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वैश्विक पटल पर कोरोना द्वारा उत्पन्न जनवादी संघर्ष

28 मई 2020

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कोरोना कोविड 19 वैश्विक महामारी जिसने आज भागती दुनिया के चक्र की गति को धीमा कर दिया है। इस गति के अनुपात को लिखना ठीक वैसे ही होगा जैसे किसी जटिल इतिहास को 'किताब में लिखना' अगर हम वर्तमान परिस्थितियों की तुलना पूर्व परिस्थितियों से करें तो आज हमें बदलावो के अनुपात में बढ़ोतरी दिखती है। निश्चित है बदलाओ प्रकृति का नियम है परंतु भौतिक स्थित रूप (क्रांति या युद्ध)है। यह वह सिद्धांत है जिससे दुनियां बदलती है विश्व व्यवस्था प्रभावित होती है विश्व व्यवस्था का आधार ही महाशक्तियों के बीच संतुलन पर निर्भर है। जिस प्रकार विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकाल विशेषज्ञ माइक रयान ने कहा "कि कोरोना HIV की तरह स्थानिक(Endemic) बिमारी रह सकती है" जिस तरह दुनियाभर के 187 देशो में दर्ज कोरोना पोसिटिव केस 4.1 मिलियन से भी ज़्यादा है वही मरने वालों का आकड़ा 3 लाख के पार कर चुका है जिसमें अधिक मामले महाशक्तिशाली देशों के हैं।इसी महामारी के क्रम में वैश्वीकरण का अंत भी संभव हो सकता है यह अटल सत्य है कि दुनियां में अब प्रशासनिक, समाजिक, आर्थिक,राजनैतिक, धार्मिक शिथिलता उत्पन होना प्रारंभ हो चुकी है ठीक इसी प्रकार प्राचीन सभ्यता 'सिंधु घाटी' के पतन के कारण में U.R केनेडी ने प्राकर्तिक आपदा पर जोर दिया था,वही सर जॉन मार्शल के अनुसार प्रशानिक शिथिलता वा अन्य इतिहासकारो ने भिन्न-भिन्न कारण बताये परंतु निष्कर्ष यही निकला कि उस सभ्यता के पतन का अनेको कारण उत्तरदायी रहे परंतु आज हम यह कह सकते हैं कि सभी बदलावो के कारक प्राकर्तिक आपदाओं के बाद नये तरीके से जन्म लेते है। त्रासदी के बाद पुरानी मान्यताएं टूटती हैं नई चीजें सामने आती है।अब समस्त देश आत्म निर्भर के सिद्धांत के साथ प्रबल तरीके से बढ़ने का प्रत्यन करेंगे जिसमें सबसे बढ़ा योगदान कृषि ,कुटीर उद्योगों का होगा किसानों, मजदूरों के बहुत बड़े वर्ग के श्रम का पूँजी में बड़े स्तर पर परिवर्तन होगा वैश्विक उद्योगपतियो द्वारा निरंकुशता की ताकत को बल मिलेगा और एक आक्रमक राष्ट्रवाद पैदा होगा। हमने स्पैनिश फ्लू के बाद जो बड़े पैमाने पर मज़दूर आंदोलनों को साम्रज्यवादी ताकतों के विरुद्ध देखा था ठीक उसी प्रकार इस वैश्विक महामारी में वैश्विक स्तर पर जनवादी क्रांति का माहौल/परिस्थितियां बन रही है।सुई से लेकर जहाज़ बनाने वाला मज़दूर कड़ी धूप में मेहनत कर अनाज पैदा करने वाले किसानों में जो उदासीनता है वह उनके साथ हुये अन्याय ,आर्थिक असमानता का ही परिणाम है कोरोना के आने के पस्चात इस असमानता के पैमानें में बड़ा अंतर आयेगा और उदासीनता से उपजे संघर्ष में और तेजी आएगी और वैश्विक पूँजीपति वर्ग का भारी नुकसान होगा शायद यही कारण रहा है कि पूंजीपति वर्ग का रक्षातंत्र PESEUDO NATIONALIST, PESEUDO SECULARISM, PESEUDO JOURNALISM हमेशा से अग्रणी रहा है हो भी क्यों ना आखिर ये सभी उसी व्यवस्था के संसाधनों द्वारा ही तो पोषित है। यही वज़ह हैं कि इतने बड़े उदासीन वर्ग के तूफानी सिद्धांत को रोकने ,गुमराह करने के लिये धार्मिक, नस्लीय, राष्ट्रीय ,व्यापारिक ,क्षेत्रीय भेदभाव को पनपाया जाता है हजारों सालों की मानसिक गुलामी की जड़ो को पुर्नजीवित कर वैश्विक स्तर पर बैठा पूँजीपति वर्ग अपने संसाधनों के माध्यमो से अनुपात में बढ़ोतरी करता है और भारत जैसे विकासशील देशों में तो यह संघर्ष व्यवस्था खड़ी ही नही होने देता क्योंकि वर्ग संघर्ष -वर्ण संघर्ष से जटिल नही है और यही मुख्य कारण है कि दुनिया के सबसे बड़े समाजिक न्याय के अग्रणी योद्धाओ में से एक B. R अम्बेडकर वर्गीय व्यवस्था का ढाँचा तो प्रदान करने में सफल हुये परंतु समाजिक जटिल सिद्धान्तों में परिवर्तन स्थाई रूप से ना आ सके और मार्क्सवाद के यथार्थ वर्गीय संघर्ष के नज़दीक की कल्पना कर परलोक सिधार गये और भारतीय जनमानस आज भी वर्ण संघर्ष कर रहे है जो कि हजारों साल पुराना शासक वर्ग द्वारा अपनाई गई एक 'सुनियोजित' व्यवस्था है।


