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साहित्यिक कल्पना।

5 जून 2022

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मौजूद  है विचारो मे ,मेरे
शब्दो का उमड़ना, घुमडना,
रोकू कैसे,इनके संग,,
सिमटना, और लिपटना,
यह कोई  काल्पनिक  नही,
वास्तविक एक उडान,है,।

पंख इनमे छोटे है पर साहित्यिक है ,
बलवान है,
एक तो पक्ष है व्यवहार का व्यापार का,इंतकाम का।
दूसरा ऐतिहासिक, है साहित्यिक संसार का,।

कल्पना भी वास्तविक  सी,
जिसका न पैरोकार  है।
सीख तो देने को है पर किसको,
यह दरकार है,।

गोदान, मुंशी की ,गोरा, इधर टैगोर  की,,
ईदगाह  व ममता, ,
व तौलिए  किसी और की,
काबूलीवाला,काकी,पर्दा,
ठेले पर हिमालय ,चितचोर सा,,
अटूट है बंधन साहित्यिक  ,
हर साहित्यकार  के नूर का,।

लाऊ कैसी ,ऐसी कल्पना,
जिनमे जीवन भरपूर हो,
अब का जो लिखूगा,जो
तो, साहित्य होगा मजबूर तो।

जो कही इसको संजोऊ  ,
होगा यह  बेहूद सा,
मुझको तो है सींचना,
यौवन को एक महबूब  सा,
कहानी पंचतंत्र की,
कालीदास के मेघदूत सा,

यही तो बल देगी,
युवान को,
प्रेम की मुस्कान की,
बहादुरी की,यश की,
नम्रता की,और पुराण की,

ऐसी साहित्यिक  कल्पना का ,
करना चाहता,संचार हूं।
बह सके हर कोई  जिसमे
उत्तम  से ख्याल  लू।

सशक्त हो,देशभक्त हो,
अर्थ हो अंत मस्त हो ।
संदेश  जिसका ऐसे  पसरे ,
जैसे कह रहा कोई  संत हो,

ऐसा लिखना चाहता हू,
ले कर के कोई कल्पना,
गौरी जैसे लगा रही हो ,
पैरो पे  अपने अल्पना,
भाव दिल के खिल जाए,
ऐसी हो साहित्यिक कल्पना,

पढोगे क्या  संदीप  की ऐसी ,
लिखी कोई  कल्पना,
चाहोगे,क्या,नववधू की जैसी,
घौलती घूंघट से वो अल्हड़पना।

काश लेखनी  से मेरी भी,
पैदा हो एक ऐसी  संरचना,
जो इक मिसाल बने,
और कहे सब बेहतरीन कल्पना,
लाजवाब  साहित्यिक  कल्पना,
संदीप  की साहित्यिक कल्पना।
#####
हो सकता है ऐसा क्या ?
संदीप शर्मा।
( देहरादून उत्तराखंड से )
जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण


Monika Garg

Monika Garg

बहुत सुंदर रचना कृपया मेरी रचना पढ़कर समीक्षा दें

5 जून 2022

Sundeiip Sharma

Sundeiip Sharma

31 जुलाई 2022

जी जरूर। जयश्रीकृष्ण।

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रचनाएँ
कैसी है री तू।मेरी कविता।
0.0
यहा रोज इक नई कविता डालूगा। यही प्रयास है। दस होने पर यह पूर्ण होगी। जय श्रीकृष्ण।
1

सुलगती वो कच्चे कोयले सी।

26 मई 2022
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सुलगती रही सदा नारी, कच्चे कोयले सी ,देकर उष्मा अपनी सौदर्य व देह की भी,मोल तब भी न कोई पाया,खो गई हौले सी,सुलगती गई वो तो नारी,कच्ची कोयले सी।वजूद उसका थ

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सुलगती वो कच्चे कोयले सी।

26 मई 2022
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सुलगती रही सदा नारी, कच्चे कोयले सी ,देकर उष्मा अपनी सौदर्य व देह की भी,मोल तब भी न कोई पाया,खो गई हौले सी,सुलगती गई वो तो नारी,कच्ची कोयले सी।वजूद उसका थ

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सुनहरी शाम।

26 मई 2022
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होती जो तुम साथ मेरे,,लेकर के मधुर एहसास तेरे,,महकती हवाओ की फिर आती सुगंध,वो तेरे होने की भीनी सी गंध,देती मुझे सुकून और आराम, बन जाती मेरी भी सुनहरी सी शाम।वो चाय की प्याली का

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नया मौका।[कुछ खयालात]

27 मई 2022
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यह हर बार नया मौका, कहा देती है जिंदगी, जो एक बार जो टूट जाए भरोसा, तो पिछाड देती है जिन्दगी। #### नए मौके की तलाश वो करे, जिन्हे पहले पे यकीन न रहे। ### हर बार नया मौका लेक

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जब उदास मन हो।

30 मई 2022
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जब मन उदासं हो सब भले ही पास हो , अच्छा नही लगता,,मुझे अच्छा नही लगता। देखता हू मै ,मन के जिस कोने मे, दिया है जो घाव,दिल को बींध कौने मे, छेडे उसे कोई, भले ही सहलाने को, सच बताऊ मै ,मुझे

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साहित्यिक कल्पना।

5 जून 2022
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मौजूद है विचारो मे ,मेरे शब्दो का उमड़ना, घुमडना, रोकू कैसे,इनके संग,, सिमटना, और लिपटना, यह कोई काल्पनिक नही, वास्तविक एक उडान,है,। पंख इनमे छोटे है पर साहित्यिक है , बलवान है, एक

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पथ का पत्थर

6 जून 2022
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वो पथ का पडा जो पत्थर, तुझको पुकारता है, कहता है मुझे चुपके से, क्या मुझको निहारता है,? आ हटा दे आकर मुझको, तेरा भाग्य पुकारता है, तू देख गम न करना, कि यह पत्थर आ खडा है, यही श्रम तेरे को चुनौती, तू

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विनाशकारी।

12 जून 2022
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इक तूफान उठा है भारी, संभल कर बडा ही है विनाशकारी, जाने कब कब किस किस से,, क्या क्या ले जाएगा,, भूखा है बहुत,, देखना,, शायद अमीर बन ,, गरीब की रोटी ले जाएगा,, हो न हो दावानल सा है यह,, देखना,,

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तहजीब ए इश्क।

12 जून 2022
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लिखनी है तहजीब ए इश्क,, कि इक बात मुझे,, तू ही बता ,,क्या मै लिखू,, जो की इक मिसाल बने।। कहे तो रिवायत मै लिखू, कहे तो शिकायत सी लिखू, कहू जो भी बात,,कोई, ते

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कही है धूप कही है छाँव।

13 जून 2022
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कही धूप कही है छाँव, जिंदगी के मचल रहे है पाॅव, कभी उपर कभी नीचे, यह कैसे कैसे भींचे। वो दरिया का एक किनारा, भला लगे ,भी प्यारा प्यारा। पर उसका क्या फिर करे नजारा, जो उतरकर, म

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