पोपला बच्चा
बच्चा देखता है
कि मां उसको
हंसाने की
कोशिश कर रही है।
भरपूर कर रही है,
पुरज़ोर कर रही
है,
गुलगुली बदन में
हर ओर कर रही है।
मां की नादानी को
ग़ौर से देखता है
बच्चा,
फिर कृपापूर्वक
अचानक...
अपने पोपले मुंह
से
फट से हंस देता
है।
सोचता है
ख़ूब फंसी
मां भी मुझमें
ख़ूब फंसी,
फिर दिशाओं में
गूंजती है
फेनिल हंसी।
मां की भी
पोपले बच्चे की
भी।
डॉ० अशोक चक्रधर