मेरे भावों के सप्तरंगों का इंद्रधनुष है, गीतों की लड़ियों, कविताओं के छंदों में, अलग अलग फैली, जैसे समेटने की कोशिश में बिखर गई पंखुड़ियां हों या अलग अलग ऱग के फूलों की।
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भारत के जन गण मन के तुम रहो बनके अभिमान आजादी के रूप में भारत के अक्षय वरदान तिरंगा ऊँचा रहना, यही बस तुमसे कहना जाने कितने संघर्षों के बन परिणाम मिले हो जान की बाजी बहुत लगाई, तब ईनाम मिले हो सदियो
आजादी की वर्षगांठ की शुभसंध्या थी मैंने देखी महफिलें कुछ, सुखनवर कुछ हजारों गीत, शायर गा रहे थे यूँ उधर कुछ मगर पूछा उन्हें, ये पंक्तियां सच कर सकोगे जो आए वक्त, जीवन पर वतन को वर सकोगे? झुकाकर आँख, स