shabd-logo

शह या मात?

30 अप्रैल 2015

687 बार देखा गया 687
पिछले कुछ दिनों से हम नेट न्यूट्रलिटी में निहित दाँव-पेंचों को समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि इस सन्दर्भ में अपना सुविचार अन्तर्जाल की जनता के सामने रख सकें कि तभी कौशल जी के आलेख 'अमर उजाला दैनिक समाचारपत्र भारतीय दंड संहिता-१८६० के अधीन दोषी' को पढ़कर हमारे दोनों कान खड़े हो गए। अपने आलेख में कौशल जी ने स्पष्ट रूप से मीडिया की टाँग पकड़कर ज़ोरों से घसीटा था और हमारा चिन्तित होना स्वाभाविक था। हम पहले ही अन्यत्र अपने एक लेख में यह बता चुके हैं कि यदि आज कबीरदास जीवित होते तो यह दोहा ज़रूर कहते- ‘कबीरा मेल बढ़ाय के, कबहुँ न करै लड़ाई। पत्रकार पोलीस नेता गुण्डा वकील हैं भाई।।’ अर्थ स्पष्ट है- पत्रकार, पुलिस, नेता, क्रिमिनल और वकील आपस में भाई-भाई समान होते हैं, अर्थात् इनमें आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। इसलिए इनसे कभी लड़ाई नहीं करनी चाहिए और इनसे मेलजोल बढ़ा लेना चाहिए। सन्त कबीरदास की बात सुनकर रहीम क्यों चुप बैठते? वह भी सन्त कबीरदास की टक्कर में यह दोहा ज़रूर कहते- ‘रहिमन लडि़ए बूझकर, बचा सकै ना कोय। पत्रकार पुलिस नेता, गुण्डा वकील हैं भोय।।’ अर्थ स्पष्ट है- पत्रकार, पुलिस, नेता, क्रिमिनल और वकील आपस में भाई-भाई समान होते हैं, अर्थात् इनमें आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। इसलिए इनसे समझबूझकर लड़ाई करनी चाहिए, क्योंकि इनसे लड़ने पर बचाने वाला कोई नहीं मिलता। अब आप सभी को यह आश्चर्य ज़रूर हो रहा होगा कि आपस में दोस्ती होने के बावजूद ये आपस में लड़ते क्यों है? आज यदि कबीरदास जीवित होते तो इस सन्दर्भ में लिखते— 'पपुनेगुव' की दोस्ती, पीट सकै ना कोय। धन्धा चौपट तो बेहिचक, जूता—लात होय।। अर्थ स्पष्ट है— 'पपुनेगुव' अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील के बीच की दोस्ती से कोई आगे नहीं निकल सकता, किन्तु जब एक—दूसरे के कारण इनका धन्धा चौपट होता है तो ये आपस में बेहिचक जूता—लात करने लगते हैं। यही नहीं, कबीरदास आज यदि जीवित होते तो पत्रकारों के बारे में भी कुछ कहते। क्या कहते? आइए, देखते हैं— 'पत्रकार लघु जानि कै, टाँग न दीजै डारि। थाना पुलिस बुलाय कै, तन सब दैहें फारि।।' अर्थ स्पष्ट है- कबीरदास कहते हैं- पत्रकार यदि छोटा भी हो तो भी उससे नहीं उलझना चाहिए। छोटा पत्रकार भी पुलिस भेजकर आपको थाने में घसीट सकता है और आपकी पिटाई करवा सकता है, क्योंकि पत्रकार और पुलिस की आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। क्या कहा? इस दोहे का साक्ष्य