by अरुण मलिहाबादी


Posted on 20/4/2020 at 18:17


कोरोना कोविड 19 वैश्विक महामारी जिसने आज भागती दुनिया के चक्र की गति को धीमा कर दिया है। इस गति के अनुपात को लिखना ठीक वैसे ही होगा जैसे किसी जटिल इतिहास को 'किताब में लिखना' अगर हम वर्तमान परिस्थितियों की तुलना पूर्व परिस्थितियों से करें तो आज हमें बदलावो के अनुपात में बढ़ोतरी दिखती है। निश्चित है बदलाओ प्रकृति का नियम है परंतु भौतिक स्थित रूप (क्रांति या युद्ध)है। यह वह सिद्धांत है जिससे दुनियां बदलती है विश्व व्यवस्था प्रभावित होती है विश्व व्यवस्था का आधार ही महाशक्तियों के बीच संतुलन पर निर्भर है। जिस प्रकार विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकाल विशेषज्ञ माइक रयान ने कहा "कि कोरोना HIV की तरह स्थानिक(Endemic) बिमारी रह सकती है" जिस तरह दुनियाभर के 187 देशो में दर्ज कोरोना पोसिटिव केस 4.1 मिलियन से भी ज़्यादा है वही मरने वालों का आकड़ा 3 लाख के पार कर चुका है जिसमें अधिक मामले महाशक्तिशाली देशों के हैं।इसी महामारी के क्रम में वैश्वीकरण का अंत भी संभव हो सकता है यह अटल सत्य है कि दुनियां में अब प्रशासनिक, समाजिक, आर्थिक,राजनैतिक, धार्मिक शिथिलता उत्पन होना प्रारंभ हो चुकी है ठीक इसी प्रकार प्राचीन सभ्यता 'सिंधु घाटी' के पतन के कारण में U.R केनेडी ने प्राकर्तिक आपदा पर जोर दिया था,वही सर जॉन मार्शल के अनुसार प्रशानिक शिथिलता वा अन्य इतिहासकारो ने भिन्न-भिन्न कारण बताये परंतु निष्कर्ष यही निकला कि उस सभ्यता के पतन का अनेको कारण उत्तरदायी रहे परंतु आज हम यह कह सकते हैं कि सभी बदलावो के कारक प्राकर्तिक आपदाओं के बाद नये तरीके से जन्म लेते है। त्रासदी के बाद पुरानी मान्यताएं टूटती हैं नई चीजें सामने आती है।अब समस्त देश आत्म निर्भर के सिद्धांत के साथ प्रबल तरीके से बढ़ने का प्रत्यन करेंगे जिसमें सबसे बढ़ा योगदान कृषि ,कुटीर उद्योगों का होगा किसानों, मजदूरों के बहुत बड़े वर्ग के श्रम का पूँजी में बड़े स्तर पर परिवर्तन होगा वैश्विक उद्योगपतियो द्वारा निरंकुशता की ताकत को बल मिलेगा और एक आक्रमक राष्ट्रवाद पैदा होगा। हमने स्पैनिश फ्लू के बाद जो बड़े पैमाने पर मज़दूर आंदोलनों को साम्रज्यवादी ताकतों के विरुद्ध देखा था ठीक उसी प्रकार इस वैश्विक महामारी में वैश्विक स्तर पर जनवादी क्रांति का माहौल/परिस्थितियां बन रही है।