कही धूप कही है छाँव,
जिंदगी के मचल रहे है पाॅव,
कभी उपर कभी नीचे,
यह कैसे कैसे भींचे।
वो दरिया का एक किनारा,
भला लगे ,भी प्यारा प्यारा।
पर उसका क्या फिर करे नजारा,
जो उतरकर, मोती न चुने,सरदारा।
वो हरियाल सी पहाड की चोटी,
जिस पर फिसलन है बहुत सी,,होती,,
चढते सूखे सब पहाड़ पर,,
उनकी बात न कोई होती,,
जो पर चढा फिसलन पर डटकर,,
उनकी खबर सभी को होती।
यही है जिन्दगी के चाॅव,,
जिंदगी के गिरते पड़ते पाॅव,
कराते नजारे दुनियाभर को,
कही पर धूप कही फिर छाँव ,,
वो क्या देखी तुमने खाई,
उसने कैसी खबर बनाई,
कई थे गिर गिर कर मरते,,
लोग जब जब सडक से फिसलते,,
उसने पाट डाली जब खाई,,
फिर न खबर ,बुरी कोई आई।
यही है धूप यही है छाई,
कहती थी घर मे बुढिया माई,
जिसे कहते थे दादी ताई,
जो अब दूर हुए है घर से,
क्योकि वे लड़ पडे है, आपस मे,
बच्चो ने तिकड़म भिडाई,
लड़ते रहे भले चाहे घर के,,
वे खेलेगे मिलके रल के,,
यह न किस्से न कहानी,
यह है सच मुच की जिंदगानी,
इसी का करते है सब चाॅव,
यही है धूप यही है छाँव।
लो जी ये खबर भी फैली गांव,,
जिसकी तारीफ करे ,हर जान,
यहा कहा है काॅव काॅव,
यहा है धूप यहा है छाँव,,
यही है जिदगी के पाॅव,,
जो है गिरते संभलते, राम।
धूप व छाँव की अपनी कहानी,
फायदेमंद दोनो है दोनो की हानि,
धूप सर्दी मे सुहाती,,
गर्मी मे मुसीबत बन जाती,,
उल्टा होता छाँव के साथ,,
गर्मी मे देती यह आराम,,
पर जैसे ही सर्दी है आती,,
यह जान पर है बन जाती,,
यही समझना है यहा,
इनसे पीछा न छुटा,
बस तू यह तरकीब लड़ा,,
कि उठाएगा,फायदा किससे कहा,,
तो यही तेरी कामयाबी बने वहा,,
यहा थी, धूप वहा कर छाँव।
नोट,,
किस्से कहानियो मे कहा छिपती है बाते,,
ये धूप छाँव के हिस्से,
इनकी अलग ही है जाते,
यह खोखला कर डालती है ,,इंसान को,,
इनसे बच न सका कोई ,,मेरी मान तो,,
इसके संग जीना सीख ले,,
वर्ना मारना तो यह जानती ही है।
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Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g ✍ 🙏 💖 .