प्रस्तुत करें। हर चीज़ का साक्ष्य हम थोड़े ही प्रस्तुत करते रहेंगे। यह तो कर के देखने की चीज़ है। आप खुद किसी पत्रकार को छेड़कर देखिए, आटे—दाल का भाव पता चल जाएगा। अतः 'पपुनेगुव' अर्थात् पत्रकार, पुलिस, नेता, गुण्डा और वकील देश के सबसे खतरनाक माने जाने वाले महान दिग्गज लोगों में शुमार हैं और इनमें आपस में ज़बरदस्त मिलीभगत होती है, किन्तु मौका मिलने पर ये एक दूसरे की टाँग पकड़कर घसीटने से नहीं चूकते। 'पपुनेगुव' के आपसी झगड़े में आम आदमी गेहूँ में घुन की तरह पिसता है और उसका सिर सबसे पहले फूटता है। अभी हाल में वकीलों और पुलिस के बीच हुए महायुद्ध में सबसे ज़्यादा असर आम जनता पर ही पड़ा था। कौशल जी के लेख को पढ़कर हमें ऐसा पूर्वाभास होने लगा जैसे अब पत्रकारों और वकीलों के बीच महायुद्ध छिड़ने वाला है और अब शहर के पत्रकारों और वकीलों के बीच दनादन ढेले चलेंगे। हमने फटाफट एक अदद हेलमेट का ऑनलाइन आर्डर दे दिया। वैसे तो पैदल चलते वक़्त हेलमेट पहनना अच्छा तो नहीं लगता, किन्तु दंगा-फसाद होने पर सिर फूटने से बचा रहता है। हेलमेट का ऑनलाइन आर्डर बुक करने के बाद हमने चैन की साँस लिया और कौशल जी के आलेख में निहित सत्य की जाँच-पड़ताल करने में जुट गए जिससे पत्रकारों और वकीलों के बीच होने वाले सम्भावित 'ढेला-महायुद्ध' को टालकर अपने नए हेलमेट की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। काफी मशक्कत के बाद अन्तर्जाल से हमने दैनिक समाचार-पत्र अमर उजाला, मेरठ से प्रकाशित समाचार को ढूँढ़ने में सफलता प्राप्त कर ही लिया। प्रस्तुत है प्रकाशित समाचार की प्रतिलिपि- उपरोक्त समाचार के वाचन से यह तथ्य स्पष्ट है कि समाचार के किसी अंश से पीड़िता की पहिचान उजागर नहीं हो रही है और न ही समाचार के साथ प्रकाशित चित्र में पीड़िता का चेहरा दृष्टिगोचर हो रहा है। अतः यह स्पष्ट हुआ कि कौशल जी के लेख में मीडिया को सिर्फ़ शह दी गई थी, मात नहीं। इसलिए खतरे की कोई बात नहीं, क्योंकि 'ढेला-महायुद्ध' की सम्भावनाएँ बहुत क्षीण हैं। वस्तुतः इस टिप्पणी को उपरोक्त वर्णित लेख में लगाया जाना था, किन्तु टिप्पणी में चित्र-कड़ी इत्यादि को समावेश करने की सुविधा न होने के कारण अलग से लेख लिखने को बाध्य होना पड़ा। असुविधा के लिए खेद है। चलते-चलते 'पेंच-समुदाय' को प्रसन्न और सक्रिय करने के लिए हमारे पास भी एक ज़ोरदार ख़बर है, जिसमें यह बताया गया है कि एक थाने में एक विवाहिता लड़की की शादी 17 वर्षीय एक नाबालिग लड़के से करा दी गई। आगे पढ़िए- http://www.amarujala.com/feature/samachar/national/woman-marry-with-seventeen-years-old-boy-hindi-news-rk/
1

कुतर्क

20 मार्च 2015
0
2
1

निर्भया प्रकरण पर बने वृत्तचित्र पर विवाद उठने के बाद लगे प्रतिबन्ध के पक्ष और विपक्ष में विवाद निरन्तर जारी है। कुछ लोगों का काम ही बकना होता है और हम भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं। जहाँ कुछ बकने का अवसर मिला टप से बक दिया। विश्व में बहुत से लोग इस बकने की अनोखी बीमारी से ग्रस्त हैं और इसका कोई इल

2

வோட் கீ ராஜநீதி

20 मार्च 2015
0
1
0

தென்னிந்தியப் பெண்களின் நிறம் குறித்து ஐக்கிய ஜனதா தள கட்சித் தலைவர் சரத் யாதவின் கருத்து அடுத்து வருடம் வருகிற தமிழ்நாடு சட்டசபை தேர்தல் முடிவுகளை கடுமையாக பாதிக்ககூடும். தமிழக பெண்களின் ஆதரவு சரத் யாதவின் பக்கம் திரும்பினால் மற்ற கட்சிகளின் நிலை என்ன ஆகும்? சரத் யாதவ் தனது பேச்சால் தென்னிந்தியப்

3

मेलजोल

20 मार्च 2015
0
0
0

सन्त कबीरदास यदि आज जीवित होते तो यह दोहा ज़रूर कहते- ‘कबीरा मेल बढ़ाय के, कबहुँ न करै लड़ाई। पत्रकार पोलीस नेता गुण्डा वकील हैं भाई।।’ अर्थ स्पष्ट है- पत्रकार, पुलिस, नेता, क्रिमिनल और वकील आपस में भाई-भाई समान होते हैं, अर्थात् इनमें आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। इसलिए इनसे कभी लड़ाई नहीं करनी च

4

ग़रीबों के मसीहा

19 मार्च 2015
0
0
0

लोकसभा में 7 बार निर्वाचित होने के अतिरिक्त वर्ष 2014 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार प्राप्त जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख और सीनियर लीडर शरद यादव ने मतदान के बाद मतदाता को ईवीएम मशीन से मतदान की रसीद मिलने की व्यवस्था को लेकर राज्यसभा में यह सवाल उठाकर कि ‘अगर एक जनरल स्टोर पर ट्रांजिक्शन पूरी होने के

5

बस में रेप

20 मार्च 2015
0
0
1

यदि आज मैं उपरोक्त शीर्षक पर अपनी कोई रचना लिख दूँ तो शायद लोग इस बात पर गला फाड़कर बहुत हल्ला-गुल्ला मचाने लगें कि रचना का नाम ‘बस में रेप’ क्यों है? रचना के शीर्षक में ‘रेप’ शब्द आने से देश में बलात्कार की घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है। रचना का शीर्षक पढ़कर भारतीय समाज भ्रष्ट हो जाएगा और देश में बला

6

चाय में मक्खी

23 मार्च 2015
0
0
2

धर्म एक चाय की तरह है जिसमें मक्खी गिरी हुई है. कुछ लोग चाय में मक्खी गिरने पर समूची चाय फेंक देते हैं. कुछ लोग मक्खी फेंककर चाय पी जाते हैं किन्तु धर्म की चाय में गिरी मक्खी को बिना निकाले आस्तिक चाय की चुस्की लेते रहते हैं. यदि कोई इस मक्खी के बारे में बताता है तो आस्तिक कुपित हो जाते हैं. आस्तिको

7

खण्डन

23 मार्च 2015
0
0
0

किसी प्रकरण पर आरोप लगने और उसपर विवाद उठने के उपरान्त खण्डन प्रस्तुत करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। खण्डन प्रस्तुत करने के इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया से मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक अछूते नहीं रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का यह बयान कि उन्होंने ‘पी॰के॰ मूवी इण्टरनेट से डाउनलोड करके

8

विश्व तरबूज़ दिवस

23 मार्च 2015
0
1
3

‘‘हद हो गई भई। क्या ‘विश्व तरबूज़ दिवस’ भी मनाया जाने लगा?’’- कहकर सिर पकड़ने वालों से हमारा तर्क यह है कि जब ‘सन्त वालन्ताइन दिवस’ और ‘मूर्ख दिवस’ जैसे दिवस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जा सकते हैं तो ‘विश्व तरबूज़ दिवस’ क्यों नहीं मनाया जा सकता? और कुछ सूत्रों के अनुसार 3 अगस्त विश्व तरबूज़ दिवस क

9

रंगे हाथ

24 मार्च 2015
0
2
2

नववर्ष मनाने के लिए जब हम गोवा पहुँचे तो हमने बीच पर किसी को रंगे हाथ पकड़ लिया जिसे नववर्ष की नई कविता के रूप में यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है- नववर्ष की पूर्वसंध्या पर, एक विदेशी लेखिका को, हमने रंगे हाथ पकड़ा। अपनी आँखों के कैमरे में जकड़ा। जब वह गोवा के बीच पर, दारू के नशे में धुत थी, और अना

10

लो बैटरी? नो प्रॉब्लम!

