shabd-logo

कविता - गंगा

25 जुलाई 2022

15 बार देखा गया 15

गंगा

गंगा अपने ही रंग में बह रही थी।

गंगा अपने ही ढंग में रमी हुई थी।

कितनी सहमी और खुद में ही खोई हुई थी मेरी गंगा।

समय के साथ अपने ही सफेद रंग में रंगी हुई थी मेरी गंगा।

क्या पता था जिसने गंगा को थामा था उसने अपने ही रंग में रंग दिया मेरी गंगा को।

बहते बहते अब थक सी गई है ये मेरी गंगा।

सबको सजोते सजोते अब बेरंग सी हो गई है ये मेरी गंगा।

इतने बड़े परिवार को सीचते सींचते अब खोखली सी हो गई है ये मेरी गंगा।

हर एक की ख्वाइश पूरी करते करते अब सुख सी गई है ये मेरी गंगा।

बस करो अब थोड़ा सा थम जाओ खुद और थम जाने दो , खुद में फिर से खो जाने दो , 

अब तो उसको फिर से गंगा बन जाने दो।

बहने दो फिर से , पा जाने दो फिर से वो खुशनुमा सफेद रंग ।

फिर से हमे जी लेने दो और लबों को कह लेने दो ये हैं मेरी गंगा, ये हैं मेरी गंगा।


निखिल श्रीवास्तव

निखिल श्रीवास्तव की अन्य किताबें

अन्य डायरी की किताबें

1

कविता - गंगा

25 जुलाई 2022
1
0
0

गंगा गंगा अपने ही रंग में बह रही थी। गंगा अपने ही ढंग में रमी हुई थी। कितनी सहमी और खुद में ही खोई हुई थी मेरी गंगा। समय के साथ अपने ही सफेद रंग में रंगी हुई थी मेरी गंगा। क्या पता था जिसने गंगा

2

कविता - जोकर हूं मैं

25 जुलाई 2022
1
0
0

जोकर हूं मैंकिसी ने कहा कि तुम हंसते बहोत हो।किसी ने कहा की तुम हसाते बहोत हो।क्यों जोकर बने हुऐ हो और लोगों को हंसाते हो।अब क्या कहूं उनसे , की उनके ही गम उन्ही से चुराने आता हूं।अब क्या कहूं उनसे मै

3

कविता - मां

25 जुलाई 2022
0
0
0

मांजब मैं छोटा था तब तू थी जिसने मुझेअपना सपना समझा था मां।वो तू थी जिसने मुझे पहली बार भूख लगने पे सीने से लगाया था मां ।जब मैं सोते - सोते डरा या सहमा तो तू थी जो मेरे पास थी मां ।जब मैंने अपना पहला

4

कविता - समझो ना

25 जुलाई 2022
0
0
0

समझो नाइशारों को तुम हमारे ऐ सनम अब समझो ना ।क्या बोलती है ये आंखे , इन आंखों की भाषा को तुम अब समझो ना ।दे रही है दस्तक मेरी धड़कने तेरे दिल को , उन धड़कनों के इशारों को अब समझो ना।इशारों को तुम

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए