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डंक अभियान का खौफ़

20 अप्रैल 2015

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पिछले दिनों विभिन्न डंक अभियान अर्थात् स्टिंग ऑपरेशन के जरिए आम आदमी पार्टी और उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल की खूब छीछालेदर हुई। कांग्रेस नेता आसिफ मोहम्मद के अनुसार उन्होंने अपनी घड़ी के जरिए एक स्टिंग किया जिससे यह पता चलता है कि आम आदमी पार्टी के चरित्र और चाल में बहुत फर्क है. स्टिंग में केजरीवाल दूसरी पार्टी की ही तरह मजहबी पंक्तियों पर बातें कर रहे हैं। एक दूसरे स्टिंग में केजरीवाल कांग्रेसी विधायकों को तोड़ने की बात कर रहे हैं। यही नहीं आप के पूर्व विधायक राजेश गर्ग ने केजरीवाल पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए कहा कि विधानसभा भंग होने से पहले केजरीवाल और संजय सिंह के अलावा पार्टी के अन्य बड़े नेता फ़ोन पर कांग्रेस-विधायकों को तोड़ने की बातें करते थे। एक अन्य स्टिंग में केजरीवाल बागी ‘आप’ नेताओं प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हुए सुने जा सकते हैं। संक्षेप में- डंक अभियान का उद्देश्य यह साबित करना था कि ‘आप’ संयोजक कोई दूध के धुले आदर्शवादी महापुरुष नहीं हैं और उनमें दूसरी पार्टी के नेताओं की तरह ही ‘नेताई गुण-दोष’ विद्यमान हैं। विभिन्न डंक अभियानों में निहित सत्य के तथ्य को देखकर ‘आप’ को वोट देने वाली जनता को गहरा सदमा पहुँचा। जनता को इतना सदमा पहले कभी नहीं पहुँचा था। गहरा सदमा तब पहुँचता है जब आप किसी पर बहुत अधिक भरोसा करते हैं और आपका अटूट भरोसा टूट जाता है। गहरा सदमा तब पहुँचता है जब आप किसी को आदर्शवादी महापुरुष या महामहिला समझते हैं , और आपका भ्रम टूट जाता है। एक उदाहरण के लिए कल्पना कीजिए- तृतीय विश्वयुद्ध हो रहा है और युद्ध जीतने के लिए अन्तिम विकल्प के रूप में परमाणु बम का प्रयोग करना ही बचा है। देश के सबसे बड़े परमाणु वैज्ञानिक पर सम्पूर्ण देश की निगाहें टिक जाती हैं और अन्तिम क्षणों में परमाणु वैज्ञानिक का बयान आता है कि वे परमाणु बम बनाना भूल गए हैं इसलिए परमाणु बम बनाना अब सम्भव नहीं। इन परिस्थितियों में देश की जनता को कितना बड़ा सदमा पहुँचेगा! यही बात देश का कोई छोटा-मोटा वैज्ञानिक कहे तो देश की जनता को इतना बड़ा सदमा नहीं पहुँचेगा जितना कि देश के बहुत बड़े वैज्ञानिक के कहने पर पहुँचेगा। बिल्कुल यही हाल इस समय ‘आप’ संयोजक अरविन्द केजरीवाल का है। जनता के सामने उन्हें एक आदर्शवादी महापुरुष के रूप में पेश किया गया और जब वे जनता के ‘आदर्शवाद मानदण्डों’ पर खरा नहीं उतरे तो जनता को बहुत बड़ा सदमा पहुँचा। हमारा यह लेख किसी पार्टी विशेष को लाभ पहुँचाने अथवा जनता को गहरे सदमे से उबारने के महान उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। यह लेख तो हमने अपने दिल में बसे डंक अभियान के खौफ़ को दूर करने के लिए लिखा है। हुआ यह कि आज से लगभग दो दशक पूर्व हमने खेल-खेल में अपनी एक छोटी सी पार्टी बना ली और पार्टी के हाईकमान बनकर दूसरी बड़ी पार्टियों के हाईकमान के समकक्ष बन गए। हमारे समकक्ष बनने की इस प्रक्रिया से दूसरी बड़ी पार्टियों के हाईकमान हमसे कितना नाराज़ हुए होंगे, यह तो हमें नहीं पता किन्तु इतना पता है कि लगभग दो दशक बाद भी हमारी छोटी सी पार्टी का