धर्म-निरपेक्ष शब्द से तो आप भली-भाँति परिचित होंगे, किन्तु लिंग-निरपेक्ष के नाम पर आप बुरी तरह चौंके होंगे। चौंकने की बात ही है क्योंकि इस शब्द का आविष्कार हमने किया है अौर इस शब्द को खासतौर से उन लोगों के लिए बनाया है जो समाज में अथवा अन्तर्जाल में यह घोषित करना चाहते हैं कि वे स्त्री-पुरुषों में कोई भेदभाव नहीं करते और सभी से एक समान व्यवहार करते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण के बारे में पूछने पर जिस प्रकार आप धर्म-निरपेक्ष शब्द का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी प्रकार लैंगिक दृष्टिकोण के बारे में पूछने पर आप हमारे द्वारा निर्मित लिंग-निरपेक्ष शब्द का प्रयोग बेहिचक कर सकते हैं, क्योंकि हम इसका कोई शुल्क नहीं लेंगे। भविष्य में लिंग-निरपेक्ष शब्द के प्रयोग की अपार सम्भावनाएँ हम अपनी दूरदृष्टि से देख रहे हैं। हो सकता है कि भविष्य में सोशल नेटवर्किंग साइटों में लैंगिक दृष्टिकोण के निमित्त एक अलग कॉलम बना दिया जाए। यदि आप सलेब्रिटी या पब्लिक फिगर हैं तो देर मत करिए और अभी से लिंग-निरपेक्ष शब्द से जोंक की तरह चिपक जाइए, क्योंकि धर्म-निरपेक्ष, लिंग-निरपेक्ष, जाति-निरपेक्ष, उदारवादी, विनम्र, शीतल, दयालु, कृपालु, गाँधीवादी, धर्मात्मा, पुण्यात्मा और दानवीर इत्यादि शब्द पब्लिक फिगर प्रोटोकॉल के अन्तर्गत आते हैं और हर पब्लिक फिगर को इन शब्दों का अनुकरण कड़ाई के साथ करना चाहिए। क्या कहा? हमारा स्वभाव इन शब्दों के अनुरूप बिल्कुल नहीं है, फिर हम कैसे इन शब्दों का प्रयोग करें? हम धर्म-निरपेक्ष बिल्कुल नहीं हैं। हम तो कट्टरपंथी हैं, फिर कैसे हम धर्म-निरपेक्ष शब्द का प्रयोग करें? तो हमारा जवाब यह है कि यदि आप रियल लगने वाले सभी के प्यारे और दुलारे पब्लिक फिगर बनना चाहते हैं तो आपको बेशर्म ही नहीं, महाबेशर्म बनकर इन शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से करना होगा। क्या आप वैवाहिक विज्ञापनों में सुन्दर, सुशील, गृहकार्य दक्ष, निर्दोष तलाकशुदा, अनछुई जैसे चमत्कृत कर देने वाले यर्थात् से परे शब्दों को नहीं पढ़ते?
हुआ यह कि अन्तर्जाल में इधर-उधर खोदने के बाद हमारे संज्ञान में यह बात आई है कि समाज की कुछ प्रबुद्ध महिलाएँ कुछ इस प्रकार का प्रचार और प्रसार कर रही हैं जैसे सम्पूर्ण पुरुष समुदाय महिला समुदाय का दुश्मन है, महिलाओं की उन्नति और प्रगति में बाधक है और उनकी उन्नति और प्रगति से जलता है। जबकि यह बात बिल्कुल सत्य नहीं है और इस सन्दर्भ में हमारा एक लेख अन्तर्जाल में पहले से प्रकाशित है। हमारे पास इस बात के कई उदाहरण प्रमाण के साथ मौजूद हैं कि कुछेक अपवादों को छोड़कर पुरुष सदा महिलाओं की सहायता करते हैं और स्वयं कुछ महिलाओं ने इस बात की पुष्टि मुक्तकण्ठ से की है।
अन्तर्जाल में कुछ प्रबुद्ध महिलाओं द्वारा पुरूषों के विरुद्ध व्यापक प्रचार आैर प्रचार करता देखकर हमारे दोनों कानों के साथ सिर के बाल भी खडे़ हो गए और हमें ऐसा लगने लगा जैसे वह दिन दूर नहीं जब तृतीय विश्वयुद्ध महिलाअों और पुरुषों के मध्य लड़ा जाएगा। अब यक्षप्रश्न यह है कि विश्वयुद्ध के दौरान महिलाओं के आक्रमण से कैसे बचा जाए? विश्वयुद्ध के दौरान जब भी महिलाओं का समूह हमला करने के लिए अग्रसित हो तो पुरूषों को चाहिए कि तुरन्त नब्बे प्रतिशत की भयंकर छूट के साथ महिलाओं के सामने साड़ी और कपड़ों की सेल लगा दें। महिलाएँ हमला करना भूलकर साड़ी अौर कपड़ों की खरीद-फरोख्त में लग जाएँगी और आप बाल-बाल बच जाएँगे। यही नहीं, यदि आप लिंग-निरपेक्ष हैं तो आप अधिक सुरक्षित हैं। अब आप समझ गए होंगे कि हमने लिंग-निरपेक्ष जैसे उत्कृष्ट शब्द का आविष्कार क्यों किया?
