पाँच जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर दुनिया भर में जागरुकता की दृष्टि से कई आयोजन होते हैं, और इस वर्ष भी हुए थे. यह ख़ुशी की बात है कि पिछले कुछ अरसे में पर्यावरण सुरक्षा की ओर लोग पहले से अधिक जागरूक हुए हैं. लेकिन पेड़ - पौधों और वायुमंडल से जुड़े पर्यावरण के संरक्षण के अलावा एक और प्रदूषण की रोकथाम भी जरूरी
है और वह है सामाजिक प्रदूषण.
यह सामाजिक प्रदूषण कई माध्यमों से फैल रहा है जिसमे टेलिविजन प्रमुख है. जब टेलिविजन प्रचलन में आया तो शहर के चौराहों और गाँव की चौपालों पर लगने वाली रौनक को घर की बैठक
तक समेट दिया और आपसी चर्चाओं से उपजने वाला बौद्धिक विकास भी स्क्रीन पर निगाहें गड़ाये बैठे रहने वाले
व्यक्ति के भीतर कहीं गुम होकर रह गया. राष्ट्रीय टीवी चैनलों की दौड़ व्यक्ति की स्वयम निर्णय लेने की क्षमता को कहीं ना कहीं प्रभावित तो कर ही रही है, साथ ही उसे दिन भर ऐसी सामग्री भी परोस रही है जिसमे अश्लीलता का छोंक नज़र आता है. लोकप्रिय लोगो के घरेलू किस्से एवं प्रेमी- प्रेमिका के बीच आपसी झगड़े की खबर भी कई राष्ट्रीय चैनलों की
सुर्खियां बन जाती है इन सबका प्रसारण करने में जो उद्देश्य झलकता है वो सिर्फ़ अपनी दर्शक संख्या ( टी आर पी ) बढ़ाने का प्रयास ही है. इन सबकी रोकथाम ज़रूरी है जिससे युवाओं में फैला सामाजिक प्रदूषण दूर हो सके.... इसके लिए सामाजिक विकास जैसे दहेज विरोध, साक्षरता या कुरीति उन्मूलन की दिशा में कार्य, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं नैतिक उन्नति की प्रेरणा देने वाले कार्यक्रमों को पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए, जिससे सामाजिक प्रदूषण दूर हो सके.