चारों राजकुमारों का परस्पर अपूर्व प्रेम था। शस्त्र विद्या और धार्मिक आचार-विचार में वे परिपूर्ण हो गये थे। तभी एक दिन राजश्रृषि विश्वामित्र राजा दशरथ के दरवार में आए। राजा ने उनका बड़ा आदर सम्मान किया और उनके आने का कारण पूछा । ऋषि विश्वामित्र ने कहा," राजन! हम वन में जब यज्ञादि अनुष्ठान करते हैं तो कुछ राक्षस उसमें विध्न डालते हैं।हम उनके विनाश के लिए आपके पुत्र राम को लेने आए हैं।"
महर्षि विश्वामित्र की बात सुनकर राजा दशरथ ने कहा," मुनिवर! राम तो अभी बच्चे हैं। राक्षसों के विनाश के लिए मैं स्वयं आपके साथ चलता हूं।"
"नहीं राजन ! हमें राम हीं चाहिए।" विश्वामित्र ने हठ किया।
गुरु वसिष्ठ की आज्ञानुसार राजा दशरथ ने राम के साथ लक्ष्मण को भी विश्वामित्र के साथ भेज दिया।वन में जाकर राम-लक्ष्मण ने पहले राक्षसी ताड़का का बध किया। फिर सुबाहु को भी मारा और मारीच का भी काम तमाम कर दिया गया।