तुमको आज भटके मन ने भटकाया
तुमको आज फिर भटके मन ने भटकाया
तुम्हारे घर आज होगा फिर वही तमाशा
दिन के खाते का जब रात हिसाब निकालेगी
तो आएंगी हाथों हाथ दिनभर की निराशा।
ये खेल है साहस का पाने की तुमको है जिज्ञासा
देखते हैं क्या कर लेंगी आने दो फिर हाथों में हताशा।
कलम हैं हाथों में अपने कदम हैं रास्तों पे अपने
अपनी क़िस्मत पलटने का कर लिया हमने इरादा।
तुम्हारा हासिल तुमको मिलेगा हमारा हमको मिलेगा
फ़र्क़ इतना है किसने किया था हर हाल में टिकने का वादा।
ये शायरी है यहाँ पर शब्द-पक्षी आसमाँ में उड़ते है
उतारो ख़्वाबों को धरा पर लेखक लिखो मत ज़्यादा।
'हरिशंकर' तुमने शब्द लुटाये हैं पैसे कम-आधा
जो ख़्वाब की है तो जोखिम उठाने की भी रखो अभिलाषा।
- हरिशंकर ©2021