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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2021-12-27

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बिखरी पंखुड़ियां

बिखरी पंखुड़ियां

मेरे भावों के सप्तरंगों का इंद्रधनुष है, गीतों की लड़ियों, कविताओं के छंदों में, अलग अलग फैली, जैसे समेटने की कोशिश में बिखर गई पंखुड़ियां हों या अलग अलग ऱग के फूलों की।

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बिखरी पंखुड़ियां

बिखरी पंखुड़ियां

मेरे भावों के सप्तरंगों का इंद्रधनुष है, गीतों की लड़ियों, कविताओं के छंदों में, अलग अलग फैली, जैसे समेटने की कोशिश में बिखर गई पंखुड़ियां हों या अलग अलग ऱग के फूलों की।

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झुकाकर आँख, सब चुपचाप क्यों जाने लगे थे

15 अगस्त 2022
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आजादी की वर्षगांठ की शुभसंध्या थी मैंने देखी महफिलें कुछ, सुखनवर कुछ हजारों गीत, शायर गा रहे थे यूँ उधर कुछ मगर पूछा उन्हें, ये पंक्तियां सच कर सकोगे जो आए वक्त, जीवन पर वतन को वर सकोगे? झुकाकर आँख, स

तिरंगा ऊँचा रहना

15 अगस्त 2022
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भारत के जन गण मन के तुम रहो बनके अभिमान आजादी के रूप में भारत के अक्षय वरदान तिरंगा ऊँचा रहना, यही बस तुमसे कहना जाने कितने संघर्षों के बन परिणाम मिले हो जान की बाजी बहुत लगाई, तब ईनाम मिले हो सदियो

मासूम बच्चे से कैसा प्रतिशोध

28 दिसम्बर 2021
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<p>दृश्य 1</p> <p>उस क्षेत्र में लोग शांतिपूर्वक रहते थे, लोग क्या, पशु पक्षी भी वहाँ अपना अभयराज सम

स्त्री विषयक उपभोक्तावाद - घर से और स्त्री से ही शुरुआत

27 दिसम्बर 2021
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<p>बहुत सी कहानियां अब भी पढ़ने को मिल जाती हैं, जिसमें बंगालनों के काले जादू के चर्चे रहते हैं

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