जल ही प्रथ्वी का जीवन है,
जीवनशैली इस पे निर्भर है।
अस्तित्व जीवन धरती पर,
जल से संभव है धरती पर।।
ब्रह्माण्ड का अपवाद धरा पर,
जीवन चक्र होता मनुष्य का।
जल से संरक्षित ये रहता है,
मन मस्तिष्क भी मनुष्य का।।
बूंद बूंद जल संचित कर ,
बनती पोखर नदी सागर।
जैसे ज्ञान प्रकाश विस्तृत,
समा जाती गागर में सागर।।
उचित रख रखाव संचित कर,
जल को करता यह संरक्षित।
संचित कर यह वर्षा का जल,
तालाब पोखर भी हो रक्षित।।
जल की कमी प्रभावित करती,
रोज नियमावली यह जीवन।
जल बिना जीवन होता शून्य,
जागरूकता से ही हो जीवन।।
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