सूत्र-लेखक ने महिलाअों और पुरुषों के मध्य होने वाले तृतीय विश्वयुद्ध की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए आत्मरक्षार्थ तुरन्त ऐसी आक्रामक महिलाओँ को चिह्नित करके उनसे साँठ-गाँठ कर लिया है और एक बुर्का भी खरीद लिया है जिससे विश्वयुद्ध के दौरान महिलाओं के आक्रमण से बचा जा सके।
तृतीय विश्वयुद्ध की अपार सम्भावनाओं को देखते हुए हमारा दर्जी तो अभी से एडवान्स बन गया है। पैंट की जिप फेल होने पर हमने दर्जी को दिया तो उसने नया जिप लगाने के स्थान पर महिलाअों के वस्त्रों में लगने वाला चिटपुटिया (प्रेस बटन) लगा दिया! देखिए लेख चित्र और नीचे पढ़िए समाचार—
महिला प्रताड़ित पुरुषों ने मांगा अलग मंत्रालय
Posted on: August 17, 2014 02:19 AM IST | Updated on: August 17, 2014 02:19 AM IST
आगरा। पुरुष अधिकार कार्यकर्ताओं के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में देश भर से हिस्सा ले रहे 100 से ज्यादा समूहों ने पुरुषों के कल्याण के लिए पृथक मंत्रालय, एक कल्याण आयोग, भारतीय दंडविधान की धारा 492 को निरस्त करने और लिंग निरपेक्ष कानूनों की मांग की है। सम्मेलन में पांच महिलाओं सहित 140 कार्यकर्ता हिस्सा ले रहे हैं।
'सेव दी फैमिली मूवमेंट' के आयोजकों में से एक कुमार जागीरदार ने कहा कि लिंग निरपेक्ष कानूनी ढांचे का समय आ गया है। इस सम्मेलन का प्राथमिक विषय पुरुष विरोधी पूर्वाग्रही संपूर्ण प्रणाली की सफाई के लिए उपायों और सुझावों की पहचान करना और सरकार पर लिंग निरपेक्ष कानून लागू करने का दबाव बनाना है। कार्यकर्ताओं ने सरकार को चेतावनी दी कि महिलाओं के प्रति सकारात्मक भेदभाव की दृष्टि से पुरुषों के अधिकारों का हनन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सम्मेलन की प्रवक्ता बरखा त्रेहन ने कहा कि यह सीरीज में छठा सम्मेलन है। अगला सम्मेलन मुंबई में होगा। हमारे पास अब देश भर में 40 हजार कार्यकर्ता हैं। हमारा मानना है कि कानून लिंग पूर्वाग्रही हैं। मौजूदा कानूनी हथियार लड़कियों के पक्ष में हैं और वे पैसे ऐंठने के लिए उन प्रावधानों का दुरुपयोग रकती हैं और झूठे आरोपों से परिवार को परेशान करती हैं।
बाहर रहने वाले लोगों को जानबूझकर मामलों में घसीटा जाता है। 80 से 90 की उम्र के लोग गिरफ्तार और अपमानित किए जाते हैं। आज देश में परिवार तोड़ने वाले दर्जनों कानून हैं। एनसीआरबी का ही अपना आंकड़ा बताता है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा मामले झूठे होते हैं। इसलिए हम दोनों लिंगों को लिए समग्र नीति की मांग करते हैं।