कभी कुछ
कभी कुछ
सवालों का चक्रव्यूह
आखिर क्यूँ ?
मेरी होड़ तो न ज़िन्दगी से है
न मौत से
फिर क्यूँ मुझे होड़ में खड़ा करना !
मेरी खुद्दारी किसी मंशा को सफलीभूत होने नहीं देगी !!
मत बनाओ झूठ की लम्बी चादर
नींद उसे बनाते हुए भी उड़ेगी
बन जाने के बाद
मेरा और तुम्हारा सत्य
शीशे की तरह आँखों में चुभेगा !
देखो
मुझे हराने के ख्वाब
शौक से देखो
ईश्वर तुम्हें उम्र बक्शे
तुम्हारे ख्वाब तुम्हारा हिसाब किताब करें ...