सुई से लेकर जहाज़ बनाने वाला मज़दूर कड़ी धूप में मेहनत कर अनाज पैदा करने वाले किसानों में जो उदासीनता है वह उनके साथ हुये अन्याय ,आर्थिक असमानता का ही परिणाम है कोरोना के आने के पस्चात इस असमानता के पैमानें में बड़ा अंतर आयेगा और उदासीनता से उपजे संघर्ष में और तेजी आएगी और वैश्विक पूँजीपति वर्ग का भारी नुकसान होगा शायद यही कारण रहा है कि पूंजीपति वर्ग का रक्षातंत्र PESEUDO NATIONALIST, PESEUDO SECULARISM, PESEUDO JOURNALISM हमेशा से अग्रणी रहा है हो भी क्यों ना आखिर ये सभी उसी व्यवस्था के संसाधनों द्वारा ही तो पोषित है। यही वज़ह हैं कि इतने बड़े उदासीन वर्ग के तूफानी सिद्धांत को रोकने ,गुमराह करने के लिये धार्मिक, नस्लीय, राष्ट्रीय ,व्यापारिक ,क्षेत्रीय भेदभाव को पनपाया जाता है हजारों सालों की मानसिक गुलामी की जड़ो को पुर्नजीवित कर वैश्विक स्तर पर बैठा पूँजीपति वर्ग अपने संसाधनों के माध्यमो से अनुपात में बढ़ोतरी करता है और भारत जैसे विकासशील देशों में तो यह संघर्ष व्यवस्था खड़ी ही नही होने देता क्योंकि वर्ग संघर्ष -वर्ण संघर्ष से जटिल नही है और यही मुख्य कारण है कि दुनिया के सबसे बड़े समाजिक न्याय के अग्रणी योद्धाओ में से एक B. R अम्बेडकर वर्गीय व्यवस्था का ढाँचा तो प्रदान करने में सफल हुये परंतु समाजिक जटिल सिद्धान्तों में परिवर्तन स्थाई रूप से ना आ सके और मार्क्सवाद के यथार्थ वर्गीय संघर्ष के नज़दीक की कल्पना कर परलोक सिधार गये और भारतीय जनमानस आज भी वर्ण संघर्ष कर रहे है जो कि हजारों साल पुराना शासक वर्ग द्वारा अपनाई गई एक 'सुनियोजित' व्यवस्था है।


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शिक्षा व्यवस्था पर आज़ाद हिन्द मोर्चा की राय

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सर्वहारा युवा बनाम उघोगपति

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युवाओ पर पुंजिपतियो के संसाधन का दबाओ

