11 अगस्त 2022
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विजयी विश्व तिरंगा हमारा।लगता है ये जान से प्यारा।।शान कभी न जाने पाए।मान सभी हम रखने पाए।।सभी धर्म के लोग यहां।आपस में मिलकर रहते जहा
श्रावण शुक्ल पंचमी को,पर्व नाग पंचमी आया।रक्षा करने तक्षक नाग,वंश नाग का बचाया।।ऋषि ने डाला कच्चा दूध,आग तप से बचाने हेतु।वंश तभी बच &
आजादी के अमृत काल में,हर घर तिरंगा अभियान है।हमारे भारत की शान है,तिरंगा ये हमारी पहचान है।।वेशभूषा हमारी भिन्न- भिन्न,हम इस भारत के वासी हैं।प्रांत हमारे हैं भिन्न- भिन्न,चहुं दिशाओ
समय और शब्द का तुम,न लापरवाही से करो प्रयोग।वरना दुनिया की भीड़ में,होगा तुम्हारी ही उपयोग।।गलत बोलने पर कभी,वह वापस नहीं आता।शब्द तीर की तरह होता,कमान में वापस नहीं आता।।जो कल समय था आज नहीं,आज के पल
काल चक्र का फेर है आवा।मन का मन का फेर बढ़ावा।।कालचक्र में हे रघुकुल नंदन,चाहे जितने हो ये प्रीति वंदन।।चौदह वर्ष वनवास का पाया।घास पात का बिछौना पाया।।वन उपवन में विचरण पाया।कंद मूल रूप फल सब खाया।।स
दोस्ती एक अनमोल गहना,रूठना मनाना चलता रहता।नाराज़ होने पर शांत रहना,नाराज़ हो गए मानना चलता।।दोस्ती एक अनमोल गहना,विचार विमर्श मंच चलता।न शिकवा न शिकायत हो,शब्द आदान प्रदान चलता।।दोस्ती एक अनमोल गहना,
खेलकूद में प्रतिभागियों ने,भारत का मान बढ़ाया है।अग्रज बन इस देश प्रेम से,देश का अभिमान बढ़ाया है।।भारत के वासियों ने खेलों से,मानवता नियति अपनाया है।खेल के जरिए समानता से,भारत का परचम लहराया है।।स्वर
रेशम के धागे से बंधा,भाई बहन का प्यार।आया रक्षा बंधन देखो,राखी का यह त्यौहार।।प्यार देखो ऐसे संजोए,ये भाई और बहन का।करता वादा भाई ऐसे,बहन की रक्षा करने का।।मोल नहीं कोई भी देखो,इस प्यार भरे रिश्ते का।
आय रक्षा पर्व आस,एक दूजे से परिहास।पावन पर्व यह मास,मन से होते ये पास।।समय के होते दास,दूर रह होता हास।पास हो तो उल्लास,एक दूजे से उपहास।।डाक भेजे तो संत्रास,दूर रह होकर पास।आय मायके परिहास,यादे रचे इ
घर घर है तिरंगा अभियान।झंडा रहे भारत की शान।।आजाद है तो अमृत काल।पूर्ण हो रहा पचत्तर साल।।हर कोई झंडा फहराना।मिलकर भाईचारा जाना।।हम इस भारत के है वासी।चहुं दिशाओं रहते वासी।।अनेकता में एकता जाना।सर्व
भारत का अभिमान तिरंगा।जन जन का है मान तिरंगा।।गांव गांव और शहर शहर।चहुंओर फहराए तिरंगा।।आजादी का यह अमृत काल।पूर्ण हो रहा पचत्तहर साल।।घर घर की है शान तिरंगा।हम सब का है मान तिरंगा।।धरती अ
स्वतंत्रता दिवस को मिलकर भाईचारा अपनाओ।आजादी के इस अमृत महोत्सव को सब मनाओ।।गंगा यमुना के इस तहज़ीब को सभी धर्म अपनाओ।सभी धर्म के लोग यहां अब राष्ट्र धर्म को अपनाओ।।आजादी के इस अमृत काल को अब तुम सब ज
