'शिगाफ़' और 'शालभंजिका' जैसे उपन्यासों के बाद मनीषा कुलश्रेष्ठ का नया उपन्यास 'पंचकन्या' कई पुराणों और मिथकों की अन्तर्धव्नियों को अपने में समेटे वर्तमान की ज़मीन पर भारतीय स्त्री के जीवन, उसकी अस्मिता, उसके स्वप्नों और भविष्य की संभावनाओं को नए सिरे से देखने की कोशिश में लिखा गया एक प्रयोगात्मक उपन्यास है. वर्तमान समय में आधुनिक स्त्री के जीवन की जटिलताओं के धागे बिलगाती इस कथा के पार्श्व में तारा, कुन्ती, अहिल्या, द्रोपदी, मन्दोदरी जैसे मिथकीय चरित्रों की छाया दिखाई देती है और ऐसा अनायास नहीं है बल्कि मनीषा ने सायास इन मिथकीय चरित्रों को बारीकी से देखते हुए 'मॉर्डन फेमेनिज़्म' के सन्दर्भों में बिलकुल नए आयाम जोड़ने की कोशिश की है. इसमें आए पौराणिक तथ्यों और संदर्भों के लिए मनीषा ने प्रदीप भट्टाचार्या के लेख ‘पंचकन्या: स्त्री सारगर्भिता’ को आधार बनाया है. जिसका अनुवाद उपन्यास में भी दिया गया है.
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