स्तर शून्य पर ही टिका रहा। कुछ वर्षाें पूर्व पार्टी के विकास के लिए एक मीटिंग आयोजित की गई और पार्टी के अध्यक्ष सहित पार्टी के पदाधिकारियों ने अपने-अपने विचार रखे, किन्तु किसी के परामर्श में इतना दम नहीं थी कि पार्टी को सम्पूर्ण देश में स्थापित कर सके। अन्त में सभी पदाधिकारियों की निगाहें पार्टी हाईकमान पर अर्थात् हमारे ऊपर टिक गईं। हमने परामर्श देते हुए कहा- ‘‘पार्टी को देश में स्थापित करने के लिए हमें कन्याकुमारी से कश्मीर तक एक यात्रा आयोजित करनी चाहिए जिसका नाम होगा- ‘भूखा-नंगा यात्रा’। इस ‘भूखा-नंगा यात्रा’ का उद्देश्य देश की जनता में यह प्रचार और प्रसार करना है कि यदि महँगाई इसी तरह बढ़ती रही तो एक दिन देश का हर ग़रीब भूखा और नंगा हो जाएगा और देश में सिर्फ़ चिकनी-चिकनी चौड़ी सड़कें बचेंगी। पार्टी की ओर से इस ‘भूखा-नंगा यात्रा’ को हमारी पार्टी के अध्यक्ष महोदय कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यात्रा बिना कुछ खाए-पिए नागा बाबाओं की तरह निर्वस्त्र होकर पैदल ही चलकर सम्पन्न करेंगे।’’ पार्टी अध्यक्ष ने फटाक् से बीच में टपकते हुए कहा- ‘‘इस महान कार्य को आप ही सम्पन्न कीजिए।’’ हमने पार्टी अध्यक्ष को वक्र दृष्टि से घूरते हुए कहा- ‘‘एक समय की चाय-कॉफ़ी मिस हो जाए तो मुझे चक्कर आने लगता है। मैं बिल्कुल भूखा नहीं रह सकता। अर्थी उठ जाएगी मेरी।’’ पार्टी अध्यक्ष ने हथियार डालते हुए कहा- ‘‘यात्रा करने के लिए रथ तो मिलेगा न? बहुत लम्बी दूरी है। कैसे पैदल चलूँगा वो भी भूखा-नंगा रहकर? यात्रा के दौरान बीच-बीच में चाय-कॉफ़ी और कोल्ड ड्रिंक तो मिलेगा न पीने के लिए?’’ हमने कटाक्ष करते हुए कहा- ‘‘भूखा-नंगा यात्रा कहने के बाद खा-पीकर और रथ से चलकर आप देश की जनता को बेवकूफ़ बनाना चाहते हैं? पानी तक नहीं मिलेगा आपको। बिल्कुल पैदल ही चलेंगे आप।’’ पार्टी अध्यक्ष ने मुँह बनाते हुए कहा- ‘‘मैं तैयार हूँ, लेकिन कन्याकुमारी से कश्मीर तक भूखा-नंगा रहकर पैदल यात्रा करना बिल्कुल सम्भव नहीं। फिर भी एक बात मेरी समझ में नहीं आई- कन्याकुमारी से कश्मीर क्यों? सभी पार्टी वाले राजनैतिक यात्राएँ कश्मीर से कन्याकुमारी की ओर ही करते हैं।’’ हमने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘आप ही के भले के लिए मैंने कन्याकुमारी से कश्मीर की ओर यात्रा करने का सुझाव दिया है।’’ पार्टी अध्यक्ष ही नहीं, सभी की प्रश्नवाचक दृष्टि हमारे ऊपर टिक गई। हमने सभी की शंका का समाधान करते हुए बताया- ‘‘कश्मीर में कड़ाके की ठण्ड पड़ती है। पार्टी अध्यक्ष कश्मीर में अपना पहला कपड़ा उतारने का प्रयत्न करते ही पार्टी के लिए शहीद हो जाएँगे। कन्याकुमारी में गर्मी पड़ती है। कन्याकुमारी में कपड़ा उतारने पर पार्टी अध्यक्ष को कुछ नहीं होने वाला।’’ पार्टी अध्यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा- ‘‘आपकी बात हमें बहुत अच्छी लगी। आपने बड़ी बुद्धिमानी की बात की है, किन्तु सारे कपड़े उतारकर नंग-धडंग यात्रा करना मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है। कम से कम लंगोट पहनने की अनुमति प्रदान करें।’’ हमने पार्टी अध्यक्ष को वक्र दृष्टि से घूरते हुए कहा- ‘‘क्या आपने वाकई कन्याकुमारी से कश्मीर तक भूखा-नंगा यात्रा करने का मन बना लिया है? इतना दम है आपमें? भूखा रहकर आप सेन्नै तक भी न पहुँच पाएँगे। मदुरै तक पैदल चलने में आपकी हवा निकल जाएगी। फिर आप ज़मीन पर लेटकर अपनी ही पार्टी के खिलाफ़ नारेबाजी करने लगेंगे- ‘पार्टी अध्यक्ष के ऊपर अत्याचार किया जा रहा है।’ फिर मज़बूर होकर मुझे आपको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना होगा।’’ पार्टी अध्यक्ष ने भ्रमित होकर पूछा- ‘‘मैं कुछ समझा नहीं।’’ हमने पार्टी अध्यक्ष को समझाया- ‘‘कन्याकुमारी की पुलिस से हमारी पूरी मिलीभगत होगी। बाकी कपड़े उतारने तक पुलिस चुपचाप खड़ी तमाशा देखती रहेगी। जैसे ही आप लंगोट पर हाथ लगाएँगे, पुलिस आपको गिरफ़्तार कर लेगी और आपकी कन्याकुमारी से कश्मीर तक की यात्रा स्थगित हो जाएगी। और फिर पुलिस की कार्यवाही को लोकतन्त्र विरोधी बताते हुए हमारी पार्टी के कार्यकर्ता देश भर में फूँक देंगे।’’ पार्टी अध्यक्ष ने घबड़ाते हुए कहा- ‘‘फ.. फ.. फूँक देंगे? क्या फूँक देंगे? सरकारी बसें?’’ हमने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘अब मुझे पता नहीं- किस पार्टी ने विवाद होने पर सरकारी बस फूँकने की परम्परा चलाई। हम शुरू से ही इस प्रकार की गतिविधियों के खिलाफ़ रहे हैं। और फिर हमारी पार्टी के किसी कार्यकर्ता में इतना दम नहीं जो बस क्या, साइकिल भी फूँक सके। इसलिए हमारी पार्टी के कार्यकर्ता पार्टी अध्यक्ष की गिरफ़्तारी के खिलाफ़ देश भर में सिगरेट-बीड़ी-सिगार और हुक़्क़ा फूँककर सरकार का विरोध जताएँगे। फिर देश भर में पुलिस के पास एक ही काम रह जाएगा- सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट-बीड़ी-सिगार और हुक़्क़ा पीने वालों को गिरफ़्तार करना।’’ पार्टी अध्यक्ष ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा- ‘‘इस तरह तो सार्वजनिक स्थान पर सिगरेट-बीड़ी पीने वाले बेचारे निर्दाेष लोग भी फँस जाएँगे जो पार्टी में नहीं हैं।’’ हमने मुस्कुराते हुए कहा- ‘‘फँसने दीजिए। निर्दाेष लोगों को शहीद होने दीजिए हमारी पार्टी के नाम पर। तभी तो पार्टी की ओर से विरोध जताने वालों की संख्या बढ़ी-चढ़ी दिखेगी। सरकार और मीडिया समझेगी- हमारी पार्टी के कार्यकर्ता देश भर में लगातार सिगरेट और बीड़ी फूँककर अपना विरोध-प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं।’’ सभी ने ताली बजाकर हमारी योजना का अनुमोदन किया। तभी हमारी खोजी दृष्टि पार्टी के एक पदाधिकारी पर केन्द्रित हो गई जो मोबाइल फ़ोन पर कुछ कर रहा था। हमने चेतावनी देते हुए कहा- ‘‘क्या आपको पता नहीं- पार्टी की कॉन्फि़डेन्शल मीटिंग में मोबाइल फ़ोन, पेन, कैमरा, घड़ी, पर्स, माचिस, लाइटर, सिगरेट-बीड़ी-सिगार-हुक़्क़ा, चाभी का गुच्छा और अन्य कोई भी विचित्र लगने वाली वस्तु लाना मना है? आप पार्टी की कॉन्फि़डेन्शल मीटिंग को अपने मोबाइल फ़ोन से रिकार्ड करके स्टिंग करना चाहते हैं?’’ पदाधिकारी ने घबड़ाते हुए कहा- ‘‘म.. मैं स्टिंग नहीं कर रहा हूँ। मैं तो गेम खेल रहा हूँ।’’ हमने कुपित होते हुए कहा- ‘‘गेम खेल रहे हैं या गेम के नाम पर पार्टी का स्टिंग कर रहे हैं- किसको पता? किस बिल में कौन सा साँप घुसा बैठा है किसको पता? आप पार्टी के नियमों के विरुद्ध मोबाइल फ़ोन लाए ही क्यों?’’ पदाधिकारी ने सफाई देते हुए कहा- ‘‘गलती से ले आया था और पार्टी में मोबाइल फ़ोन जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं है।’’ हमने कुपित स्वर में कहा- ‘‘अब आप पार्टी को ही दोषी बताने लगे। पार्टी में मोबाइल फ़ोन जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं है तो क्या हुआ? आपको अपना मोबाइल फ़ोन हमारी जेब में जमा करके पक्की रसीद ले लेना चाहिए था।’’ पदाधिकारी ने बगलें झाँकते हुए कहा- ‘‘मुझे नहीं पता था- मोबाइल फ़ोन आपकी जेब में जमा करना है।’’ पार्टी अध्यक्ष ने हस्तक्षेप करते हुए कहा- ‘‘पार्टी हाईकमान महोदय से हुज्जत न करें। नहीं तो हाईकमान की गाज आपके ऊपर कभी भी गिर सकती है।’’ पदाधिकारी ने क्षमा माँगते हुए कहा- ‘‘ठीक है। अगली बार से अपना मोबाइल फ़ोन हाईकमान महोदय की जेब में जमा करके पक्की रसीद ले लूँगा।’’ हमने पार्टी अध्यक्ष को निर्देशित करते हुए कहा- ‘‘इनके मोबाइल फ़ोन की अच्छी तरह से जाँच-पड़ताल करके ही बाहर जाने दिया जाए।’’ पार्टी अध्यक्ष ने तुरन्त आदेश का पालन किया। जब जाँच-पड़ताल का नतीजा शून्य निकला तो हम निश्चिन्त हो गए कि स्टिंग नहीं हुआ है। फिर भी तमाम पार्टियों का स्टिंग सार्वजनिक होने के बाद हमारे दिल में यह खौफ़ बैठ गया कि पता नहीं कब हमारी पार्टी की कॉन्फि़डेन्शल मीटिंग की वीडियो रिकार्डिंग स्टिंग के नाम पर सार्वजनिक हो जाए। इसलिए हमने यह निर्णय लिया कि स्वयं आगे आकर कॉन्फि़डेन्शल मीटिंग का सच सभी को बता दें जिससे देश की जनता को भविष्य में कोई सदमा न पहुँचे! वरिष्ठ स्तंभकार स्वप्न दासगुप्ता दैनिक समाचार-पत्र दैनिक जागरण में अपने एक लेख ‘दिखावटी नैतिकता का सच’ में लिखते हैं कि जब उनसे एक प्रकाशक ने राजनीतिक घटनाक्रमों के बारे में विस्तार से जानकारी देने वाली पुस्तक लिखने का अनुरोध यह कहकर किया कि 'सार्वजनिक तौर पर आम लोगों को जो कुछ बताया अथवा जाहिर किया जाता है, मीडिया वास्तव में उससे अधिक की जानकारी रखता है', तो उन्होंने यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि राजनेताओं और दूसरी अन्य सार्वजनिक हस्तियों से उनका सम्बन्ध वर्षों के विश्वास के बाद बना है। किसी महत्वपूर्ण पद को धारण करने वाला अथवा महत्वपूर्ण सूचनाओं तक पहुँच रखने वाला कोई व्यक्ति इन्हें अपने स्तर से सार्वजनिक नहीं कर सकता, क्योंकि इसके पीछे यह विश्वास निहित होता है कि हर हाल में गोपनीयता को बरकरार रखा जाएगा। राजनीतिक जानकारियों अथवा अन्दर की बातों को एकतरफा ढंग से सामने लाना उनके विचार से विश्वासघात वाला कृत्य है। क्या यह अनुच्छेद हर पार्टी के अन्दर छिपे बैठे विश्वासघातियों के मुँह पर तमाचा मारने के लिए पर्याप्त नहीं है? अतः जनता को यह समझना चाहिए कि राजनैतिक पार्टी में हर तरह का तिकड़म और जुगाड़ बैठाना पड़ता है, तब कहीं जाकर कोई पार्टी सत्ता में आती है। अरविन्द केजरीवाल ने ऐसा कुछ नया नहीं किया जिससे उनके आदर्शवादी व्यक्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाया जाए। ‘टिट फ़ॉर टैट’ अर्थात् ‘जैसे को तैसा’ ही राजनीति के मैदान में टिके रहने का अकाट्य सूत्र है। यहाँ पर एक बात ग़ौर करने लायक है- ‘घर का भेदी लंका ढाए’ की कहावत को चरितार्थ करता हुआ कोई भी पात्र यदि अपने आप को देश की जनता के विश्वासपात्र के रूप में प्रस्तुत करे तो उस पात्र पर किसी हालत में विश्वास नहीं करना चाहिए। सत्ता लोलुपता के कारण योजना बनाकर अपनी ही पार्टी के साथ गद्दारी करने वालों पर भरोसा करना सबसे बड़ी मूर्खता नहीं तो और क्या है?
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कुतर्क

