हम खुद से डरते हैं
खुद से भागते हैं
और जब तक यह होता है
कोई किनारा नहीं मिलता !
ज़िन्दगी के हर पड़ाव पर
ऐसा होता है
और हम किसी के साथ की
प्रतीक्षा करते हैं !
गौर करो ...
निर्णय हर बार हमारा अपना होता है
...
समाज , परिवार
यह सब हमारे अन्दर की ग्रंथि हैं ...
जहाँ हम तैयार नहीं होते
वहाँ समाज और परिवार को हम नहीं सुनते
जहाँ हम तैयार होते हैं
वहाँ मुड़कर भी नहीं देखते
तब ना हमें डर लगता है
ना परवाह होती है
सबकुछ अपने हाथ होता है
और हम बेतकल्लुफ होकर कहते हैं
--- भगवान् हमारे साथ है .........
भगवान् तो हमेशा साथ होते हैं
जब हम डरते हैं तब भी
जब हम नहीं डरते तब भी
....
तो चलो समय दो खुद को
स्वीकार करो सत्य को
यानि खुद के भय को
खुद की इच्छा को
और खुद के निर्णय को !!!