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संभाल लेती हो

22 अप्रैल 2024

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तुम तो!
संभाल लेती हो, 
सब कुछ!
आधे जीवन की,
दहलीज़! 
लांघते ही।
मां की सलाह! 
जिसे-
बांध दिया गया है,
तेरी आंचल के,
एक कोने!
गांठ बांधकर।
पिता की,
गारंटी वाली,
वह स्वीकृति! 
जो वह,
दे आया है,
तेरी शेष!
आधी जिंदगी वाले,
दरवाजे पर।
उसी के लिए, 
तुमने!
हवन कर दिया, 
मन में, 
उठते हुए, 
अनेक शब्दों!
स्वप्नों!! 
आकांक्षाओं!!!
तथा-
इच्छाओं का।
परन्तु! 
दुसरी दहलीज़, 
तेरे इस-
समर्पण को,
देखती रही, 
सदा ही,
शक! और-
संदेह!! की नजरों से।
तेरी सेवा!
त्याग!,ममता!
और अथक!
मेहनत के बदले,
मिलते रहे-
ताने और तिरस्कार।
और तो और-
जिस घर को,
तुम सजाती रही,
अपना मांस गलाकर,
उसी आंगन में,
तुम्हें!
"पराये घर की" भी,
कहा गया।
तुम तो-
हमेशा ही,
अधूरी की अधूरी! 
बनी रही।
न ही मायका,
तुम्हारा!
पूरा रहा,
और न ही ससुराल।
क्या?
स्त्री होना ही,
कोई! 
गुनाह है तेरा?
यही नहीं- 
बिना पुरुष के भी,
अधूरी! 
समझी जाती रही,
स्त्री! 
सदियों से।
ऐसा क्यों?
और-
कब तक?
होता रहेगा यह सब।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
    ‌             (चित्र:साभार)article-image





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रचनाएँ
सपना में तुम
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सपना में तुम! ‌ ************ © ओंकार नाथ त्रिपाठी "सपना में तुम" 'शब्द इन'पर आन लाइन प्रकाशित होने वाली मेरी बारहवीं पुस्तक कविता संग्रह के रुप में है।अब तक आनलाइन प्रकाशित होने वाली कुल तेरहवीं पुस्तक होगी'सपना में तुम'। एक कविता संग्रह मेरी 'योर कोट्स'से प्रकाशित है। सपना में तुम की नायिका मेरी मानस नायिका है।मेरे शब्द अक्सर मेरी मानस नायिका के ईर्द-गिर्द घूमते दिखेंगें जो कि आम आदमी के जीवन में घटित होने वाली स्थितियों परिस्थितियों पर केन्द्रित है। मेरी रचनाएं किसी व्यक्ति विशेष पर केंद्रित नहीं हैं।अगर कुछ सामंजस्य या स्थितियां ऐसी लगती हैं तो यह मात्र संयोग हो सकता है। "सपना में तुम"फैंटेसी लगे ऐसा मेरा प्रयास मात्र है।मेरे शब्द ऐसे चित्र बना पा रहे हैं या नहीं इसका आकलन आप पाठक ही कर सकते हैं। आशा है कि आप पाठक गण इस कविता संग्रह को अपना स्नेह देकर मेरा उत्साहवर्धन करेंगे।आपकी आलोचनाएं भी मेरा मार्गदर्शन करेंगी। ‌‌ © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोकनगर, बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
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बेखबर!

20 मार्च 2024
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बेखबर,तुम्हारे! साथ-साथ,चलता रहा।अनभिज्ञ सा,कि वापस भी,आना होगा,एक दिन।जब-तुम!आगे, बढ़ जाओगी,मुझे छोड़कर,किसी- और के साथ ।तब-कितना,कठीन होगा,अकेले वापस लौटना।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक न

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मेरे लिए, तुम!

21 मार्च 2024
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एक दिन,मैंने!मुस्कुराने की वजह,जब पूछा-चांद ने,चांदनी बताया, हवाओं ने-खुशबूओं का प्रेम,सुगंध ने-फूलों की महक,सूरज ने-दिन की रोशनी,नदियों ने-सागर की आतुरता,कांटों ने-फूलों की सुरक्षा,तथा-बारिश ने!

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विछोह!

