Housewife, social worker
निःशुल्क
आंखो मे आंसू आंचल मे खोइचा के चावल मां बाबा भाई बहन सखियो को रोता छोड़ अपने संघ संस्कारो की गठरी ले बिदा होती बेटीकिसी अनजाने के संघ अपने घर को बिदा होती फिर से नये जन्मी सी अलग द
परदेश बसी हूं ,भाई राखी है सूनी अगर साथ होते खुशी होती दूनी।मै मंगल मनाऊ दुआ करती इतनी,है घायल हृदय दर्द उठता है खूनी ।हमे याद बहुत आती तुम्हारी है भाई,धधकती है ज्वाला पर सती न बन पायी ।है पती के
माता पिता से करू निवेदन बेटी खूब पढाओ तुम।सम्मान से जीने के लियेआत्मबिस्वास जगाओ तुम ।पढना लिखना बहुत जरूरी ये बात बतलाओ तुम ।पढ लिख कर नाम करेगी फिर जग मे इतराओ तुम ।प्रतिभा उन मेभरी प
पचास के पार हो कर सोचती हूं इस उमर तक काम बहुत किया।कही नौकरी नही किया हां अपने परिवार के लिए जिया ।खट्टे, मीठे अनुभवो के साथ पूरे आनन्द और उमंग के साथ।बिना किसी की परवाह कियेअपनी जिम्म
आज तीज के पावन पर्व पर कर रही मै श्रृगार सखी मै रूचि _रूचि करू श्रंगार ।कज़र, गजरा,टीका, बिन्दिया लाला सिन्दूर भरू मांगसखी मै लाल सिन्दूर भरू मांग सखी मै रूचि रूचि करूश्रृंगार ।कुण
सब को खुश करके खुद की खुशी ढूढ़ती थी ।सब का ख्याल रखती थी खुद को नही संभाली थी।सब को सयम देती परखुद को समय न दे पाती थी ।मन मे पीड़ा होती थी चेहरे पर शिकन न लाई थी ।उम्र बढी तन ढलता सा&
सुप्रभात शुकराना करना ईईष्ट देव अपनो को कहना।चेहरे परर मुस्कान खिली होवाणी रस से पगी हुई हो ।संदेह कभभी मत करना खुद पर खुद की काबिलियत और हुनर पर ।सुबह सुबह शुकराना सुन कर स
मै मां पापा की लाडली अन्नंत सपनो से अआंखे भरी ।चाह पंखो को फैला कर उड़ने कीआसमान के ऊचाईयो को छूने की ।बडी हो रही थी सपनो को लिए तभी परिस्थियो और संस्कारो ने पर बांध दिए ।पत्नी ,बहु,मां बन न
कभी बुलाने पर कभी बिन बुलायेबेटियां अधिकार के साथ मां पापा के घर पहुच जाती है सभी चिंताओ सेमुक्त देर तक सोती हैमनुहार कराती है मां से बचपन की तरह फरमाईसे करती है अपनी पसंद की वो वे
कभी ममता कभी करूणा कभीदया कासागर बनती वो।कभी हिम्मत कभी ताकत कभी ललकार बनती वो।कभी दर्गा कभी लक्ष्मी कभी बरदान बनती वो कभी वीणा बजाती शास्त्रो का ज्ञान बनती वो ।कही पर मां कही बहना कही अर्धागिनी