20 मार्च 2015
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निर्भया प्रकरण पर बने वृत्तचित्र पर विवाद उठने के बाद लगे प्रतिबन्ध के पक्ष और विपक्ष में विवाद निरन्तर जारी है। कुछ लोगों का काम ही बकना होता है और हम भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं। जहाँ कुछ बकने का अवसर मिला टप से बक दिया। विश्व में बहुत से लोग इस बकने की अनोखी बीमारी से ग्रस्त हैं और इसका कोई इल

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வோட் கீ ராஜநீதி

20 मार्च 2015
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தென்னிந்தியப் பெண்களின் நிறம் குறித்து ஐக்கிய ஜனதா தள கட்சித் தலைவர் சரத் யாதவின் கருத்து அடுத்து வருடம் வருகிற தமிழ்நாடு சட்டசபை தேர்தல் முடிவுகளை கடுமையாக பாதிக்ககூடும். தமிழக பெண்களின் ஆதரவு சரத் யாதவின் பக்கம் திரும்பினால் மற்ற கட்சிகளின் நிலை என்ன ஆகும்? சரத் யாதவ் தனது பேச்சால் தென்னிந்தியப்

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मेलजोल

20 मार्च 2015
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सन्त कबीरदास यदि आज जीवित होते तो यह दोहा ज़रूर कहते- ‘कबीरा मेल बढ़ाय के, कबहुँ न करै लड़ाई। पत्रकार पोलीस नेता गुण्डा वकील हैं भाई।।’ अर्थ स्पष्ट है- पत्रकार, पुलिस, नेता, क्रिमिनल और वकील आपस में भाई-भाई समान होते हैं, अर्थात् इनमें आपस में बड़ी मिलीभगत होती है। इसलिए इनसे कभी लड़ाई नहीं करनी च

