23 मार्च 2015
आप कहीं मुझे नास्तिक तो नहीं समझतीं, पुष्पा जी? :D
24 मार्च 2015
आस्तिकों की भावना को आपने बहुत अच्छे से पहचाना है, क्यूंकि जहाँ भगवन के लिए अगाध श्रद्धा होती है, वहां कोई तर्क, कोई अविश्वास ,कोई भय ,कोई आडम्बर वहां नहीं होता,, होती है तो बस प्रगाढ़ आस्था ही जो ईश्वर के लिए एक आत्मिक भावना होती है जैसे की एक इंसान जीवन के रिश्तों में आत्मिक हो सकता है जब की वो तो सांसारिक है रजत जी तो भगवन की आष्टा के तो क्या कहने क्यूंकि जो इंसान भगवन को साथ लेकर चलते हैं.जो लोग भगवन को मानते हैं उन्हें फिर कहीं और जाने की जरुरत ही नहीं होती इसलिए चाय में पड़ी मख्खी की तरह सच्चे मन से बिना आडम्बर बिना स्वार्थ विश्वास रखकर तो देखिये , आपको भी एहसास होगा की भगवान का ईश्वर का सानिध्य आपको कितनी आत्मिक शांति देता है ..किन्तु मै कुपित होकर ये बातें नहीं कह रही बल्कि आपके नास्तिक भाव को दूर करने का छोटा सा प्रयास है....
23 मार्च 2015