इच्छाएं स्वयं हम निर्धारित करते है अच्छी और बुरी ....असीमित और प्रगाढता से निरंतरगतिशील चाहे संघर्षों का आमना सामना करना हो चाहे ।एक इच्छा के बाद और इच्छाएं न समाप्त होने की बारबार चाहे कोई भी कदम हो अनिच्छुक हो तो यह अवसाद अविश्वसनीयता और मन को दुखी करती है ।हम ही चाहे तो अपनी इच्छानुसार इच्छाएं रोक सकते है नियंत्रण करके न चाहे तो सुप्तावस्था विश्राम दे कर शांत बैठ जाते है।चाहे सहवास हो या कोई भी आयाम ब्रह्मचर्य में शरीर मन और तन की भूख इच्छाओं पर नियंत्रण होता है और कामुक की इच्छाएं जरा सा भी नग्नता देखकर मन तन को नियंत्रण से बाहर कर देता है ।शारीरिक और मानसिक भी ।इच्छाएं भोजन की जिह्वा के स्वाद को आनंद देकर अधिकतर चटपटेपन की आदी होने लगती है जो अनेक बीमारियाँ पैदा करती है।वाणी को नियंत्रण न हो तो ऊटपटांग गाली गलौच अपशब्द तक अनियन्त्रित होकर बोल देते है स्वयं इच्छित जो क्लेश का कारण बनता है।इच्छाएं असीमित है जो एक के बाद एक पैदा होंगी ।दिखावा भी अपनी इच्छाएं है दूसरो को नीचा दिखाने के लिए अंहकार वश ।
इच्छाएं समिति रखिए । सद्गुण सद्भव बने ये इच्छाएं बनी रहे प्रभु चरणकमलों का दर्शन बुना रहे ।अच्छा लिखिऐ अच्छा बोलिए यही इच्छाएं रखिए।
धन्यवाद
स्वरचित