21 मार्च 2024
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मैंजा रही हूं"तुम जाते समय,मुझसे बोली थी।ठीक है, जाओ!दबे मन से ही, मैंने कहा था।यह जानते हुए कि-जाना शब्द ही,मेरे मन में,बवंडर ले आ देता है।तुमसे!विछोह का,एक खौफनाक!माजरा बन जाता है।© ओंकार

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मिला ही नहीं

23 मार्च 2024
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मैं तो,खुली किताब!बना रहा,लोगों के लिए। यूज एण्ड थ्रो के,इस जमाने में,लोगों ने-मुझे पढ़ा!और पढ़कर,फेंक दिया।जीवन के,संघर्ष में,पकाते रहा,खिचड़ी! खपाता रहा,अपना सामर्थ्य।मेरे सपने!छटपटा-छटपटा

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रंग बदलने का

25 मार्च 2024
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जब-हम तुम!एक दुसरे से,मिले थे,तब- हमारी, उम्मीदें!मिलकर-सतरंगी!हो गयी थीं।लेकिन-धीरे-धीरे, यही उम्मीदें,हमारे! रंग भरने के,बाद भी,बदरंग! होती गयीं।शायद!हमीं में से,किसी ने,हुन

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डाका नहीं डालेगा

26 मार्च 2024
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अपने-बालों को, सहेज कर,उसमें से,एकाध!झांक रहे,कभी-कभी,तेरे गालों पर,मचलने वाले,इन मनचले!सफेद बालों को,मत छिपाया करो;ये बढ़ती उम्र का,आभास! भले ही,करा रहे हों तुम्हें;लेकिन !तसल्ली देते हैं,म

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ख़ामोशी!

29 मार्च 2024
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जैसे ही-मेरा परिधान!सलवार सूट से,बदल कर,साड़ी से होते हुए,घूंघट तक पहुंचा; तभी से-धीरे-धीरेपारिवारिक!मान्यताओं,और-संस्कृतियों के नाम,एक ख़ामोशी कीचादर सी!,तनती गयी, मेरे उपर।मैं बेटी से,बहू

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सोचे जमाना!

30 मार्च 2024
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चलो-एक वाद!दाखिल!! किया जाये,मां-बाप की,नसीहतों को,अपने नाम-कराने के लिए।ऐसा करके,रुखसती को अपने,तहजीब! एक ऐसी दी जाये,ताकि-सोचे जमाना,क्यूं ऐसे ही,बिन बताये चला गया?© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशो

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मुखौटा!

31 मार्च 2024
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मुखौटे!अब तो,चलन सा,हो गये हैं,ज़माने में।मुखौटा हीअब,शरीफ है, शराफत की, यही लाचारी है।मैं तो-करता रहा,हिफाजत!सच का।शायद!इसीलिए-झूठ ने!बग़ावत कर दी है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर

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खुद सा

1 अप्रैल 2024
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ग़लती रहीं,मेरी-संवेदनाएं!अपनत्व की,चाह से-उनके लिए,जो- अभी तक,शायद! अपना समझें ही नहीं।मैं समझता रहा,उन्हें खुद सा,फिर भी!वो कभी नहीं,समझे! मुझे, मुझसा।निर्भीक!लड़ता रहा,इस ज़मान

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अप्रैल फूल!

1 अप्रैल 2024
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मैं भी,फूल!तुम भी-फूल!यह- अप्रैल का,महीना ही,फूल!चलो- खेल लें,हम !फूल! फूल!!ताकि-गर्मी में,हो जायें,कूल!मन भी,कूल!मस्तिष्क भी,कूल!!देखो,उपवन में,खिले हैं,फूल।चलो-महकें! हम भी,कुछ ऐसे,मह

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अपनापन

1 अप्रैल 2024
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कोई भी,नयापन!पुरानापन को,पूर्णतया! ढंक लेता है,ऐसा होता नहीं।यह बात,उस ठूंठ बने,पेड़ से बेहतर-कौन बता सकता है?जिसके-अपने ही पत्ते,छोड़ दिये हैं,उसका साथ।दोष!पतझड़,या-तूफान!किसी का भी हो,लेकिन!सच

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घर मेरा!

2 अप्रैल 2024
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घर!पहुंचते ही,मेरी आंखें!खोजती हैं तुम्हें।दिल में-कचोटती है,तेरी-रुखसती मुझको।खामोश!दिवारों को देख,क्या बीती-है आज मुझपर।ख्वाब!तो तेरे संग गये,अब मेरा-जख्में-शजर देखे कौन?मेरे मन में,मिलन की चाह है,प

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सब पर भारी

2 अप्रैल 2024
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जो,भारी!लग रहे हो?अकेला ही-सब पर।उसका कारण,मतलब का,वजन है,तुम्हारे में।जैसे ही-मतलबी लोग हटे,तुम्हारा वजन!तिनके के-बराबर भी नहीं होगा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।

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दिल से!

