कुछ कहने के लिए
अबाध बहती नदी की तरह बहते जाने के लिए
ज़रूरी तो नहीं सम्बोधन
एक नाम तो कइयों के होते हैं !
तुम्हारा एक नाम है
मेरा भी एक नाम है
तुम जानते हो
मैं जानती हूँ
मैं कह रही हूँ
तुम सुन रहे हो
यह विश्वास ही हमारा नाम है
किसी और के लिए एक नाम में
भावनाओं को क्यूँ बाँधना !!
संभव है
यही ख्याल किसी और के
किसी और के लिए हों
कोई और नदी हो
कोई और सागर हो
तो रहने देते हैं बस एक ख्याल
हर किसी की ओर से
हर किसी के लिए
कोई अपने हिस्से का कह देगा
कोई अपने हिस्से का सुन लेगा …
पंछी किसी व्यक्तिविशेष
या वृक्षविशेष के लिए कहाँ गाते हैं
सार्वजनिक है उनका चहचहाना
कोई सुनता है
कोई उड़ा देता है
कोई पिंजड़े में डाल देता है
कोई चहचहाने लगता है
उन्मुक्त उड़ान भरते उन पंछियों का
कोई नाम नहीं होता
सब अपने अपने आकाश को छूने के लिए
अपने पंखों की ऊर्जा मापते हैं
पौ फटते उड़ जाते हैं
साँझ ढलते बसेरे में लौट आते हैं
या फिर किसी जहाज पर
अनंत की खोज में मन-बेमन निकल जाते हैं
…
इतिहास के किसी पन्ने पर उनका कोई नाम नहीं होता
....
हमें भी किस इतिहास की ज़रूरत है ?
मैं कहूँ
तुम सुनो
काफी है …