वो पथ का पडा जो पत्थर,
तुझको पुकारता है,
कहता है मुझे चुपके से,
क्या मुझको निहारता है,?
आ हटा दे आकर मुझको,
तेरा भाग्य पुकारता है,
तू देख गम न करना,
कि यह पत्थर आ खडा है,
यही श्रम तेरे को चुनौती,
तू क्या संवारता है,
तू हार जाता एक पत्थर से,
या उसको धिक्कारता है,
तेरी मंजिल जो छिपी खडी है,
यह पत्थर पुकारता है।
पथ का खडा ये पत्थर
तुझको संवारता है,
दे अनूठे अनुभव तुझको,
पग तेरे बुहारता है,
पथ का पडा यह पत्थर,
तुझको निखारता है।
तू खम ठेलकर देख,
तेरा जीवन सुधारता है ,
पथ का पडा ये पत्थर
तेरे पंख मांगता है,
जोकि उड सके तो उस और,
यहा तेरे भाग्य का पता है,
#####
यह सीख है
औरो के लिए,
कहते हैं पर उपदेश कुशल बहुतेरे,
बस ऐसे ही ।
खुद आलसी हू ।डरता हू इन राह के पत्थरो से।
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
संदीप एक सच्चाई।