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विनाशकारी।

12 जून 2022

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इक तूफान उठा है भारी,
संभल कर बडा ही है विनाशकारी,
जाने कब कब किस किस से,,
क्या क्या ले जाएगा,,
भूखा है बहुत,,
देखना,,
शायद अमीर बन ,,
गरीब  की रोटी ले जाएगा,,
हो न हो
दावानल सा है यह,,
देखना,,
किसी की भी इज्जत  से,,
बलात्कारी की तरह खेल जाएगा।
महरूम है यह,,
शराफत  व दया नाम के शोशो से,
देखना दिखा कर चेहरा कोई,,
नेता की तरह का,,
तुमसे तुम्हारा जहन ही ले जाएगा ।
वो दूर बैठा है न बच्चा  ,,
जो दुबक कर ,मां की गोद मे ,,
लिपटकर,, थोडा सिमटकर,,
डर के मारे, सहमा सा,,
उस कोमल पेड के सहारे,,
देखना तुम ,,
यह बेदर्द उसे जड समेत ही ,,
वहा से उखाड कर ले जाएगा।।
उठ रहा है एक विनाशकारी सा तूफान,,
कही भीतर ही ,,
कईयो के मन मे,,
सब वतन मे ,,
देखना यह कब कब ,,क्या क्या ले जाएगा।
किसी का छप्पर,,किसी का रिज्क,
किसी का साया,,किसी का इश्क,,
किसी का यौवन, किसी की सिफ्त,
किसी का तन,किसी का मन,,
किसी की दोस्ती,,
किसी की रूह तक नोचती,,
सब का सब ,,
बिल्कुल  अब,,
सब ले जाएगा,,
यह जो उठा है तूफान,,
प्राकृतिक  नही,, दैविक नही,,
कोप नही,, प्रकोप नही,,
बेशर्मी नही,,संकोच नही,,
इंसानियत  की ,,हैवानियत का उठा है,,
ये,देखना तुम,,
सच,,प्यार, ,दान,,धर्म,,ममत्व,,आस्तित्व,,,
सब का सब,, उडा ले जाएगा।
नंगा खडा इंसान  ,,
अपनी ही हैवानियत  पर ,,
जरा न शरमाएगा।
उठ रहा है विनाशकारी सा तूफ़ान ,,
भयकर,,प्रलयंकर,,
सब नष्ट कर जाएगा।।
उठ रहा है तूफान  ,,
इंसान की इंसानियत का,,
यह उसकी धज्जिया ,,वो तिनको ,,
की माफिक  उडाएगा।
उठ रहा है एक ,,विनाशकारी सा तूफान,,
जो बहुत कुछ, तहस नहस कर जाएगा।
बचेगा नही वजूद  तक उस शैतान का ,,
जो यह सब का होगा जिम्मेवार,,
इस विनाश की सोच मे ,,
खुद भी तो मर जाएगा।
पर है तो अफसोस  ,,बस यह कि ,,
करने को आत्मदाह,, वो विनाशक  खुद,,
तो मरेगा ही पर अपने साथ वो ,,
कई  मासूमियत  से किरदार,,
  हज्म  व खत्म कर जाएगा।
सदियां लगेगी उन्हे भुलाने मे,
जो गहरे व नासूर से जख्म ,,
दहशत व वहशत के वो छोड  जाएगा।
रहेगा तो न भले ही खुद  भी वो ,,
तो भी,,
हमसे हमारी बहुत  बडी ही,,
भारी कीमत ले जाएगा।।
ले जाएगा वो  हमसे हमारी,,,
विरासत  ,,हिमाकत,,,
रिवायत,,इनायत,,
कितनी थी की मिन्नते,,
जो रखी थी शिकायत,,
सब का सब ,,
एक  ही झटके मे ,,सब ले जाएगा।
उठ रहा है वो विनाशकारी सा तूफान,,
जो प्रलय  खूब मचाएगा,,
[जो भयाक्रांत सी प्रलय ,,
विनाशकारी सी मचाएगा,,।]--{2}
@@#@@
मौलिक रचनाकार,,
संदीप  शर्मा,,
Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Khilteehsaas@gmail.com,
सिमटते दायरे,on Facebook..
Jai shree Krishna g
A request:-
कृपया निराश  न होना ,,
पर अवश्य  है इस सब का  होना,,
क्योकि
इंसानियत इंसान की मर गई हैं,,
वो अब मानवता की  न होकर,,
मजहब  व धन की ,,
रखैल बन कर रह गई है।।


