पौराणिक मान्यता है कि विजयदशमी की तिथि को भगवान श्रीराम ने अत्याचारी रावण का वध किया तो संसार को एक पापात्मा से मुक्ति मिली। लेकिन भगवान श्रीराम के ऊपर ब्रहम हत्या का पाप भी लग गया क्योंकि रावण की मां जरूर असुर थी लेकिन उसके पिता ब्राह्मण थे ।
इस ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम ने अपने अनुज लक्ष्मण के साथ भोलेनाथ की उपासना की थी। ऐसा कहा जाता है कि भोलेनाथ ने नीलकंठ पक्षी के रूप में ही भगवान राम को दर्शन दिए थे । तभी से विजयदशमी की तिथि को नीलकंठ के दर्शन करना शुभ माना जाता है ।
यह तो हुई पौराणिक कथा की बात। हमारे यहां बैसवारा में हम लोग बचपन में दशहरा के दिन नीलकंठ के दर्शन के लिए प्रातः ही निकल पड़ते थे और नीलकंठ के दर्शन कर के ही घर लौटते थे। नीलकंठ के दर्शन होते ही जोर जोर से चिल्लाते थे-
"हरी भदैली गंग नहावा।
नीलकंठ के दर्शन पावा।।"
गंगा पार पड़ोसी जिले फतेहपुर के लोग इस बात को कुछ यूं कहते-
"नीलकंठ के दर्शन पावा,
घर बैठे गंगा नहावा"
जब हम लोग परीक्षा देने जाते और रास्ते में कहीं कोई नीलकंठ दिख जाता था तो उसे देखकर हम चूमते हुए (फ्लाइंग किस देते हुए)कहते थे -
"नीलकंठ वरदानी।
हमका पास करो तो जानी।"
और
ऐसा करने के बाद हम मानते थे कि अब परीक्षा में हमें पास करने की जिम्मेदारी नीलकंठ यानी भगवान शंकर की है।
कानपुर क्षेत्र में परीक्षा में पास होने का यही वरदान कुछ इस तरह मांगा जाता था-
"नीलकंठ तुम नीले रहियो,
हमको पास कराए जइयो।
पास होएं तो बैठे रहियो,
फेल होएँ तो उड़ जइयो।"
नीलकंठ की एक जगह पर काफी देर तक बैठने की आदत होती है इसलिए नीलकंठ किसी को जल्दी निराश नहीं करते थे।
मध्यप्रदेश के लोग मन ही मन अपनी कामना कुछ इस तरह प्रकट करते थे-
"नीलकंठ तुम नीले रहियो,
दूध भात का भोजन करियो।
मोरा सन्देशा भगवान से कहियो, सोवत हों तो जगाय के कहियो,
बैठे हों तो उठाय के कहियो।"
फिर धीरे से यह भी आग्रह करते कि उन्हें परीक्षा में कौन सा डिवीजन चाहिए।
बचपन भी क्या मजे का होता था।
क्या आपके क्षेत्र में भी ऐसी कोई मान्यता है??
नोट- नीलकंठ पक्षी खेतों में पाए जाने वाले कीड़े मकोड़ों को खाता है इसलिए इसे किसानों का मित्र भी कहा जाता है ।शायद नीलकंठ के इन्हीं गुणों के कारण हमारे पूर्वजों ने नीलकंठ को शुभ मानना शुरू किया होगा।