सुलगती रही सदा नारी,
कच्चे कोयले सी ,
देकर उष्मा अपनी
सौदर्य व देह की भी,
मोल तब भी न कोई पाया,
खो गई हौले सी,
सुलगती गई वो तो नारी,
कच्ची कोयले सी।
वजूद उसका था सिर्फ जलना,,
सच्चे शोलो सी,
दहकती रही उसकी तमन्नाए,,
रह रह हौले सी,
हवा देती थी, कई गम खुशिया,
न चढी वो ,,उम्मीद के डोले सी,
खो गई उसकी सारी खुशियां,
जले से कोयले सी,
सुलगती रही वो देखो नारी
कच्ची इक कोयले सी।
जलकर भुनकर, दुख को चुनकर,
दहकी आग सी,
पूरे करती ,,सब अपनो के ,
देखे ख्वाब भी,
पर अपने वजूद का,, यू जल जाना,
कोयले से आग फिर राख हो जाना,
बिसरा गई खुद ही,खुद को दे,
धोखे सी,
सुलगती हुई वो कच्चे कोयले सी,
जीवंत वो करती, जीवन को भोले सी,
खुशिया वो भरती, मन मन डोले सी,
खामोश रह हॅसती,औरो के हौठो सी,
अपना दुख छिपाती,बिन कुछ बोले ही,
सुलगती नारी कच्ची कोयले सी।
दुख ही है नाम,जीवन के इस पौधे की,
देकर के फल ,खाना बस सोटे ही,
देकर सर्वस्व, जैसे शिव है वो भोले सी,
पीती विष,विषधरो के ,
कंटीले बोलो सी,
सहती ,न कहती, कुछ,,
बात दिल के फफोलो की,
सुलगती वो नार बस कच्चे कोयले सी ।
[सुलगती हर नार इक कच्चे कोयले सी।]-{2}
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इक नारी की पीड़ा है,कल नीतू जी की रचना पढ लगा कि उनके बारे कुछ और भी लिखना चाहिए, व मैने कहा था कि कल लिखूगा।
सो अपना वायदा निभाते हुए जो भी भाव उमडे।पेश है आपकी नजर।
उन जैसा तो नही लिख सकता पर प्रयास किया है ।
सभी नारियो को ससम्मान व श्रध्देय भेंट।
जयश्रीकृष्ण। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com, 🙏 ❤
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Jai shree Krishna g ✍ 🙏 💖.