पिछले कुछ दिनों से हम नेट न्यूट्रलिटी में निहित दाँव-पेंचों को समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि इस सन्दर्भ में अपना सुविचार अन्तर्जाल की जनता के सामने रख सकें कि तभी कौशल जी के आलेख 'अमर उजाला दैनिक समाचारपत्र भारतीय दंड संहिता-१८६० के अधीन दोषी' को पढ़कर हमारे दोनों कान खड़े हो गए। अपने आलेख में कौशल जी ने स्पष्ट रूप से मीडिया की टाँग पकड़कर ज़ोरों से घसीटा था और हमारा चिन्तित होना स्वाभाविक था। हम पहले ही अन्यत्र अपने एक लेख में यह बता चुके हैं कि यदि आज कबीरदास जीवित होते तो यह दोहा ज़रूर कहते-
‘कबीरा मेल बढ़ाय के, कबहुँ न करै लड़ाई।
पत्रकार पोलीस नेता गुण्डा वकील हैं भाई।।’
अर्थ स्पष्ट है- पत्रकार, पुलिस, नेता, क्रिमिनल और वकील आपस में भाई-भाई समान होते हैं, अर्थात् इनमें आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। इसलिए इनसे कभी लड़ाई नहीं करनी चाहिए और इनसे मेलजोल बढ़ा लेना चाहिए।
सन्त कबीरदास की बात सुनकर रहीम क्यों चुप बैठते? वह भी सन्त कबीरदास की टक्कर में यह दोहा ज़रूर कहते-
‘रहिमन लडि़ए बूझकर, बचा सकै ना कोय।
पत्रकार पुलिस नेता, गुण्डा वकील हैं भोय।।’
अर्थ स्पष्ट है- पत्रकार, पुलिस, नेता, क्रिमिनल और वकील आपस में भाई-भाई समान होते हैं, अर्थात् इनमें आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। इसलिए इनसे समझबूझकर लड़ाई करनी चाहिए, क्योंकि इनसे लड़ने पर बचाने वाला कोई नहीं मिलता।
अब आप सभी को यह आश्चर्य ज़रूर हो रहा होगा कि आपस में दोस्ती होने के बावजूद ये आपस में लड़ते क्यों है? आज यदि कबीरदास जीवित होते तो इस सन्दर्भ में लिखते—
'पपुनेगुव' की दोस्ती, पीट सकै ना कोय।
धन्धा चौपट तो बेहिचक, जूता—लात होय।।
अर्थ स्पष्ट है— 'पपुनेगुव' अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील के बीच की दोस्ती से कोई आगे नहीं निकल सकता, किन्तु जब एक—दूसरे के कारण इनका धन्धा चौपट होता है तो ये आपस में बेहिचक जूता—लात करने लगते हैं।
यही नहीं, कबीरदास आज यदि जीवित होते तो पत्रकारों के बारे में भी कुछ कहते। क्या कहते? आइए, देखते हैं—
'पत्रकार लघु जानि कै, टाँग न दीजै डारि।
थाना पुलिस बुलाय कै, तन सब दैहें फारि।।'
अर्थ स्पष्ट है- कबीरदास कहते हैं- पत्रकार यदि छोटा भी हो तो भी उससे नहीं उलझना चाहिए। छोटा पत्रकार भी पुलिस भेजकर आपको थाने में घसीट सकता है और आपकी पिटाई करवा सकता है, क्योंकि पत्रकार और पुलिस की आपस में बड़ी मिलीभगत होती है।
क्या कहा? इस दोहे का साक्ष्य प्रस्तुत करें। हर चीज़ का साक्ष्य हम थोड़े ही प्रस्तुत करते रहेंगे। यह तो कर के देखने की चीज़ है। आप खुद किसी पत्रकार को छेड़कर देखिए, आटे—दाल का भाव पता चल जाएगा।
अतः 'पपुनेगुव' अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील देश के सबसे खतरनाक माने जाने वाले महान दिग्गज लोगों में शुमार हैं और इनमें आपस में ज़बरदस्त मिलीभगत होती है, किन्तु मौका मिलने पर ये एक दूसरे की टाँग पकड़कर घसीटने से नहीं चूकते। 'पपुनेगुव' के आपसी झगड़े में आम आदमी गेहूँ में घुन की तरह पिसता है और उसका सिर सबसे पहले फूटता है। अभी हाल में वकीलों और पुलिस के बीच हुए महायुद्ध में सबसे ज़्यादा असर आम जनता पर ही पड़ा था। कौशल जी के लेख को पढ़कर हमें ऐसा पूर्वाभास होने लगा जैसे अब पत्रकारों और वकीलों के बीच महायुद्ध छिड़ने वाला है और अब शहर के पत्रकारों और वकीलों के बीच दनादन ढेले चलेंगे। हमने फटाफट एक अदद हेलमेट का ऑनलाइन आर्डर दे दिया। वैसे तो पैदल चलते वक़्त हेलमेट पहनना अच्छा तो नहीं लगता, किन्तु दंगा-फसाद होने पर सिर फूटने से बचा रहता है। हेलमेट का ऑनलाइन आर्डर बुक करने के बाद हमने चैन की साँस लिया और कौशल जी के आलेख में निहित सत्य की जाँच-पड़ताल करने में जुट गए जिससे पत्रकारों और वकीलों के बीच होने वाले सम्भावित 'ढेला-महायुद्ध' को टालकर अपने नए हेलमेट की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। काफी मशक्कत के बाद अन्तर्जाल से हमने दैनिक समाचार-पत्र अमर उजाला, मेरठ से प्रकाशित समाचार को ढूँढ़ने में सफलता प्राप्त कर ही लिया। प्रस्तुत है प्रकाशित समाचार की प्रतिलिपि-
उपरोक्त समाचार के वाचन से यह तथ्य स्पष्ट है कि समाचार के किसी अंश से पीड़िता की पहिचान उजागर नहीं हो रही है और न ही समाचार के साथ प्रकाशित चित्र में पीड़िता का चेहरा दृष्टिगोचर हो रहा है। अतः यह स्पष्ट हुआ कि कौशल जी के लेख में मीडिया को सिर्फ़ शह दी गई थी, मात नहीं। इसलिए खतरे की कोई बात नहीं, क्योंकि 'ढेला-महायुद्ध' की सम्भावनाएँ बहुत क्षीण हैं। वस्तुतः इस टिप्पणी को उपरोक्त वर्णित लेख में लगाया जाना था, किन्तु टिप्पणी में चित्र-कड़ी इत्यादि को समावेश करने की सुविधा न होने के कारण अलग से लेख लिखने को बाध्य होना पड़ा। असुविधा के लिए खेद है। चलते-चलते 'पेंच-समुदाय' को प्रसन्न और सक्रिय करने के लिए हमारे पास भी एक ज़ोरदार ख़बर है, जिसमें यह बताया गया है कि एक थाने में एक विवाहिता लड़की की शादी 17 वर्षीय एक नाबालिग लड़के से करा दी गई। आगे पढ़िए-
http://www.amarujala.com/feature/samachar/national/woman-marry-with-seventeen-years-old-boy-hindi-news-rk/