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ग़रीबों के मसीहा

19 मार्च 2015
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लोकसभा में 7 बार निर्वाचित होने के अतिरिक्त वर्ष 2014 में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार प्राप्त जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख और सीनियर लीडर शरद यादव ने मतदान के बाद मतदाता को ईवीएम मशीन से मतदान की रसीद मिलने की व्यवस्था को लेकर राज्यसभा में यह सवाल उठाकर कि ‘अगर एक जनरल स्टोर पर ट्रांजिक्शन पूरी होने के

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बस में रेप

20 मार्च 2015
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यदि आज मैं उपरोक्त शीर्षक पर अपनी कोई रचना लिख दूँ तो शायद लोग इस बात पर गला फाड़कर बहुत हल्ला-गुल्ला मचाने लगें कि रचना का नाम ‘बस में रेप’ क्यों है? रचना के शीर्षक में ‘रेप’ शब्द आने से देश में बलात्कार की घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है। रचना का शीर्षक पढ़कर भारतीय समाज भ्रष्ट हो जाएगा और देश में बला

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चाय में मक्खी

23 मार्च 2015
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धर्म एक चाय की तरह है जिसमें मक्खी गिरी हुई है. कुछ लोग चाय में मक्खी गिरने पर समूची चाय फेंक देते हैं. कुछ लोग मक्खी फेंककर चाय पी जाते हैं किन्तु धर्म की चाय में गिरी मक्खी को बिना निकाले आस्तिक चाय की चुस्की लेते रहते हैं. यदि कोई इस मक्खी के बारे में बताता है तो आस्तिक कुपित हो जाते हैं. आस्तिको

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खण्डन

23 मार्च 2015
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किसी प्रकरण पर आरोप लगने और उसपर विवाद उठने के उपरान्त खण्डन प्रस्तुत करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। खण्डन प्रस्तुत करने के इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया से मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक अछूते नहीं रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का यह बयान कि उन्होंने ‘पी॰के॰ मूवी इण्टरनेट से डाउनलोड करके

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विश्व तरबूज़ दिवस

23 मार्च 2015
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‘‘हद हो गई भई। क्या ‘विश्व तरबूज़ दिवस’ भी मनाया जाने लगा?’’- कहकर सिर पकड़ने वालों से हमारा तर्क यह है कि जब ‘सन्त वालन्ताइन दिवस’ और ‘मूर्ख दिवस’ जैसे दिवस अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जा सकते हैं तो ‘विश्व तरबूज़ दिवस’ क्यों नहीं मनाया जा सकता? और कुछ सूत्रों के अनुसार 3 अगस्त विश्व तरबूज़ दिवस क

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रंगे हाथ

24 मार्च 2015
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नववर्ष मनाने के लिए जब हम गोवा पहुँचे तो हमने बीच पर किसी को रंगे हाथ पकड़ लिया जिसे नववर्ष की नई कविता के रूप में यहाँ पर प्रस्तुत किया जा रहा है- नववर्ष की पूर्वसंध्या पर, एक विदेशी लेखिका को, हमने रंगे हाथ पकड़ा। अपनी आँखों के कैमरे में जकड़ा। जब वह गोवा के बीच पर, दारू के नशे में धुत थी, और अना

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लो बैटरी? नो प्रॉब्लम!

