महारानी दुर्गावती का जन्म सन 1527 ई. के आस-पास महोबे में हुआ था। लेकिन वे बाल काल से लेकर विवाह के समय तक अपने पिता कीर्तिसिंह(चंदेल) के साथ कालिंजर दुर्ग में रहते थे। दुर्गावती का विवाह कीर्तिसिंह की गुप्त सहमति से 'गढ़ा-मंडला' के गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपति शाह के साथ के साथ सन 1543 ई. में हुआ था। सन 1545 ई. में कालिंजर पर दिल्ली के बादशाह शेरशाह शूर ने आक्रमण कर दिया था। कीर्तिसिंह ने दलपतिशाह को सहायता के लिये बुलाया था ,पर दलपति शाह किसी व्यस्थतावश कालिंजर नहीं पहुंच पाए थे । कीर्तिसिंह ने शेरशाह शुर का कई महीने तक मुकाबला किया था ,लेकिन दिल्ली की तोपों के आगे उनकी एक न चली ; वे पराजित हुये और बंदी बना लिये गये बारूद की ढेर में हुये विस्फोट से शेरशाह शूर बुरी तरह झुलस गया कर मर गया था; लेकिन मरने के पहले उसने अपने सामने राजा कीर्तिसिंह का सिर कटवा डाला था।
संग्राम शाह के पितामह शायद गोरखदास थे और पिता थे अर्जुनदास यादव राय व मदनशाह गोंडवंश के प्रारंभिक पूर्वज थे । दलपति शाह को विवाह के डेढ़ साल बाद एक पुत्र -रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम वीरनारायण रखा गया था। वीर नारायण के चाचा का नाम चन्द्रशाह था दलपतिशाह केवल 7 वर्ष तक ही शासन कर पाये थे कि सन 1548 ई . में एक बीमारी से उनकी मृत्यु हो गई । दुर्गावती पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन उन्होंने असीम धैर्य का परिचय दिया कुछ लोगो ने उन्हें उस युग की रीति के अनुसार सलाह दिया कि वे पति के साथ सती हो जाये ; किन्तु अबोध पुत्र वीरनारायण की ममता ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया था । उन्होंने वीर नारायण की सरंक्षिका बनकर गढ़ा-मंडला की सत्ता संभाल ली थी । दुर्गावती के देवर चन्द्रशाह की इच्छा गढ़ा राज्य का राजा बनने की थी; परतु दुर्गावती के कारण उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाई थी। अतः वह नाराज होकर पड़ोस के राज्य चांदा चला गया था । चांदा में गोंड शासक कर्णशाह का शासन था कर्णशाह गढ़ा- मंडला के राज गोंडो से ही सम्बंधित थे।
रानी बड़ी सूझ - बूझ से शासन चला रही थी , उसकी कीर्ति चारो ओर गई थी पड़ोस कई राजाओ की कुदृस्टि गोंडवाने पर टिकी थी ।" लगभग संपूर्ण मालवा का सुल्तान बन जाने पर बाज बहादुर हौशले इतने बुलंद हो गये थे कि उसने दुर्गावती की शक्ति का आकलन किये बिना उसके राज्य पर आक्रमण कर दिया। विकट युद्ध में बाज बहादुर का चाचा फतेह खां मारा गया। उसे दुर्गावती ने ही अपनी तलवार से चीर डाला था । बाज बहादुर की अधिकांश सेना मारी गई ,जितनी बच गई उसे बंदी बना लिया गया ।
गढ़ा राज्य में 23000 गांव थे 12000 गांव ऐसे थे जो सीधे दुर्गावती के शासन के आधीन थे, बाकी सामंतो और जागीरदारों द्वारा शासित थे। अबुल फजल अपने 'अकबर नामा ' में कहता है " दुर्गावती " अत्यंत सुंदर थी वह बंदूक व तीर का अच्छा निशाना साधती थी शेर का पता चलते ही वह खाना - पानी छोड़कर सशस्त्र जंगल की ओर चल देती थी।"
रामनगर ( मंडला जिला ) में राजा हिरदेशाह के महल की प्राचीर पर एक शिला लेख लगा है, यह शिलालेख सन 1667 ई . का है जिसे राजा हिरदेशाह ने लगवाया था उस शिलालेख का प्रामुख अंश ही मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ - " स्वयं समरूहघा गजं रणेशु बलाजयंती प्रबलान्विपक्षान सदा प्रजा पालन सावधाना सा लोक- पलायनवाफ्ली चकार । " इसका हिंदी रूपांतर इस प्रकार होगा - " वे स्वयं हाथी पर सवार होकर रण क्षेत्र में जाती थी और बल प्रयोग से बलवान शत्रुओ को पराजित करती थी जनता के पालन में सदा लगी रहती थी इस प्रकार उन्होंने लोकपालों को भी प्ररास्त किया था । "
गढ़ा राज्य में दौलत की कमी न थी अबुल फ़जल ने " आईना ए अकबरी " में लिखा है- " गोंडवाने की जनता लगान की अदायगी स्वर्ण - मुद्राओ और हाथियों से करती थी । " रानी की सेना में पचास हजार पैदल, बीस हजार घुड़सवार और बारह हजार हाथी थे। चौदह सौ हाथी सिर्फ मंडला में ही रहते थे। गढ़ा सम्राज्य में बावन गढ़ थे जिनमे मंडला, गढ़ा , चौरागढ़ और सिंगौर गढ़ ( संगर गढ़ ) मुख्य थे।
महारानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में अनेक जनहित के कार्य किये थे । जबलपुर में "रानीताल" उन्होने ही बनवाया था। . अनेक पुराने तालाबों की मरम्मत भी करवाई थी.। उनकी सखी रामचेरी ने 'चेरीताल ' बनवाया था । सेनापति आधारसिंह ने 'आधार ताल' का निर्माण भी करवाया था । भेड़ाघाट और तेवर में उनके बनवाये मंदिर भी देखे जा सकते हैं ।
भूतपूर्ण गढ़ा - मंडला साम्राज्य के ग्रामो का भ्रमण करते समय मुझे पता चला कि गोंडवाने में एक स्त्री सेना भी थी । जिसका विवरण भास्कर मलिहाबादी के द्वारा रचित काव्य खंड ' महारानी दुर्गावती' के काव्य में स्त्री सेना का विवरण दिया है। उसका आधार महारानी दुर्गावती की समाधि-क्षेत्र के ग्राम नर्रई के एक वृद्ध सज्जन द्वारा बताई गई जानकारी है । इसी बुजुर्ग ने चिता से सम्बंधित वृतांत व कुछ मुग़ल - वीरो के नाम भी बताये थे । वे नाम काव्य में यन्त्र-तंत्र पढ़ने को मिल जायेगे । उस बुजुर्ग से जब लेखक भास्कर मलीहाबादी ने पूछा कि यह जानकारी आपको कहाँ से मिली थी? तो उसने जवाब दिया था - यह जानकारी मैंने बचपन में अपने ग्राम के बुजुर्गो से सुनी थी । लेखक क अनुसार फरवरी 1988 ई. में उस वृद्ध की आयु लगभग 110 साल की रही होगी।