मानव जीवन की बौद्धिकी में सर्वश्रेष्ठ है ।बुद्विजीवियों की भांति विकासोन्मुखी अनेक अनवेषण किए।मानव समस्या क्यूं पालता है विचारणीय वार्ता का विषय है।जन्मजात ही गर्भ से संवेदनाओं को समस्याओं को लेकर पैदा होता है और अंत समस्या लेकर ही मृत्युगमन करता है।सहज नहीं अप्राकृतिक बीमारियाँ पालकर दुख में दुखी और सुख में भी दुखी।
मानव और जीव जन्तु का जन्म हुआ परन्तु ईश्वर ने पशुवर्ग जीव जन्तु को भी समस्या दी पर वे सहज निरंतरगतिशील है।स्वयं जैसे अपने में मस्त मंलग सहवास वे भी करते है बच्चें स्वयं
पैदा करते है।और कार्यरत भी रहतें है ।दुख का संयोजना से मुक्त रहकर अपनी जिम्मेदारी पूर्ण करते है।दुख में समस्या का मार्ग मनुष्य ढूँढ़ने लगते है साथ में नई समस्याएं भी लातें है।गरीबी की धन भोजन वस्त्र की समस्या अमीरों में धन खर्च की समस्या ,विवाह न हो तो समस्या ,विवाह हो तो समस्या ,रोजगार की समस्या ,पडोस का व्यक्ति तरक्की करे तो कुंठित मन, न जाने कितनी समस्या है जो हमने ही पैदावारी की जीव बिना समस्या पाले खुश है और मनुष्य ईष्या , राग द्वेष ,की समस्या से क्यूं घिरा है पूजनादि में मन नही भगवान कौन है ?ये भी समस्या का विकार और उत्कंठा कि ईश्वर है तो कहाँ है ?कैसे दिखता है?ये समस्या हमारे आस पास ही लोगों से सुनी जाती है।
समस्या न पैदा करे।कौन क्या कर रहा है? कहाँ जा रहा है??? कौन ,क्या ,कैसे को जीवन से हटाकर मस्त रहे खुश रहे। जिस परिस्थिति में स्वयं को बनाऐगें उतना दुखी और सुखी रहेंगे ।
समस्याऐ आती जाती रहेगी सहज रहे ।ये जीवन है ।
धन्यवाद
सुप्रभात।
स्वयं के विचार...