1 अप्रैल 2015
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कुछ सप्ताह पूर्व हमारे कुछ पाठकों ने हमसे शिकायत की थी कि हमारी रचनाओं से उनके ज्ञान में अपरिमित वृद्धि नहीं हो रही है। हमें इस बात का परामर्श भी दिया गया था कि हास्य का कूड़ा लिखने के लिए दिमाग का घोड़ा सरपट दौड़ाने के स्थान पर कुछ ‘साथर्क लेखन’ के निमित्त दिमाग़ का घोड़ा दौड़ाया जाए जिससे पाठकों क

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सर्कस की शेरनी (भाग-2)

9 अप्रैल 2015
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बेतुकी रचनाएँ लिखने में हमारा भी कोई जवाब नहीं। इसका एक कारण है। यदि आप किसी विषय पर दस तरीके से सोच सकते हैं तो हम उसी विषय पर एक हज़ार तरीके से सोच सकते हैं। यह समझने की भूल भी न करिएगा कि बीसवीं सदी के सबसे धीमी गति से सोचने वाले ख्यातिप्राप्त फि़ल्मी लेखक, निर्देशक और अभिनेता अबरार अलवी की तरह ह

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पापकर्मों पर ब्याज

13 अप्रैल 2015
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क्या आपने कभी सोचा है कि जाने-अनजाने में किए जाने वाले पापकर्माें पर कितना प्रतिशत ब्याज लगाने के उपरान्त प्रतिफल के रूप में उन पापकर्माें का दण्ड भुगतना पड़ता है? हमने इस प्रकरण पर व्यापक शोध किया और चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। जानबूझकर किए जाने वाले पापकर्माें पर कितना प्रतिशत ब्याज लगता है- इस

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भीष्म-प्रतिज्ञा

13 अप्रैल 2015
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‘पापकर्माें पर ब्याज’ लिखते समय हमें भीष्म पितामह के पात्र से ईर्ष्या होने लगी। यह सोचकर हमारा कलेजा जलने-फुँकने लगा कि पाण्डव बन्धु भीष्म से कितना प्रेम करते थे और उनपर कितना भरोसा करते थे कि भीष्म पितामह से ही उनकी मृत्यु का राज़ पूछने चले गए। आज के युग में है किसी में इतनी हिम्मत जो जाकर किसी से

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चालू लड़कियाँ, बेवकूफ़ लड़के

14 अप्रैल 2015
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अभी कुछ दिनों पहले कौशल जी ने अपने एक लेख ‘आजकल का प्यार तो ये है’ में यह कहकर अपनी चिन्ता व्यक्त की थी कि ‘प्रेमिका प्यार के नाम पर सौदे कर रही है। कहीं प्रेमी से अपने फोन का बिल भरवा रही है तो कहीं महँगे-महँगे उपहार खरीद रही है।’ पढ़कर हमारे एक नहीं, दोनों कान खड़े हो गए और हमारे मन में विचार आया

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कॉपीराइट

20 अप्रैल 2015
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रचनाकारों को आलसी नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि आपकी कलम से निकलने वाले खूबसूरत शब्द किसी दूसरे की कलम से पहले निकल जाएँ!

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डंक अभियान का खौफ़

20 अप्रैल 2015
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पिछले दिनों विभिन्न डंक अभियान अर्थात् स्टिंग ऑपरेशन के जरिए आम आदमी पार्टी और उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल की खूब छीछालेदर हुई। कांग्रेस नेता आसिफ मोहम्मद के अनुसार उन्होंने अपनी घड़ी के जरिए एक स्टिंग किया जिससे यह पता चलता है कि आम आदमी पार्टी के चरित्र और चाल में बहुत फर्क है. स्टिंग म

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कितने सुरक्षित हैं आप?

27 अप्रैल 2015
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नेपाल में यमराज के अपने वाहन भैंसे पर सवार होकर इधर-उधर भागने के कारण भैंसे के खुर की धमक जब भारतीय क्षेत्र में पहुँची तो यहाँ के लोगों के कलेजे दहल गए। पहले तो हमें ऐसा लगा कि हमारी तबियत अचानक ख़राब हो रही है और हमारा सिर घूम रहा है, किन्तु अगले ही क्षण अपनी विशिष्ट बुद्धि के प्रयोग द्वारा हम समझ ग

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शह या मात?