आयो नंद घर ललना, ब्रज में मची खुशहाली। घर घर दीप जल रहे, बजा रहे हैं थाली।। बगिया में फूल खिल रहे, सीचें बगिया का माली। धरती अंबर झूम रहा, धरा पे छाई हरियाली।। पत्त
कान्हा ने बांसुरी बजाई।राधिका भी भागती आई।।ग्वाल बाल संग धेनु चरावे।वन उपवन भी घुलमिल जावे।।मोर मुकुट पीताम्बर धारी।देख देख जग बलिहारी।।कहे यशोदा नंद के लाला।श्याम सलोना वो है
आज का आधुनिक भारत।किसी को मिलती नहीं राहत।।महंगाई पकड़े अब जोर है।सब करते यही अब शोर है।।गरीबों का होता बुरा हाल।अमीर और होते मालामाल।।नेतागण कैसे पैसे ये कमाते।मध्यम वर्गीय हि
गुरुकुल में शिक्षा दीक्षा,शिष्य ग्रहण करें दिन रैन।चाहे करें वह चाकरी,या फिर हो शिक्षा रैन।।गुरुकुल में रहकर शिष्य,सीखते है जीवन के पाठ।गुरु की सेवा सुश्रुषा से,पाते गुरुकृपा का पाठ।।वृक्ष तले खुले आस
आज का यह युवा भारत,लोकतांत्रिक मुख्य आधार।राजनीति और विकास पर,युवा अग्रसर और है तैयार।।आज का यह युवा भारत,शक्ति से यह परिपूर्ण है।देश स्वाधीनता इसकी,योगदान बेहतरी सम्पूर्ण है।।आज का यह युवा भारत,मार्ग
जल ही प्रथ्वी का जीवन है,जीवनशैली इस पे निर्भर है।अस्तित्व जीवन धरती पर,जल से संभव है धरती पर।।ब्रह्माण्ड का अपवाद धरा पर,जीवन चक्र होता मनुष्य का।जल से संरक्षित ये रहता है,मन मस्तिष्क भी मनुष्य का।।ब
आज हमारी ईश्वर में आस्था,है कितनी यह देखो जरा।कोई तो करता पूजा साधना,कोई करे ऐसे खिलवाड़ जरा।।न उड़ाए मजाक आस्था का,न आस्था को ही संसाधन।करे ईश्वर की अर्चना याचना,न ही पब्लिसिटी का साधन।।ईश्वर का भी म
खेल जगत में क्रिकेट का,बैट बल्ले का होता काम।खेल खेल की तरह खेल,दुश्मनी का न कोई काम।होता है दो पक्षों के बीच,जीतने को आतुर नाम।।कोई फेंकता है गेंद को,तो बैट से लेता है काम।।खेल क्रिकेट टीम संयुक्त,एक
अवैध निर्माण क्यों होते,रिश्वतखोरी में पलते हैं।जाग मुसाफिर भोर भई,इस जाल में फंदे कसते हैं।।टूट जाता है वह आशियां,जो अवैध निर्माण से होता।न जमीं पर न आसमां नजर,जमींदोज वह फिर हो जाता।।अवैध निर्माण के
भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि,आई पावन हरतालिका तीज।रखें व्रत यह कुवांरी सुहागिनें,संकल्प करें हरतालिका तीज।।लगा कर मेहंदी हाथों में,पावन निर्जला व्रत रखती।प्रतीक होता अखंड सौभाग्य,नक्षत्रों का आशीर्वाद पा
जिंदगी भी क्या पहेली,समझ गया तो सहेली।जो न समझ सका तो,होती है अनबूझ पहेली।।जिंदगी जीने का ढंग,तय करे खुद इंसान।कभी कभी न समझे,बदल जाता है इंसान।।जिंदगी की पहेली भी,अजीबोगरीब कारनामे।कभी खुशी तो कभी गम
सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू
हे गजानन करुणानिधान,विघ्नविनाशक मूषकवाहन।शिव पुत्र पार्वती के नंदन,बारम्बार तुम्हें अभिनंदन।।एकदंत हो दयावंत हो,चार भुजा हो तुम धारी।मस्तक सिंदूर सोहे तुम्हरे,लम्बोदर और हो त्रिपुरारी।।कुशाग्र बुद्धि