1 अप्रैल 2015
0
2
3

कुछ सप्ताह पूर्व हमारे कुछ पाठकों ने हमसे शिकायत की थी कि हमारी रचनाओं से उनके ज्ञान में अपरिमित वृद्धि नहीं हो रही है। हमें इस बात का परामर्श भी दिया गया था कि हास्य का कूड़ा लिखने के लिए दिमाग का घोड़ा सरपट दौड़ाने के स्थान पर कुछ ‘साथर्क लेखन’ के निमित्त दिमाग़ का घोड़ा दौड़ाया जाए जिससे पाठकों क

11

सर्कस की शेरनी (भाग-2)

9 अप्रैल 2015
0
2
3

बेतुकी रचनाएँ लिखने में हमारा भी कोई जवाब नहीं। इसका एक कारण है। यदि आप किसी विषय पर दस तरीके से सोच सकते हैं तो हम उसी विषय पर एक हज़ार तरीके से सोच सकते हैं। यह समझने की भूल भी न करिएगा कि बीसवीं सदी के सबसे धीमी गति से सोचने वाले ख्यातिप्राप्त फि़ल्मी लेखक, निर्देशक और अभिनेता अबरार अलवी की तरह ह

12

पापकर्मों पर ब्याज

13 अप्रैल 2015
0
2
3

क्या आपने कभी सोचा है कि जाने-अनजाने में किए जाने वाले पापकर्माें पर कितना प्रतिशत ब्याज लगाने के उपरान्त प्रतिफल के रूप में उन पापकर्माें का दण्ड भुगतना पड़ता है? हमने इस प्रकरण पर व्यापक शोध किया और चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। जानबूझकर किए जाने वाले पापकर्माें पर कितना प्रतिशत ब्याज लगता है- इस

13

भीष्म-प्रतिज्ञा

13 अप्रैल 2015
0
1
1

‘पापकर्माें पर ब्याज’ लिखते समय हमें भीष्म पितामह के पात्र से ईर्ष्या होने लगी। यह सोचकर हमारा कलेजा जलने-फुँकने लगा कि पाण्डव बन्धु भीष्म से कितना प्रेम करते थे और उनपर कितना भरोसा करते थे कि भीष्म पितामह से ही उनकी मृत्यु का राज़ पूछने चले गए। आज के युग में है किसी में इतनी हिम्मत जो जाकर किसी से

14

चालू लड़कियाँ, बेवकूफ़ लड़के

14 अप्रैल 2015
0
3
3

अभी कुछ दिनों पहले कौशल जी ने अपने एक लेख ‘आजकल का प्यार तो ये है’ में यह कहकर अपनी चिन्ता व्यक्त की थी कि ‘प्रेमिका प्यार के नाम पर सौदे कर रही है। कहीं प्रेमी से अपने फोन का बिल भरवा रही है तो कहीं महँगे-महँगे उपहार खरीद रही है।’ पढ़कर हमारे एक नहीं, दोनों कान खड़े हो गए और हमारे मन में विचार आया

15

कॉपीराइट

20 अप्रैल 2015
0
0
0

रचनाकारों को आलसी नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि आपकी कलम से निकलने वाले खूबसूरत शब्द किसी दूसरे की कलम से पहले निकल जाएँ!

16

डंक अभियान का खौफ़

20 अप्रैल 2015
0
0
0

पिछले दिनों विभिन्न डंक अभियान अर्थात् स्टिंग ऑपरेशन के जरिए आम आदमी पार्टी और उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल की खूब छीछालेदर हुई। कांग्रेस नेता आसिफ मोहम्मद के अनुसार उन्होंने अपनी घड़ी के जरिए एक स्टिंग किया जिससे यह पता चलता है कि आम आदमी पार्टी के चरित्र और चाल में बहुत फर्क है. स्टिंग म

17

कितने सुरक्षित हैं आप?

27 अप्रैल 2015
0
3
3

नेपाल में यमराज के अपने वाहन भैंसे पर सवार होकर इधर-उधर भागने के कारण भैंसे के खुर की धमक जब भारतीय क्षेत्र में पहुँची तो यहाँ के लोगों के कलेजे दहल गए। पहले तो हमें ऐसा लगा कि हमारी तबियत अचानक ख़राब हो रही है और हमारा सिर घूम रहा है, किन्तु अगले ही क्षण अपनी विशिष्ट बुद्धि के प्रयोग द्वारा हम समझ ग

18

शह या मात?