3 अप्रैल 2024
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मेरे!होठों तक, आये!तेरा माथा!बस-इतनी ही,चाहत!मांग रखी है,मैंने-रब से अब तक।भले ही-लाजमी न हो सके,तुम्हें!आंखों से देख पाना।तेरी! यादें!मुझे, तेरी-दीदार!यूं ही कराया करें।तुम तो-जानती हो, आदत

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सांप!

3 अप्रैल 2024
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सांप!सकते में हैं,जबसे-मानव ने,डंसना!सीख लिया।गिरगिट!शरमाने लगे हैं,रंग बदलते-लोगों को देखकर।अब तो-सांप! बता रहे,जहर का महत्व,चूहों को,शक्तिशाली! बना रहने के लिए।और-यही लालच दे,चूहों में,जहर!उतार

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भेद!

4 अप्रैल 2024
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भेद!छिपाने के लिए,भगवान का,सहारा लिये वो।और-भगवान क्या आये,उनका तो-भेद ही खुल गया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nb

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शब्द!

5 अप्रैल 2024
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वो-शब्द!खर्चते गये,तुम्हें-नींद से,उठाने के लिए।लेकिन-तुम तो ठहरे,मदांध!पड़े रहे, वहीं के वहीं,जहां थे।सच-कहा है,भैंस के आगे,बीन बजाएभैंस बैठ-पगुराय।तुम!नहीं समझ सकते,जब-शब्दों का अर्थ,तब-श

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स्त्री होना!

5 अप्रैल 2024
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तेरे-खिलखिलाते,होठों पर,रुदन का,करुण क्रंदन,परोसा गया,जब-तुम!मुस्करायी।तुम्हें!बांधा गया,सामाजिकता के,बंदिशों से,जैसे ही-आसमान की ओर,उड़ान भरने को,उन्मुख हुई।बेबाकी से,विचारों को रखी क्या?उच्श्रृंखल!ज

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शौकीन

7 अप्रैल 2024
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चलो!कुछ शौकीन,बना जाये,मुहब्बत का।तुम!नजरें झुकाओ,और-मैं निहारुं तुम्हें।खो जायें,हम! एक दुसरे के,खयालों में।मिट जायें,दुरियां!जो दरम्यान हैं,दोनों के बीच।मेरा! पता तो,तुम्हें! मालूम ही

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अग्निपरीक्षा

10 अप्रैल 2024
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मैं तेरा!संघर्ष बन गया,तेरा-आत्मसमर्पण पा कर।दिन मैं तेरा!रात मेरी तुम!!,सुबह!मेरी तुम, शाम तेरा मैं!नहीं तुम्हें-सीता मैं कहता,चाह नहीं, लूं!अग्नि परीक्षा।मैं तेरा!कान्हा बन रहूं,किन्तु!मुझे मत-

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आखिर कब तक?

10 अप्रैल 2024
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आखिर! क्यों?घटते जा रहे,जवाब! प्रश्नों के? बेतहाशा! बढ़ते जाने के,बाद भी?यह बेहोशी- कब तक,यूं ही,बनी रहेगी?हम!कब जागेंगे?कब तक?खुरचते रहेंगे,हम अपने हीज़ख्म!खुदगर्जी के न

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ईद!

12 अप्रैल 2024
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रात में,छत पर,चांद!देखने के,बहाने!आ जाना।तेरा!दीद करके,मैं भी!ईद मना लूंगा।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित

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तेरी यादें!

13 अप्रैल 2024
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तेरी-यादें हैं न!मुझमें-भ्रम फैलाती हैं;आकाश,और-धरा के मिलन सा।मैं जैसे-जैसे- आगे बढ़ता हूं,वैसे-वैसे- बढ़ती जाती है,उस अनोखी,मिलन की दूरी।सम्मोहित!सा,अकेला मैं,बढ़ता जाता हूं,आगे और आगे!एक

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पंखा

14 अप्रैल 2024
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बेशक!तुमराहत देते होगर्मी सेतर ब तरशरीर कोलेकिन तुमचलते तभी होजबबटन दबता है।मतलब! साफ है कि-तेरा!वजूद तो,उस-बटन में है।जब दबेगा,तभी तुम चलोगे।और-बटन भी,किसी दुसरे के,हाथ में है।तुम!पंखा हो,ज

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याद!

14 अप्रैल 2024
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तुम!मुझको,याद करती हो,या नहीं,मुझे!नहीं पता इसका।हां यह- जरुर!हुआ है कि-मैं बेचैन!हो उठा हूं, अक्सर!जब तुम-नज़र नहीं आती।क्या मेरी,बेचैनी! कभी-देखीं हो तुम?नहीं देखी हो न?लेकिन! ते

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होठ!

