( जब तक मानसिकता नहीं बदलती कोई भी परिवर्तन असंभव है .... अब आप अपने आस-पास दृष्टि डालिए, खुद को तौलिये और सच कहने का साहस कीजिये। पहले तो आप इस बात का जवाब दीजिये कि समानता से आपका क्या तात्पर्य है ? )
मैं स्त्री स्वतंत्रता की हिमायती नहीं
पर स्त्री शक्ति का जीता जागता रूप हूँ
भय से सराबोर मैंने
निर्भय होना सीखा
छीनी हुई हँसी के जलते अंगारों पर खिलखिलाना सीखा
किसी भी चोट पर हार नहीं मानी
दिल-दिमाग के दावानल में खाना बनाया
अपमान के गरल के साथ
एक एक निवाला लिया
आँगन,दहलीज को संवारा
क्या यह स्वत्व को स्थापित करना नहीं ?
स्त्री की आंतरिक शक्ति का परिचायक नहीं ?
उदाहरण नहीं परिवर्तन का ? !!!!!!!
मैं स्त्री शक्ति हूँ
लेकिन उदाहरण हूँ तड़ीपार ज़िन्दगी का !
नहीं,नहीं -
यह नकारात्मक बात नहीं
ना ही टूटा हौसला है
यह एक सत्य है !
वह सत्य
जिसके आगे
कंटीले बाड़ की तरह प्रश्न खड़े होते हैं
जिन प्रश्नों से जन्मे ज़ख्मों को
मैंने रिसने दिया
ताकि निकल जाए सारा विष
हौसले का अमृत भीतर रह जाए …
समानता की बात पर
मैंने कभी सोचा ही नहीं
क्योंकि ऐसे भी,
कोई समान नहीं होता
बात है अपने स्पेस की
जो सबके लिए ज़रूरी है
स्पेस दो
विचार परिपक्व होंगे
परिवर्तन होगा ही …
यूँ ही .... न नारी के लिए शोर मचाओ
न पुरुष के लिए
एक कदम उसके हिस्से रहने दो
एक अपने हिस्से
फिर भी रुकावट हो तो ……………… संबंध ही कैसा !!!