मैं समंदर हूँ ऊपर से हाहाकार पर भीतर अपनी मौज़ों में मस्त हूँ मैं समंदर हूँ दूर से देखोगे तो मुझमें उतर चढ़ाव पाओगे पर अंदर से मुझे शांत पाओगे मैं निरंतर बहते रहने में व्यस्त हूँ मैं समंदर हूँ ऐसा कुछ नहीं जो मैंने भीतर छुपा रखा होजो मुझमे समाया उसे डूबा रखा हो हर बुराई बहार निकाल देने में अभ्यस्त हू
गांव चमारी में घर की ढलान से उतरते ही महादेव कक्का का घर था. उनके घर में खूब सारी छिरिया (बकरी) थीं. कक्का की एक बेटी थीं. लक्ष्मी दीदी. उनकी शादी हो चुकी थी. पर वह कक्का की अकेली औलाद थीं. तो यहीं रहती थीं. मैं मम्मी से छुटपन में कह देते. कक्का की तो छिरिया भी रोज घूमने जाती हैं लैन (रेलवे लाइन) तक