15 अप्रैल 2024
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मदांध! फूलों की,पंखुड़ियों सदृश!उदास!मुरझाये-मुरझाये से,ये होंठ!प्यास से,पपड़िया गये हैं;तभी तो-इन्हें!छिपाने के लिए, लिपिस्टिक का,सहारा!लेना पड़ा है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर ग

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फ़िक्र!

15 अप्रैल 2024
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मेरी!तुमसे बातें,भले ही,कम हो रही हैं।पहले जैसा-हम! नहीं बतिया पाते,रोज-ब-रोज, दिन में-कई-कई बार।लेकिन!तेरी- खोज खबर, पल पल,प्रति पल,पाते रहने की,फ़िक्र! मुझे- बनी रहती ह

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अर्थी!

15 अप्रैल 2024
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मुझे!यह मालूम है,जिन! शब्दों को,संवेदनशील, बनाकर मैं!उन्हें-कविता, कहानी, निबंध, वार्ता या-गीत और ग़ज़ल का,रुप देता हूं,मेरे!मरने के बाद,उन्हें!न तो कोई पढ़ेगा न ही सहेजेगामेरी याद

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प्रेम!

16 अप्रैल 2024
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प्रेम!यह तो,विकल्पहीन! होता है।और-वासना के,विकल्प!अनेक होते हैं।इसीलिए, प्रेम!सर्वथा!!पवित्र होता है।जबकि-वासना को,देखा जाता है,तिरस्कृत नजरों से।तभी तो-विकल्पयुक्त प्रेम!नहीं होता है,सच्चा

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तुम्हें पता है

16 अप्रैल 2024
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तुम्हें पता है कि-तेरे मन!और-तेरे मौन!!दोनों को,जितना! मैं समझता हूं,शायद! दुसरा और नहीं।सांस-सांस में,जो बंधे हैं,बंधन!तेरे साथ के, नहीं खुलेंगे,अंतिम क्षण तक।मैंने!तुमको,झुमके!और

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भ्रम!

18 अप्रैल 2024
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चलो!मैं अपना,और-तुम अपना,धड़कन!जोड़कर एक कर लें।ग़लत!न मैं था,न ही- तुम रही।कमी!यही कि-हम!कभी भी,इसको- साबित न किये।हम तो,खूब!समझते हैं,एक दुसरे को।फिर-यह चुप्पी! हम दोनों में,कैसी है?ह

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भय!

19 अप्रैल 2024
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सुन लो!आज की,तेरी-यह चुप्पी भी,राजनेताओं के,कुटिल! करारनामों से,तनिक भी,कम नहीं।कल!जब प्रश्न उठेगा,जवाब! तुमसे भी,मांगा जायेगा।मिडिया!विपक्ष!! और- आवाम!!!सभी से,पूछेगा प्रश्न!एक दि

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वो तो!

20 अप्रैल 2024
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बदल रही है,दुनिया! बदल गया है,देश!आखिर देखो-हमने भी,अब! बदल लिया, परिवेश!तुमने! बढ़ाया जबसे, मुझसे,फासला! गलतफहमियां हमारी! तब से, तरक्की कर ली हैं।और तभी से,दी

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प्रेम!

20 अप्रैल 2024
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यह!नशे से,कमतर,बिल्कुल नहीं।जो-भीख की तरह,मांगने पर भी,नहीं मिलता।ऐसी!लत है यह,जो लग जाय,तब!छुड़ाने से भी,न छूटे।क्योंकि- यह प्रेम हैजो!अपूर्ण है,अपनी ही,लिखावट में।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर

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संभाल लेती हो

22 अप्रैल 2024
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तुम तो!संभाल लेती हो, सब कुछ!आधे जीवन की,दहलीज़! लांघते ही।मां की सलाह! जिसे-बांध दिया गया है,तेरी आंचल के,एक कोने!गांठ बांधकर।पिता की,गारंटी वाली,वह स्वीकृति! जो वह,दे आया है,तेरी

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तेरे होने जैसा नहीं

26 अप्रैल 2024
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खामोश!खामोशियां, उदास हो,बतियाने लगीं।धूप तब भी,इतनी ही, तेज!हुआ करती थी।पछुआ! गर्म हवाएं,बदन को, झुलसा देती थीं।लेकिन! तेरी उपस्थिति, वातानुकूलित! माहौल सी होती थी।

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नंगा

27 अप्रैल 2024
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वह!नंगा है,क्योंकि- बहुत गरीब है।वह!नंगी है,क्योंकि- बहुत अमीर है।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चि

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पसंद!

