उपदेश
*एक व्यक्ति ने किसी संत से पूछा- स्वामी जी! मुझे अपने जीवन को सुंदर बनाने की इच्छा है, इसलिए मुझे कोई ऐसा उपदेश दीजिए जिससे मैं जीवन को अच्छा बना सकूं।*
*संत ने अपने पास रखी हुई तीन चीजें उठाकर उस व्यक्ति को दे दीं। थोड़ी सी रूई, एक मोमबत्ती और एक सुई। उन तीनों चीजों को उसके हाथ में देने के बाद संत ने कहा- बस, हो गया हमारा उपदेश, अब जाओ।*
*वो व्यक्ति वहां से चल तो पड़ा, पर उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि संत ने ये चीजें उसे क्यों दीं। वो वापस संत के पास आया और बोला- स्वामी जी! यह जो कुछ आपने दिया, ये मेरी समझ में बिल्कुल भी नहीं आ रहा है।*
*संत ने कहा- ये जो रूई दी है, इसकी खासियत यह है कि ये धागा बनकर हर एक की लाज ढंकती है। मेरे परमात्मा का प्यारा इंसान भी वही है, जो दूसरों की लाज ढंका करता है और दूसरों को संरक्षण देता है।*
*और यह मोमबत्ती! मोम बनकर जलती जरूर है, लेकिन प्रकाश बनकर अंधेरा दूर करती है और दूसरों को रास्ता दिखाती है। तुम भी इसी रूप को धारण करो और सदैव दूसरों के लिए प्रकाश बनकर रहना।*
*और तीसरी चीज तुमको दी है, सुई। सुई के बिना इस संसार का काम नहीं चलता है। ये टुकड़ों को, फटे हुओं को और कटे हुओं को जोड़ने का काम करती है।*
*सुई के बिना कोई भी जुड़ा नहीं करता। तो दुनिया में भी परमात्मा का प्यारा वही है, जो फटे हुए दिलों को सिला करता है, जो टूटे हुए दिलों को जोड़ा करता है और जो बिखरे हुओं को इकट्ठा करता है।