अक्सर गिराकर उठाती है
जिन्दगी का ये इम्तेहान देखो ।
होती है हर घर में अग्नी परीक्षा
हर घर में बसते एक सीता एक राम देखो ।
चलती नही खुद के बहानों से
है किसकी जिन्दगी पर कमान देखो ।
खो कर सब कुछ उसने पाया
रिश्तों का ये मुकाम देखो ।
तिनका तिनका जोड़ उसने सबको मिलाया
अब खुद कैसे है गुमनाम देखो ।
है गुरुर जिन्हें वो भी सीखेंगे
होती एक ही मिट्टी में जिस्म तमाम देखो ।
छलक कर ही तो बनता है
महफ़िल में जो बनता जाम देखो ।
दूजों के लिए जीना सीखो
कैसे कटती है फिर हुस्न-ए-शाम देखो ।
रखता नहीं वो किसी से गिला
हर किसी के लिए उसके दिल में है इन्तेजाम देखो ।
टूटकर भी हँसता है हँसाता है
तुमको "रूप" का ये पैगाम देखो ।
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रूपेन्द्र साहू "रूप"