सच्चा दान
एक शहर में भगवान कृष्ण का मंदिर बनाने का काम जोर शोर से चल रहा था!
लाखों की तादाद में लोग मंदिर समिति को दान दे रहे थे, ताकि निर्माण कार्य में कोई रुकावट ना आ सके!
उसी दान दाताओं एक पैंडल रिक्शा चलाने वाला भोला 3 दिन से रोज दान देने की इच्छा से आता था! और सोचता कि मैं भी कुछ दान करूँ "!!
पर वहाँ लोगों को हजारों और लाखों की पर्ची कटाते देख उसे हिचक होती और वह लौट आता ,उसे लगता की इतने बड़े बड़े दान लोग कर रहे हैं , और में पचास रुपए देंगे तो लोग क्या सोचेंगे ,*"!?
आज मंदिर के लिए दान देने का आखिरी दिन था ,क्योंकि मंदिर पूरी तरह से तैयार हो चुका था ,कल मूर्तियों की स्थापना होनी थी!
भोला से रहा नहीं गया उसने अपनी जेब से 50 रूपये निकाले और बोला..*" भैया मेरे भी यह पैसे ईश्वर की सेवा में लग जाते तो मुझे भी संतुष्टि मिल जाती .?
मंदिर समिति के कर्मचारी ने 50 रूपये देखकर मुंह बिचकाते हुए कहा -*" यह लोग लाखो का दान दे रहे हैं हजार रुपए से नीचे किसी ने नही दिया है ,तेरे 50 रूपये मे क्या होगा..?
भोला के बार बार कहने पर उसने वो 50 रूपये लेकर अपने कुर्ते की जेब मे डाल लिये और इतने छोटे से दान के लिये पर्ची भी काटने से मना कर दिया!
भोला बेचारा संतोष की सांस लेते हुए घर चला गया..!!
दूसरे दिन मंदिर में काफी भीड़ थी...ज्यादा दान करने वालों के नाम अलग से लिखे हुए थे!
जिन्हें मूर्ति स्थापित होने के बाद सम्मानित किया जाना था! मंत्रोच्चार के साथ मुर्तिया लाल कपड़ों से ढकी मंदिर मे लाई गईं!
मूर्ति का मुकुट इतना ढीला था कि मूर्ति का चेहरा पूरा मुकुट से ढका हुआ था! लोग परेशान थे कि नया मुकुट बनाने में तो समय लगेगा और बिना मुकुट की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकती!
तभी कारीगर को सलाह लेने के लिए बुलाया गया,!!
कारीगर बोला कि *" मूर्ति में जरा सी टेक लगते ही मुकुट अपनी जगह स्थिर हो जाएगा! और मूर्ति का चेहरा सही से दिखने लगेगा...*"!!
और उसने उस टेक की कीमत 50 रूपये बताई... 🤔
मंदिर समिति के कर्मचारी ने अपने कुर्ते की जेब से रामसेवक द्वारा दान किए गए 50 रूपये निकालकर कारीगर को दे दिए! और कुछ देर में ही टेक लगते ही मुकुट स्थिर हो गया!
ऐसा लग रहा था मानो भगवान ने रामसेवक का दान स्वीकार करने के बाद ही सभी भक्तजनों को अपने मुखमंडल के दर्शन कराऐ!
उसके बाद जब सभी दान दाताओं का नाम घोषित किया जा रहा था ,वह समिति के आदमी ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए उस पचास रुपए की कहानी सुनाई जिससे वह टेक लगा था , शायद प्रभ भी यह चाहते थे की उसके भक्त के पैसे का उपयोग हो तभी वह अपना दर्शन देंगे , और वह उस दानकर्ता को सबसे बड़ा दान बताया , एक कोने में खड़े भोला के आंखो से अविरल अंशु बह रहे थे ,*"!!
दोस्तो समर्पण के भाव से किया गया छोटा सा दान दिखावटी करोड़ों के दान से कहीं श्रेष्ठ है!