27 अप्रैल 2024
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तेरी!नापसंदगी के, कारण, मैंने-छोड़ दी,तेरी हर नापसंद।लेकिन! यह क्या?तेरी- नापसंदगी तो, उसकी-पसंद के साथ,गुफ्तगू! कर रही है अब।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखप

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वक्त का परिंदा!

29 अप्रैल 2024
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आज!तेरे पास,मेरे लिए! वक्त नहीं ।जब कि-मैंने! खर्च कर दिया, अपनी!सारी की- सारी!भावनाओं को,जो तेरे!वक्त से ज्यादा, मूल्यवान रहीं।यह-समझकर,कि- तुम भी!समझ सकोगी,मेरी भावनाएं

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फुर्सत!

29 अप्रैल 2024
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आज!तेरे पास,मेरे लिए! वक्त नहीं ।जब कि-मैंने! खर्च कर दिया, अपनी!सारी की- सारी!भावनाओं को,जो तेरे!वक्त से ज्यादा, मूल्यवान रहीं।यह-समझकर,कि- तुम भी!समझ सकोगी,मेरी भावनाएं

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दरवाजा

30 अप्रैल 2024
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आज!मैंने फिर, खटखटाया, तेरे दरवाजे को।कोई जवाब! नहीं मिला,आज भी-रोज की ही तरह। शायद!व्यस्तता रही होगी,तेरी अपने-नये अपनों में।मैं निराश!कत्तई नहीं हुआ,क्योंकि- टुटने के बजाय,&

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प्रेम और विवाह

1 मई 2024
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जब-अवस्था! किसी-व्यवस्था के,शर्तों के,अधीन हो जाती है;तब प्रेम!बेमतलब सा,निरुत्तर!निरुपाय हो जाता है।और- यह जीवन?विवाह! नियमों के अधीन, अनवरत,चलने लगता है,खट्टे-मीठे,कसैले!&n

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हारता रहा

2 मई 2024
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तुम्हें- पता है?मैंने तुमसे,बहस!क्यों नहीं की,कभी भी?यह!जानते हुए कि-ग़लत!मैं नहीं हूं।क्योंकि- मैं तुमको,खोना!नहीं चाहता था, इसलिए- मैं हारता रहा,तुमसे!तुम्हें!जीतने के लिए।

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साहिल!

2 मई 2024
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दरिया तो है,लेकिन- साहिल!नहीं दिखता,चांद भी है,परन्तु! चांदनी!! नहीं दिखती।एक निर्वात सा,हो गया है,मन में-तूफान की आशा है।यह कैसी- प्यास लगी है?जो पानी से,नहीं बुझती।बाथरुम में रखा

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तुम!

3 मई 2024
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भावना के,भाव का,अभिषेक हो,तुम!अंतर्मन में,आस्था की,उपासना हो,तुम!मुश्किलों में,साहसों का,उत्साह हो,तुम!जो होगा,अच्छा ही होगा,यह देव वाक्य हो,तुम!फुर्सत के,अकेलेपन की,सारी याद हो,तुम!गुजरे हुए, लम

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ठहराव!

4 मई 2024
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मेरा!प्रेम ही,तुमसे- आज तक, मेरे डरने का,कारण रहा।लेकिन- तेरा मुझसे,न डरने का कारण,क्या रहा?मैं आज तक,नहीं समझ न सका।इसी-ऊहापोह में,जहां का तहां- पड़ा रहा मैं!धीरे-धीरे, होता

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नदी की तरह

5 मई 2024
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बढ़ना ही है,तो बढ़ो!तुम!नदी की तरह।एक!जुनून के साथ,अपनी-मंजिल पाने के लिए। बहती नदियों को,कभी कोई!राह! दिखाया है?समुद्र से-मिलने के लिए।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&n

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नदी की तरह

5 मई 2024
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बढ़ना ही है,तो बढ़ो!तुम!नदी की तरह।एक!जुनून के साथ,अपनी-मंजिल पाने के लिए। बहती नदियों को,कभी कोई!राह! दिखाया है?समुद्र से-मिलने के लिए।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।&n

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दिल!

5 मई 2024
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जब!दिल से,आवाज आती है,किसी नाम की,इसकी धड़कन! बढ़ जाती है।यह दिल! यूं ही- नहीं धड़कता, हर किसी के लिए।यह जिसका,तलबगार होता,उसी के लिए, धड़कता है।क्योंकि- इसका भी,&n

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