हे गजानन करुणानिधान,
विघ्नविनाशक मूषकवाहन।
शिव पुत्र पार्वती के नंदन,
बारम्बार तुम्हें अभिनंदन।।
एकदंत हो दयावंत हो,
चार भुजा हो तुम धारी।
मस्तक सिंदूर सोहे तुम्हरे,
लम्बोदर और हो त्रिपुरारी।।
कुशाग्र बुद्धि के ज्ञाता,
महिमा तुम्हारी अपरम्पार।
विघ्न हरो जीवन के सारे,
विनती करूं मैं बारम्बार।।
हे गजानन गणाधिपती,
घर आओ विराजे हमारे।
मोदक का भोग लगाउं,
पुष्प वर्षा करूं तुम्हारे।।
सिद्धि विनायक गणपति,
सिद्ध करो सब कार्य हमारे।
विघ्नहर्ता सुख कर्ता तुम,
विघ्न बाधाओं को हरो हमारे।।