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वैश्विक बाजारवाद का दंश

25 सितम्बर 2023

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 ईस्ट इंडिया कम्पनी सोलहवीं शताब्दी में व्यापार करने भारत आयी और धीरे धीरे अंग्रेजों
ने पूरे देश पर कब्जा कर लिया । वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका स्वरूप परिवर्तित
हो गया है किंतु इनका मूल उद्देश्य आज भी किसी भी तरीके से धन अर्जित करना है बड़ी
बड़ी कंपनियों को इस बात से मतलब है कि उपभोक्ता से किस प्रकार अधिक से अधिक लाभ
कमाया जा सके उन्हें उपभोक्ता के हितों पर पढ़ रहे प्रतिकूल प्रभाव से कोई मतलब
नहीं । भ्रामक विज्ञापनों के माध्यम से वे अनावश्यक वस्तुओं को अति आवश्यक बताकर
बेचते है और मोटा मुनाफा कमाते हैं और इससे धीरे धीरे ये देश की संस्कृति को भी
नष्ट करने का काम भी किया जा रहा है हमारे त्योहारों का स्वरूप परिवर्तित करके नए
नए अप्रासंगिक त्योहारों को जोड़ा जा रहा है जैसे मदर्स डे फादर्स डे आदि अब
पाश्चात्य संस्कृति में पिता और पुत्र अलग-अलग ही रहते हैं तो वे मिलने जाए तो बात
समझ आती है पर अधिकांश भारतीय तो अपने माता पिता के साथ ही रहते है तो ऐसे एक दिन
का क्या औचित्य । ईरान, मिस्र, अफगानिस्तान, तुर्की आदि ऐसे उदाहरण है जहां
धीरे धीरे उनकी संस्कृति पर आघात कर उसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया और आज इन देशों
के जो हालात है वो किसी से छुपे हुए नहीं है । 

अफ्रीका तथा गरीब देशो में तो स्थिति और भी ख़राब है क्योंकि ऐसे देशो के बाजार में इन
कंपनियों का एकाधिकार है और वहां तो अत्यंत निम्न स्तर के उत्पाद पहले वहां के
लोगो को सस्ते भाव में देकर उन्हें इनकी आदत लगाकर मनमाने भाव वसूले जाते है l 

साथ ही टीवी में आने वाले नाटकों के द्वारा संयुक्त परिवार में लड़ाई झगडे दिखाकर एकल
परिवार की अवधारणा को प्रोत्साहित किया जाता है जिससे जितने ज्यादा घर होंगे
वस्तुओं का उपभोग भी उतना अधिक होगा और उपभोग ज्यादा होने से मुनाफा भी ज्यादा
होगा। आज इंसान खुद आवश्यकतानुसार चयन नहीं करता कि उसे क्या जरूरत है बल्कि उसे अलग-अलग माध्यमों से यह बताया जाता है कि उसके लिए क्या जरूरी है । 

ये कंपनियां लाभ कमाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है जैसे शक्कर मिश्रित केमिकल युक्त पानी में केवल पांच से दस प्रतिशत फलों का रस मिलाकर उसे फ्रूट जूस के नाम से बेचा जाता है, कार्बन डाइऑक्साइड युक्त पानी को कोल्डड्रिंक के नाम से बेचा जाता है, रासायनिक प्रक्रिया से गुजरने और पाम तेल की मिलावट के बाद तेल को शुद्ध बताकर बेचा जाता है, महीनो पैकेट में बंद प्रिजर्वेटिव मिली चॉकलेट को हाइजेनिक बता कर बेचा जाता है, भारी गर्मी में कोट पेंट टाई पहनने वाले को कूल बताया जाता है जबकि कुर्ते पजामा पहनने वाले को फूल(मूर्ख) बताया जाता है। 

ये कुछ उदाहरण है ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। वास्तविकता में ये कंपनियां मार्केटिंग में इतना धन खर्च करती है कि वो अपने अनुसार से सर्वे करवाकर मनमाने परिणाम घोषित करवाती है और अपने जहरीले उत्पाद को भी स्वास्थ्यवर्धक दिखाती है । एक सामान्य व्यक्ति जो दिन भर अपने काम में व्यस्त रहता है उसके लिए काफी कठिन हो जाता है कि वह इस जाल से बाहर निकल सके किंतु स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभावों के प्रति गंभीरता से चिंतन करना अब आवश्यक हो गया है । 

हमारा स्वास्थ और संस्कृति हमारी जड़े है और हमे यह बात नहीं भूलना चाहिए की
जिस पेड़ की जड़े कमजोर हो जाती है उसे गिराने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता l  

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