न विश्वास मिटता है,
न अविश्वास की जड़ें खत्म होती हैं -
एक ही व्यक्ति के कई रूप होते हैं,
सौंदर्य के पीछे कुरूपता,
कुरूपता के पीछे सौंदर्य मिल ही जाता है -
पर,
न हर सौंदर्य कुरूप है
न हर कुरूप सुन्दर है
शरीर से असमर्थ भी
कुशल कारीगर होता है
तो कहीं शरीर से स्वस्थ व्यक्ति
अस्वस्थता का बहाना बनाकर कुछ नहीं करता !
सच है,
मन से कोई नहीं भाग पाता ,
लेकिन मन की बात मन में रखकर
ऊपर से भागने की प्रक्रिया बनी रहती है !
आँसू के भी कई अर्थ -
व्याकुलता तो कई बार
अंदर ही सिसकती रह जाती है
जो फुट फुटकर रोते दिखाई देते हैं,
उसमें उनकी अगली चाल होती है …………
सच-झूठ को समझना आसान नहीं
तर्क से भी पुष्टि असम्भव है !!