जब ध्वनि की तीव्रता इतनी अधिक हो जाए कि वह उसे सुनने वाले के मन मस्तिष्क को विचलित कर दे तो वह शोर का रूप धारण कर लेती है। ध्वनि प्रदूषण की समस्या निरंतर बढ़ रही है और
यह एक ऐसी भयावह समस्या है जिसे सामान्यतः अनदेखा किया जाता है । इसका सभी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है किंतु वृद्धों और नवजात शिशुओं के लिए यह अत्यंत घातक
है साथ ही पशु पक्षियों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव ही होता है।
अवांछित ध्वनि मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य दोनों को असंतुलित कर देती है इसके
कारण इससे चिडचिडाहट, तनाव, उच्च रक्तचाप, एकाग्रता की कमी आदि समस्याएं उत्पन्न
हो सकती है । शहरों में अत्यधिक वाहनों, उद्योगों के कारण ध्वनि प्रदूषण भी अधिक होता ही है और अब गांवों में भी हालत खराब ही है किंतु आजकल सब जगह एक ध्वनि प्रदूषण का नया स्रोत सामने आया है वह है बड़े-बड़े स्पीकर या सामान्य भाषा में इन्हें डीजे भी कहा जाता है । राजनीतिक,सामाजिक तथा धार्मिक कार्यक्रमों में इनका प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में किया जाने लगा है इन बड़े स्पीकरों को वाहनों
में लगा दिया जाता है और उनकी आवाज इतनी अधिक तीव्र होती है कि घरों के अंदर शीशे, खिड़की, दरवाजों तथा बरतनों में इसका कंपन महसूस होने लगता है। इन स्पीकरों का शोर इतना अधिक होता है कि इंसान कोई भी कार्य सामान्य रूप से नहीं कर पाता वृद्ध, एवं नवजात शिशुओं के लिए तो यह भयावह स्थिति उत्पन्न कर देते है। इसके प्रभाव को इस तरह से समझा जा सकता है कि ध्वनि की
तीव्रता मापने के लिए डेसीबल (dB) इकाई निर्धारित की गई है इसकी माप शून्य से प्रारंभ होती है विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने ध्वनि की उच्चता की अधिकतम सीमा दिन में 45 dB तथा रात्रि में 35 dB निश्चित किया हुआ है किंतु इन स्पीकरों द्वारा उच्चतम स्तर से भी तिगुनी चौगुनी आवाज में ध्वनि प्रसारित की जाती है। आजकल विवाह समारोह के दौरान भी पारंपरिक बैंड बाजे की जगह इनका उपयोग होने लगा है जो अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण करता ही है साथ ही इनमे तीव्र प्रकाश वाली फोकस लाइट लगा दी
जाती है जो वाहन चालकों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है, चल समारोह जिस रास्ते से गुजरता है
वहां इनके शोर के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता। वर्तमान कालखंड के इस प्रतिस्पर्धा
वाले समय में हर कोई तेज ध्वनि प्रसारित कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता है जो
की निरीह मूर्खता है दुख की बात यह है कि इसे बढ़ावा देने में राजनीतिक संगठनों के
साथ-साथ सामाजिक तथा तथाकथित धार्मिक संगठन (जिसमें ईश्वर की आराधना न हो उसे
धार्मिक कहना मेरे मत अनुसार उचित नहीं है।) भी पीछे नहीं है।
कई ऐसे संगठन है जो अपने कार्यक्रमों की ध्वनि को कार्यक्रम हाल से बाहर नहीं आने देते
हैं ऐसे संगठनों का अनुसरण करना चाहिए।
चुनाव के दौरान तो यह प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है।मध्यप्रदेश समेत पांच
राज्यों में चुनाव आने वाले है ऐसे में चुनाव आयोग को भी चुनाव के दौरान प्रचार के
समय ध्वनि नियंत्रण के लिए कठोर नियम बनाना चाहिए जिसका कड़ाई से पालन हर दल
द्वारा किया जाए ।
बहरहाल इतना ही कहा जा सकता है की सरकार एवं प्रशासन को समय रहते इस विकट समस्या को
नियंत्रित करना चाहिए तथा जनता को भी जागरूक होकर ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ आवाज
उठानी चाहिए और संबंधित स्तर पर अपनी शिकायत दर्ज करवाना चाहिए जिससे ऐसे
बड़े-बड़े स्पीकरों पर प्रतिबंध लग सके और ध्वनि प्रदूषण पर लगाम लगाई जा सके ।
-एडवोकेट अनिमेष आंचलिया