योग हमारे मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव अंकित करता है।आज की भागमभाग की जीवन शैलियों ने मानव को व्यस्त बनाकर स्वयं से भागकर अस्वस्थ बना दिया है।आज का परिवेश अनुचित आहार विहार खानपान तला भुना शरीर में व्याधियां उत्पन्न करके डाक्टरों की फीस बढाकर मानसिक तनाव बढोतरी करता है,हम अपनी जीवन के कुछ बदलाव करके स्वयं को डायबीटीज , हृदयाघात ,कैलेस्ट्ररोल,और भी कई बीमारियों से बचाव कर सकते है ।सुबह पांच बजे उठकर गुनगुनाना जल का सेवन करना आंतों के लिए लाभप्रद है।योग आज की जरूरत है योग शांत वातावरण में साधक बनकर करने से मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव देकर चेहरे का ओज और औरा मजबूत करता है।ये शरीर पंच तत्वों अग्नि ,जल,वायु,गगन और पृथ्वी से बना है।एक साधक बनकर इस देह को दीपक के समान जलकर तेल और बाती की भांति स्वयं को प्रकाशित करना दुर्लभ लगता है लगातार अभ्यास से योग की राहें आसान है।योग और भोग शरीर की वह क्रिया है जो हम स्वयंभू होकर देखते है नासिक के माध्य दोनो नेत्रों के मध्य या शरीर के सूक्ष्म केन्द्र बिन्दुओं के द्वारों को बंद करके । योग हमें स्थिरता मजबूती देता है।सही मार्गदर्शन और सही निर्णायक मंडल की भांति।भोग से तात्पर्य शारीरिक सम्बंध समझना कतई नहीं ,भोग आंतरिक सप्तसुर शरीर के गुजंयमान शांतिप्रिय होकर नदियों का सुर जंगलों की आवाजें धरा का संगीत स्वयं नजरिए से देखकर बंद आंखों को महसूस करके ही भोगा जाता है। योग साधक को दूरदर्शी बनाता है।ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ का सुर हमारी जिह्वा में हमारी आत्मा की शुद्धीकरण करता है।नासिक और कर्ण को गुंजायमान करता है।योग गृहस्थ जीवन में स्थिरता देता है ,मन और विचार सात्विक होते हैसात्विक भोजन की ओर साधक अग्रसर होते है।मैं कौन का ज्ञान साधक को तत्वज्ञान का आभास करता है।साधक इस संसार में रहते हुए विरले बन जाते है।बुराईयां छू भी नहीं सकता। ब्रह्मचर्य जीवन में वीर्यवर्धकता को शरीर को मजबूती देती है।हमारे ऋषियों ने योग साधना से स्वयं को साधक बनाया।अत: योग करिए साधक बनिए।धन्यवाद ।