प्रकृति की पीत प्रीत पुकार,
सुन सज-धज आ गई बसंत-बहार|
सौंधी-सौंधी सुगन्धित बयार,
लेके खुशियों की बहार,
सुन सज-धज आ गई बसंत-बहार|
आनंदित है श्रृंगार रस छेड़ मन के झंकृत
तार,
अनंत आकाश वासंती वसुंधरा का मनभावन
मुदित मनुहार,
सुन सज-धज आ गई बसंत-बहार|
मंद-मंद मुस्काते माघ-फागुन का नौलखा
हार,
निम्मी-निम्मी ठंड में मन की आग का
करारा वार,
सुन सज-धज आ गई बसंत-बहार|
पावन आत्मा का प्रिय अवतार बन रहा प्रहार
स्वयं आहार,
फिज़ा में चहुँ ओर प्रेममय उदगार वसुधैव-कुटुम्बकम-स्वप्न
हुआ साकार,
सुन सज-धज आ गई बसंत-बहार|
शरद ऋतु की समाप्ति
और बसंत आगमन के पर्व “बसंत-पंचमी” की हार्दिक शुभकामनाएं...
कॉपीराइट @ चंद्रेश विमला त्रिपाठी