शाम के 6 बज चुके थे घर जाते हुए अक्सर मै मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ जाया करता था. उस दिन मेरी नज़र फूल बेचने वाली पर पड़ी. 10-12 साल की एक मासूम लड़की, बदन पर मैली सी फ्रॉक, हाथों में फूलो की टोकरी लिये वह मंदिर जाने वाले सभी लोगो के पीछे दौड़ती और कहती, " फूल ले लो बाबूजी, भगवान पर चढ़ा देना वो खुश हो जाएंगे". कोई ले लेता और कोई बिना लिए ही मंदिर में घुस जाता. फूल वाली को देखकर लगा पढ़ने की उम्र में मासूमियत भगवान की चौखट पर सिर पटक रही है. कौन जाने भगवान किस रूप में आकर उसे कब सम्भाल ले. तभी एक नौजवान तेजी से चलता हुआ फूल वाली से जा टकराया, फिर कुछ ही क्षण बाद नौजवान मुडकर आया और उसने मासूम को पकड़ लिया, " चोरी करती है, शर्म नहीं आती".
" बाबूजी मैंने कुछ नहीं चुराया, मै चोर नहीं हूँ".
" अरे, अभी मेरा पर्स मेरी जेब से निकाल लिया और झूठ भी बोलती है".
मासूम चीख - चीख कर रोने लगी, पर उसकी फ़रियाद सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था.........शायद भगवान भी नहीं.
नौजवान की नज़र फूलवाली की टोकरी पर पड़ी तो उसने वो भी छीन ली
" दिखा इसमें फूलों के नीचे क्या है". .......... सभी फूल सड़क पर फैल गए. मासूम रोती रह गई.
" कुछ नहीं बाबूजी इसमें रोटी है.............. आज मेरी बहिन का जन्मदिन है, सोचा था शाम को फूल बेच कर जो पैसे आयेंगे, उनसे, उसके लिए कुछ ले जाऊँगी, इसलिये आज सुबह से हमने रोटी नहीं खायी थी. .......... क्या करें बाबूजी हम अनाथ गरीबों का जन्मदिन ऐसे ही होता है.