19 मई 2016
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पेशे से वेब डिज़ाइनर हूँ | शब्दानगरी संगठन सदस्य | कला प्रेमी एवं हिंदी प्रेमी |
Dशालिनी जी ! इसको कविता मैं यूँ ढालो ,वो रोटी चुरा कर चोर हो गया ,लोग मुल्क खा गए कानून लिखते लिखते .माँ भारती रोती रही वो नोचते रहे ,लखतेजिगर ये तेरा है खून लिखते लिखते ......( बहुत दर्द है इन पंक्तियों मैं ) अच्छा लिखा है
13 जून 2016