11 अक्टूबर 2016
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सुनो साथियो सुनो साथियो ऐसा युग आया है, कि मोबाइल इंटरनेट पर अपने विकास का एजेंडा दिखाया है----क्या खूब कहे अम्बानी को जो फ्री का इंटरनेट देकर सबको नेट की दुनिया का पंजीकरण कराया है------आज दोस्ती का इस युग में फिर परपंच लहराया है #पार्टी.फ्री का इन्टरनेट देकर तुमने तमामो को रोजगार दिलाया है....उनसे

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भास्कर मलीहाबादी

7 नवम्बर 2018
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पंख लगा देता अगर,छेरी के करतार ।तो हरियाली से रहित, होता यह संसार ।। -भास्कर मलीहाबादी

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कोई ऐसा भी है

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वो #मुस्लिम होकर भी #हिन्दू प्रेम का #कर्तव्य समझा गये---वो #हिन्दू होकर #मुस्लिम की #अहमियत को दर्शा गये ---#संवेदना यह है फिर भी दोनों के #बंदे#समाज को #चूर्णित कर गये--- - अरुण मलिहाबादी

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मुर्ख जनता महामूर्ख प्रतिनिधि

12 नवम्बर 2018
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कंटक लगती है #राजनीति अब हमें एहसास में,कत्थक करती है जनता यहाँ प्रतिनिधि के साथ में।भक्षक लगती है राजनीति अब हमें एहसास में,जनता की सारी नब्ज़ है सियासियो के हाथ में।काली लगती है राजनीति हमे दिन और रातो में,फ़बती दिखती है नेताओ की #इंकलाबी बातो में।वार लगती है राजनीति अब हमें एहसास में,मजबूरी लगती है

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अखबानी ताकत का इस्तमाल ( अरख को अख़गर की जरुरत है )

29 मार्च 2019
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अरख की अख़लाक़ी पर सवाल जरूर होना चाहिए, मादरे वतन के लिये भी अख़लाक़ जिन्दा रहना चाहिए \ अखबान पर फ़िदा होने वालो अपना भी अख्तर चमकेगा हम अखयार है वा लाख अजकिया है हममे --- पुरखो की अखनी का समावेश है हममे अज़ली अपनी पहचान .

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दोहा

8 जनवरी 2020
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जो बबूल के फलों में, होती तनिक मिठास।शूल नही तब तो सदा , यह बम रखता पास । - भास्कर मलिहाबादी

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भास्कर मलिहाबादी

13 जनवरी 2020
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पत्नी की पूजा करो जो चाहो कल्यान जन्म सफल हो जायेगा बात लीजिये मान। बात लीजिये मान आरती रोज उतारो पत्नी सेवक बनो हुक़्म मत उसका टारो। देख उसे नाराज लोट चरणों पर जाओ तो सुख मि

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वैश्विक पटल पर कोरोना द्वारा उत्पन्न जनवादी संघर्ष

28 मई 2020
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कोरोना कोविड 19 वैश्विक महामारी जिसने आज भागती दुनिया के चक्र की गति को धीमा कर दिया है। इस गति के अनुपात को लिखना ठीक वैसे ही होगा जैसे किसी जटिल इतिहास को 'किताब में लिखना' अगर हम वर्तमान परिस्थितियों की तुलना पूर्व परिस्थितियों से करें तो आज हमें बदलावो के अनुपात में बढ़ोतरी दिखती है। निश्चित है ब

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रानी दुर्गावती का परिचय वा खंड काव्य

11 जून 2020
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महारानी दुर्गावती का जन्म सन 1527 ई. के आस-पास महोबे में हुआ था। लेकिन वे बाल काल से लेकर विवाह के समय तक अपने पिता कीर्तिसिंह(चंदेल) के साथ कालिंजर दुर्ग में रहते थे। दुर्गावती का विवाह कीर्तिसिंह की गुप्त सहमति से 'गढ़ा-मंडला' के गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपति शाह के साथ के साथ सन 1543 ई. में

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