दीपों की जगमगाती रोशनी,छतों पर झूलती टिमटिमाते बल्बों से चमकती झालरों और पटाखों के शोर शराबों के बीच नई पीढ़ी के कुछ बच्चे जिनको शायद अब हम और आप उंगलियों पर ही गिन सकते थे, मोहल्ले में दीवाली के त्योहार के होने का अहसास करा रहे थे। बाकी लोग अपने अपने स्मार्ट फोन , टैबलेट जैसे अत्याधुनिक यंत्रों से चिपके पड़े थे,पता नही कैसे और किनको त्योहार की शुभ कामनाएं दे रहे थे। इन लोगों को अपने गांव,मोहल्ले के बुजुर्गों के पास जाकर उनका आशिर्वाद लेना,कुछ बतियाना पास बैठकर इन सभी परंपराओं का बोध नहीं था,या शायद समय के उस पथ पर ये लोग चल रहें है,जहां आज भी कुछ लोग अपनी परंपराओं अपनी संस्कृति को विदिर्ण रथ में लेकर चल रहे हैं।
क्रमशः