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रचनाएँ
कैसी है री तू।मेरी कविता।
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यहा रोज इक नई कविता डालूगा। यही प्रयास है। दस होने पर यह पूर्ण होगी। जय श्रीकृष्ण।
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सुलगती वो कच्चे कोयले सी।

26 मई 2022
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सुलगती रही सदा नारी, कच्चे कोयले सी ,देकर उष्मा अपनी सौदर्य व देह की भी,मोल तब भी न कोई पाया,खो गई हौले सी,सुलगती गई वो तो नारी,कच्ची कोयले सी।वजूद उसका थ

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सुलगती वो कच्चे कोयले सी।

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सुलगती रही सदा नारी, कच्चे कोयले सी ,देकर उष्मा अपनी सौदर्य व देह की भी,मोल तब भी न कोई पाया,खो गई हौले सी,सुलगती गई वो तो नारी,कच्ची कोयले सी।वजूद उसका थ

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सुनहरी शाम।

26 मई 2022
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होती जो तुम साथ मेरे,,लेकर के मधुर एहसास तेरे,,महकती हवाओ की फिर आती सुगंध,वो तेरे होने की भीनी सी गंध,देती मुझे सुकून और आराम, बन जाती मेरी भी सुनहरी सी शाम।वो चाय की प्याली का

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नया मौका।[कुछ खयालात]

27 मई 2022
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यह हर बार नया मौका, कहा देती है जिंदगी, जो एक बार जो टूट जाए भरोसा, तो पिछाड देती है जिन्दगी। #### नए मौके की तलाश वो करे, जिन्हे पहले पे यकीन न रहे। ### हर बार नया मौका लेक

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जब उदास मन हो।

30 मई 2022
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जब मन उदासं हो सब भले ही पास हो , अच्छा नही लगता,,मुझे अच्छा नही लगता। देखता हू मै ,मन के जिस कोने मे, दिया है जो घाव,दिल को बींध कौने मे, छेडे उसे कोई, भले ही सहलाने को, सच बताऊ मै ,मुझे

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साहित्यिक कल्पना।

5 जून 2022
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मौजूद है विचारो मे ,मेरे शब्दो का उमड़ना, घुमडना, रोकू कैसे,इनके संग,, सिमटना, और लिपटना, यह कोई काल्पनिक नही, वास्तविक एक उडान,है,। पंख इनमे छोटे है पर साहित्यिक है , बलवान है, एक

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पथ का पत्थर

6 जून 2022
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वो पथ का पडा जो पत्थर, तुझको पुकारता है, कहता है मुझे चुपके से, क्या मुझको निहारता है,? आ हटा दे आकर मुझको, तेरा भाग्य पुकारता है, तू देख गम न करना, कि यह पत्थर आ खडा है, यही श्रम तेरे को चुनौती, तू

8

विनाशकारी।

12 जून 2022
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इक तूफान उठा है भारी, संभल कर बडा ही है विनाशकारी, जाने कब कब किस किस से,, क्या क्या ले जाएगा,, भूखा है बहुत,, देखना,, शायद अमीर बन ,, गरीब की रोटी ले जाएगा,, हो न हो दावानल सा है यह,, देखना,,

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तहजीब ए इश्क।

12 जून 2022
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लिखनी है तहजीब ए इश्क,, कि इक बात मुझे,, तू ही बता ,,क्या मै लिखू,, जो की इक मिसाल बने।। कहे तो रिवायत मै लिखू, कहे तो शिकायत सी लिखू, कहू जो भी बात,,कोई, ते

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कही है धूप कही है छाँव।

13 जून 2022
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कही धूप कही है छाँव, जिंदगी के मचल रहे है पाॅव, कभी उपर कभी नीचे, यह कैसे कैसे भींचे। वो दरिया का एक किनारा, भला लगे ,भी प्यारा प्यारा। पर उसका क्या फिर करे नजारा, जो उतरकर, म

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