30 अप्रैल 2015
0
0
0

पिछले कुछ दिनों से हम नेट न्यूट्रलिटी में निहित दाँव-पेंचों को समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि इस सन्दर्भ में अपना सुविचार अन्तर्जाल की जनता के सामने रख सकें कि तभी कौशल जी के आलेख 'अमर उजाला दैनिक समाचारपत्र भारतीय दंड संहिता-१८६० के अधीन दोषी' को पढ़कर हमारे दोनों कान खड़े हो गए। अपने आलेख में कौशल

19

उड़ान

8 मई 2015
0
2
0

कुछ दिनों के लिए यदि हम अन्तर्जाल से अदृष्य हो जाएँ तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक बसे हमारे पाठकों में हड़कम्प मच जाता है। हमारे कहे इस वचन को सत्य समझकर तुरन्त कूदकर इस नतीजे पर न पहुँच जाइएगा कि भारत अब सम्पूर्ण हिन्दी राष्ट्र हो गया है और दक्षिण भारत के सभी राज्यों में सभी लोग हिन्दी बोलने लगे हैं।

20

मन्दिर बन्द (भाग-2)

10 मई 2015
0
1
0

इस बात पर मन्दिर नम्बर तीन की देवी ने क्रुद्ध होकर शीतला देवी के मन्दिर के पुजारी को खूब खरी-खोटी सुनाई। शीतला देवी के मन्दिर के पुजारी ने मन्दिर नम्बर तीन की देवी को समझाते हुए कहा- ‘‘शीतला देवी ने चुहल में जो कुछ कहा, उसमें सत्यता कहाँ थी? वह स्टोरी-लाइन तो मेरी ही बनाई हुई थी। अतः कृपया शान्त हो

21

योगाशक्ति

19 जून 2015
0
1
0

प्रधानमंत्रीजी की योगा प्रचार योजना का जनता पर इतना गहरा असर पड़ा कि लोग मिथक का शिकार होकर योगा को हर मर्ज़ की रामबाण औषधि समझने लगे। हमारे पड़ोसी गड्ढा जी को अचानक योगा करते देखकर हमारे दोनों कान खडे़ हो गए। पूछने पर गड्ढा जी ने प्रसन्नतापूर्वक बताया कि वे कार खरीदने के लिए योगा कर रहे हैं। योगा

22

युगान्तर

19 जून 2015
0
1
1

द्वापर में- हे खग मृग हे मथुकर श्रेणी। तुम देखी सीता मृगनयनी।। कलियुग में- हे ह्वाट्सऐप वीचाट हे हाइक। हैव यू सीन मा डियर वाइफ़।।

23

वरदान की काट

19 जून 2015
0
2
2

सुबह-सुबह झपकी लग गई तो स्वप्न में ईश्वर आकर प्रकट हो गए। बडे़ क्रोधित लग रहे थे। कुपित स्वर में बोले- 'दैवीय मामलों पर अपनी टाँग फँसाना तुरन्त बन्द करो। अपनी कलम से देवी-देवताओं की धज्जियाँ उड़ा देते हो। हमें बहुत बुरा लगता है।' ईश्वरीय आदेश की अवहेलना करने का सवाल ही नहीं उठता था। नहीं तो मन्दिर

24

लिंग-निरपेक्ष

21 जून 2015
0
2
1

धर्म-निरपेक्ष शब्द से तो आप भली-भाँति परिचित होंगे, किन्तु लिंग-निरपेक्ष के नाम पर आप बुरी तरह चौंके होंगे। चौंकने की बात ही है क्योंकि इस शब्द का आविष्कार हमने किया है अौर इस शब्द को खासतौर से उन लोगों के लिए बनाया है जो समाज में अथवा अन्तर्जाल में यह घोषित करना चाहते हैं कि वे स्त्री-पुरुषों में क

25

महायमराज

24 अगस्त 2015
0
3
0

यमराज के नाम से कौन परिचित नहीं है? बड़ों की तो बात छोड़िए, बच्चे भी यमराज का नाम सुनकर भय से थर-थर काँपने लगते हैं। धरतीलोक में यमराज जितना बदनाम हैं उतना बदनाम कोई अन्य देवी या देवता नहीं। इसीलिए कोई अपने बच्चों का नाम यमराज रखना पसन्द नहीं करता। यमराज का कोई विकल्प नहीं। यमराज का कोई बॉस नहीं। यमरा

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए