हिय मिलन की आस बीत गया मधुमास गोधूलि वेला नहीं दे रही साथ अब दिन नहीं कटते आजाओ पास ।।
तुम करते हो बादलों से मीठी-मीठी बात झरनों से संगीत सीखते दिन सारी रात पहाड़ों से नृत्य कराना यह तुम्हारा काम में मेघ वर्षा से बात करती मिले बादल का रंग ढंग ।।
हम चलेंगे साथ में प्रेम की उस डगर मेरी सांसों में सदा तुम ही मेरे हमसफर हमारे मिलने पर गुलाब का फूल होंगा उस लजीज व्यंजन चखकर बगिया को अंबर बात सुनाएंगा ।।
अख्यों की पुस्तक खुलकर नदियां कपोल सजाती हैं उस आंगन की तुलसी भी मुखमंडल से मुस्कुराती है रंगबिरंगे पुष्प सजाती संदूक में जो चिट्ठी पिया याद बहुत दिलाती हैं ।।
भारमल गर्ग "साहित्य पंडित"
पुलिस लाईन जालोर (राजस्थान)
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