30 अप्रैल 2015
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पिछले कुछ दिनों से हम नेट न्यूट्रलिटी में निहित दाँव-पेंचों को समझने की कोशिश कर ही रहे थे कि इस सन्दर्भ में अपना सुविचार अन्तर्जाल की जनता के सामने रख सकें कि तभी कौशल जी के आलेख 'अमर उजाला दैनिक समाचारपत्र भारतीय दंड संहिता-१८६० के अधीन दोषी' को पढ़कर हमारे दोनों कान खड़े हो गए। अपने आलेख में कौशल

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उड़ान

8 मई 2015
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कुछ दिनों के लिए यदि हम अन्तर्जाल से अदृष्य हो जाएँ तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक बसे हमारे पाठकों में हड़कम्प मच जाता है। हमारे कहे इस वचन को सत्य समझकर तुरन्त कूदकर इस नतीजे पर न पहुँच जाइएगा कि भारत अब सम्पूर्ण हिन्दी राष्ट्र हो गया है और दक्षिण भारत के सभी राज्यों में सभी लोग हिन्दी बोलने लगे हैं।

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मन्दिर बन्द (भाग-2)

10 मई 2015
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इस बात पर मन्दिर नम्बर तीन की देवी ने क्रुद्ध होकर शीतला देवी के मन्दिर के पुजारी को खूब खरी-खोटी सुनाई। शीतला देवी के मन्दिर के पुजारी ने मन्दिर नम्बर तीन की देवी को समझाते हुए कहा- ‘‘शीतला देवी ने चुहल में जो कुछ कहा, उसमें सत्यता कहाँ थी? वह स्टोरी-लाइन तो मेरी ही बनाई हुई थी। अतः कृपया शान्त हो

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योगाशक्ति

19 जून 2015
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प्रधानमंत्रीजी की योगा प्रचार योजना का जनता पर इतना गहरा असर पड़ा कि लोग मिथक का शिकार होकर योगा को हर मर्ज़ की रामबाण औषधि समझने लगे। हमारे पड़ोसी गड्ढा जी को अचानक योगा करते देखकर हमारे दोनों कान खडे़ हो गए। पूछने पर गड्ढा जी ने प्रसन्नतापूर्वक बताया कि वे कार खरीदने के लिए योगा कर रहे हैं। योगा

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युगान्तर

19 जून 2015
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द्वापर में- हे खग मृग हे मथुकर श्रेणी। तुम देखी सीता मृगनयनी।। कलियुग में- हे ह्वाट्सऐप वीचाट हे हाइक। हैव यू सीन मा डियर वाइफ़।।

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वरदान की काट

19 जून 2015
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सुबह-सुबह झपकी लग गई तो स्वप्न में ईश्वर आकर प्रकट हो गए। बडे़ क्रोधित लग रहे थे। कुपित स्वर में बोले- 'दैवीय मामलों पर अपनी टाँग फँसाना तुरन्त बन्द करो। अपनी कलम से देवी-देवताओं की धज्जियाँ उड़ा देते हो। हमें बहुत बुरा लगता है।' ईश्वरीय आदेश की अवहेलना करने का सवाल ही नहीं उठता था। नहीं तो मन्दिर

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लिंग-निरपेक्ष

21 जून 2015
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धर्म-निरपेक्ष शब्द से तो आप भली-भाँति परिचित होंगे, किन्तु लिंग-निरपेक्ष के नाम पर आप बुरी तरह चौंके होंगे। चौंकने की बात ही है क्योंकि इस शब्द का आविष्कार हमने किया है अौर इस शब्द को खासतौर से उन लोगों के लिए बनाया है जो समाज में अथवा अन्तर्जाल में यह घोषित करना चाहते हैं कि वे स्त्री-पुरुषों में क

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महायमराज

24 अगस्त 2015
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यमराज के नाम से कौन परिचित नहीं है? बड़ों की तो बात छोड़िए, बच्चे भी यमराज का नाम सुनकर भय से थर-थर काँपने लगते हैं। धरतीलोक में यमराज जितना बदनाम हैं उतना बदनाम कोई अन्य देवी या देवता नहीं। इसीलिए कोई अपने बच्चों का नाम यमराज रखना पसन्द नहीं करता। यमराज का कोई विकल्प नहीं। यमराज का कोई बॉस नहीं। यमरा

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