चल मेरे संग सफर पर चल
यार मेरे हमनवां थोड़ा घर से निकल
धूप तो मिलेगी ही हकीकत है
ये मंजिल का सफर है दोस्त
धूल भरे रास्तों पर निखर कर चल
काँटो से भी होगा सामना ठहरना नहीं
कुछ झूठे गुलाब, उनसे जरा संभल
मन है बहुत मौजी,मन मौज करेगा
मन की भी करना, मगर पूरा ना बहल
रुकावटों के शहर है मस्ती से निकल कर चल
फिर देखना जो मंजिल मिलेगी
यहां "धूल भरे राह पर चलकर"
हरपल वो तुम्हें बेइंतहा सुकूँ देगी
फिर कहना यार नए सफर पर चल
अब खुद ही तू पहले पहल कर चल ....
रूप